Edited By Isha, Updated: 28 Jul, 2023 07:08 AM
पानीपत शहरी निकाय विभाग लगभग 9 साल पहले 2024 विधानसभा चुनाव में भाजपा का मुख्य एजेंडा प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन देने का था। भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश की जनता के साथ वायदा किया कि हर विभाग में पारदर्शिता उनकी प्राथमिकता होगी, प्रशासन को...
चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): पानीपत शहरी निकाय विभाग लगभग 9 साल पहले 2024 विधानसभा चुनाव में भाजपा का मुख्य एजेंडा प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन देने का था। भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश की जनता के साथ वायदा किया कि हर विभाग में पारदर्शिता उनकी प्राथमिकता होगी, प्रशासन को प्रदेश की जनता का कार्य बिना सुविधा शुल्क लिए करना होगा, प्रदेश सरकार बिना खर्ची-पर्ची योग्यता के आधार पर नौकरियां देगी, लगातार अपने वायदों को पूरा करती हुई कदम कदम पर सरकार आगे बढ़ी भी। नौकरियों की बंदरबांट पर रोक लगी। हर विभाग के हर कार्य को आम जनमानस के लिए आसान बनाया गया। भ्रष्टाचार पर काफी हद तक रोक लगी, लेकिन प्रदेश का शहरी निकाय विभाग आज मुख्यमंत्री और भाजपा सरकार के सपने को कुचलता दिख रहा है। हालांकि ऐसा नहीं कि अन्य सभी विभाग पूरी तरह से पाक- साफ और पवित्र हो चुके हों, लेकिन अधिकतर विभागों में काफी हद तक सुधार देखा गया। इसके ठीक उलट शहरी निकाय विभाग पर एक बात सटीक बैठती है कि हम नहीं सुधरेंगे। शहरी निकाय विभाग में समय-समय पर तरह-तरह के घोटाले सामने आते रहे। अब फिर से पानीपत नगर निगम में एक बेहद हैरान कर देने वाला- ऐसा अचरज भरा मामला सामने आना चरचा का विषय है?हरियाणा के लोकल बॉडी मनिस्टर कमल गुप्ष्टा कहतें हैं कि भ्रष्टाचार का कोई भी मामला सहन नहीं किया जाएगा। 0% टोलरेंशन सरकार और मुख्यमंत्री की नीति है। हर गंभीर मामले पर जांच करवाई जाएगी।
चर्चा है कि पानीपत नगर निगम में लगी स्ट्रीट लाइट्स और टावर लाइट्स की रिपेयरिंग - मेंटेनेंस के लिए विभाग द्वारा कुछ समय पहले आउटसोर्सिंग पॉलिसी के तहत 2 जूनियर इंजीनियर और 42 इलेक्ट्रिशियन लगाए गए थे, जिन्हें लगभग विभाग द्वारा 12 लाख 50 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन स्वरूप दिया जा रहा है। प्रति जूनियर लगभग 28 हजार रुपए और प्रति इलेक्ट्रिशियन लगभग 18 हजार रुपए की पेमेंट निगम हर माह करता है। प्रदेश सरकार द्वारा हरियाणा कौशल रोजगार निगम के बनाए जाने पर इन सभी कर्मचारियों को 1 साल के लिए इसमें ट्रांसफर कर दिया गया। काम सुचारू चल रहा था। लगभग सभी वार्डों के पार्षद इन कर्मचारियों की कार्यशैली से संतुष्ट थे, यानि कर्मचारी अच्छा कार्य कर रहे थे। बावजूद इसके विभाग ने 3 फरवरी 2023 को हिसार की एक कंपनी मैसर्स एन डी इलेक्ट्रिकल को इसी काम का टेंडर लगभग 1 करोड रुपए सालाना में बिना पिछले 44 कर्मचारी हटाए दे दिया। यानि कार्य वही है, जिसे 44 कर्मचारी बखूबी कर रहे थे, लेकिन फिर भी इस उक्त कंपनी को वर्क आर्डर दे दिया गया। निगम की जेब से एक ही कार्य के लिए दो बार पैसा लगातार निकाला जा रहा है। लेकिन मंत्री और सभी अधिकारी पूरी तरह से मौन है और इस लूट को होते चुपचाप बैठे देख रहे हैं।

एक जे ई की भूमिका संदिग्ध, कागजी कार्रवाई में कई जानकारियां नहीं की अंकित
चर्चा है कि मैसर्स एंनडी इलेक्ट्रिकल हिसार की फाइल विद्युत वीभग के एक कनिष्ठ अभियंता द्वारा बनाई गई थी। इसमें संबंधित काम करने वाले पिछले लगे हुए कर्मचारियों की बात पूरी तरह से छुपाई गई। इसके साथ-साथ टेंडर में इस बात को भी छुपाया गया कि संबंधित कंपनी इस कार्य के लिए कितने व्यक्तियों को लगाएगी यानि टेंडर में पेमेंट के साथ विद मैन पावर शब्द जोड़ा गया था। जबकि जेई की संबंधित कार्य के लिए लगे हुए पिछले कर्मचारियों बारे अपने अधिकारियों को बताना ड्यूटी बनती थी। लेकिन इसके बाद एमई, एक्सईएन, एससी और निगम कमिश्नर के भी धड़ाधड़ साइन होते चले गए। क्या इस कनिष्ठ अभियंता द्वारा जानबूझकर अधिकारियों को गुमराह किया गया या फिर इसकी और सभी संबंधित अधिकारियों की संबंधित कागजात पर हस्ताक्षर करने की मजबूरी थी। अगर ऐसा था तो फिर अधिकारियों पर आखिर दबाव किसका था, क्योंकि उसी कार्य के लिए पहले निगम 44 कर्मचारियों को लगातार हर माह तनख्वाह आवंटित कर रहा था तो फिर इस कंपनी के माध्यम से लूट की पटकथा कैसे लिखी गई, क्यों नए टेंडर पर पिछले कर्मचारियों को बिना हटाए सारी कागजी कार्रवाई आसानी से होती रही, इस पूरे घोटाले की रूपरेखा बावजूद इसके तैयार कर दी गई जब लाइटों से संबंधित कार्य की पहले से ही विजिलेंस में जांच चल रही है। बावजूद इसके बिना परवाह किए -बिना डरे इस घपले को अंजाम दिया गया।
प्रदेश को भ्रष्टाचाररहित बनाने के सपने को कुचलने मे अहम भूमिका शहरी निकाय विभाग की
ऐसा कतई नहीं है कि इस विभाग का यह कोई ऐसा पहला कारनामा है। प्रदेशभर में आज अगर कहें कि शहरी निकाय विभाग में भ्रष्टाचार की जड़े
सबसे अधिक गहरी हैं तो इसमें कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आम लोगों में भी नगर निगम- नगर परिषद और नगर पालिकाओं बारे विचार शुद्ध कतई नहीं है। अगर हम यह कहे कि मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार मुक्त हरियाणा के वायदे को शहरी निकाय विभाग ठेंगा दिखा रहा है तो भी कतई गलत नहीं होगा।
मंत्री और कंपनी दोनों हिसार से......... इत्तेफाक है या मेलजोल ?
शहरी निकाय विभाग के मंत्री डॉक्टर कमल गुप्ता हिसार विधानसभा से दो बार चुनाव जीते हैं और पानीपत नगर निगम में रिपेयर और मेंटेनेंस ऑफ स्ट्रीट लाइट्स एन्ड टावर लाइट्स के नाम पर किए जाने वाले घोटाले में प्रयोग हुई मैसर्स एन डी इलेक्ट्रिकल कंपनी भी हिसार से है। मंत्री और कंपनी का एक ही जिले से होना भी अपने आपमें एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। दोनों का एक ही जिले से होना महज एक इत्तेफाक है या मेलजोल।

क्या इस घोटाले के लिए ही की गई थी कमिश्नर की पोस्टिंग ?
इस पूरे प्रकरण में एक और बात बेहद अचरज भरी सामने आई कि दिसंबर 2022 में पानीपत नगर निगम द्वारा नए कमिश्नर के रूप में राहुल नरवाल को जिम्मेदारी सौंपी गई और उसके ठीक बाद 3 फरवरी 2023 को मैसर्स एन डी इलेक्ट्रिकल हिसार को इन स्ट्रीट लाइट्स और टावर लाइट की रिपेयरिंग और मेंटेनेंस का 1 साल का टेंडर दे दिया गया। इस पूरे घटनाक्रम से सवाल यह उठता है कि कहीं नगर निगम कमिश्नर के रूप में राहुल नरवाल की पोस्टिंग घोटाले को अंजाम देने के लिए तो नहीं की गई थी।
घोटाले के लिए इस्तेमाल कंपनी का व्यक्तिगत संबंध कहीं मंत्री के साथ तो नहीं ?
यह मुख्य प्रश्न है कि जिस मैसर्स एनडी इलेक्ट्रिकल को स्ट्रीट लाइट की मेंटिनेस से संबंधित टेंडर 1 साल का दिया गया है, वह हिसार से है और संबंधित विभाग के मंत्री डॉक्टर कमल गुप्ता भी हिसार से हैं। इसलिए प्रदेश भर की जनता के जेहन में यह सवाल अवश्य खड़ा होगा कि कहीं इस कंपनी के साथ मंत्री का कोई व्यक्तिगत संबंध तो नहीं। क्या किसी सगे- संबंधी के नाम पर कंपनी खड़ी कर फायदा उठाया जा रहा हैं। इस पूरे घोटाले की गहनता से जांच अति आवश्यक है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल लगातार इस बात का प्रमाण देते रहे हैं कि सरकार की नियत और नियति बिल्कुल ठीक है। कई मंत्रियों के अच्छे प्रयासों के कारण लंबे समय से घाटे में चल रहे विभाग आज मुनाफे का सौदा बना चुके हैं। वहीं शहरी निकाय विभाग की कार्यशैली पर बार-बार प्रश्न चिन्ह खड़ा होना क्या संयोग हो सकता है।
घोटाले के लिए कंपनी का इस्तेमाल किस-किस जिले में, जांच का विषय
अब इस पूरे प्रकरण में यह भी एक बड़ा प्रश्न बना हुआ है कि घोटाले के लिए इस कंपनी का प्रयोग केवल पानीपत नगर निगम में हुआ है या फिर दूसरे जिलों में भी इसके माध्यम से लूट की जा रही है। इसका पूरा विश्लेषण होना अति आवश्यक है। अगर सच में कंपनी को अन्य जिलों में भी इस प्रकार के कार्य संबंधित वर्क आर्डर मिले हुए हैं तो फिर इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि लूट का माल बड़ी तिजोरियों में जा रहा है।
शहरियों के पैसे की लूट में कौन-कौन शामिल
इस घोटाले की पटकथा किस-किस नेता और किस-किस अधिकारी ने लिखी, कौन-कौन किस-किस हिस्सेदारी में इस माल को अपनी काले धन वाली तिजोरियों में जमा करने में लगा है, शहरी निकाय विभाग शहरियो से सफाई, स्ट्रीट लाइट, हाउस टैक्स, नक्शा पास करवाने की एवज में व अन्य कई तरह-तरह के तरीकों से भारी भरकम पैसे की वसूली करता है, यानी विभाग की आमदनी काफी अधिक रहती है। बावजूद इसके शहरों में सफाई- सड़कों-गलियों का बुरा हाल देखने को हमेशा बना रहता है, जबकि गांवों में बिना कुछ इस प्रकार की अतिरिक्त राशि दिए अच्छी साफ-सुथरी व्यवस्थाएं देखने को मिलती हैं। क्योंकि आमदनी वाले इस पैसे का प्रयोग सही जगह ना लगाकर गलत तरीके से बंदरबांट की जाती है। पानीपत नगर निगम में हुए इस घोटाले में कौन-कौन से अधिकारी या बड़े चेहरे शामिल हैं इसका सामने आना बेहद जरूरी है। यह सामने लाने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल के हस्तक्षेप की बड़ी जरूरत है।

शहरों में निगम से मिलने वाली सारी सुविधाओं की व्यवस्था चरमराई
यह सच है कि प्रदेशभर के शहरी मानने लगे हैं कि डॉ0 कमल गुप्ता के हाथों में शहरी निकाय विभाग आने के बाद से शहरों में विभाग की ओर से मिलने वाली सारी सुविधाओं का बंटाधार हुआ है। शहर में बनने वाली नई सड़कें- गलियां लंबे समय तक बनाई नहीं जाती, लोगों को टूटी-फूटी अधूरी गलियों सड़कों-नालियों पर से गुजरने को मजबूर रहना पड़ता है। आज प्रदेशभर के नगर निगम, नगर परिषद और नगर पालिकाओं के क्षेत्रों में गंदगी से बुरा हाल है। नालियां गंदगी से भरी रहती हैं। नालियों से ओवरफ्लो हुआ गंदा पानी सड़कों पर भी घूमता हुआ नजर आता है। अधिकतर सफाई कर्मचारी मनमानी करते हैं। शहरवासियों के विरोध करने पर झगड़े इत्यादि का भी माहौल तैयार हो जाता है, यानी अगर कहें कि प्रशासन का इस ओर ध्यान नहीं है तो यह सच है। यह या तो मंत्री की कमजोरी है या फिर उनका सुस्त रवैया।
निगम के भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारी सीधे नहीं पकड़ते पैसे
नगर निगम, नगर परिषद और नगर पालिकाओं में आजकल दलालों का बोलबाला है। भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारियों की मदद से दलाल अति सक्रिय हैं। क्योंकि अधिकारी- कर्मचारी किसी अनजान व्यक्ति से सीधा सुविधा शुल्क नहीं ले सकते, इसलिए इस प्रकार के दलाल उनकी जरूरत हैं। हर जेब में मोबाइल होना भ्रष्ट अधिकारी- कर्मचारियों के लिए मुश्किलों का सबब है। इसलिए उन्हें ऐसे विश्वसनीय आदमी जो जनता से उनके कार्यों की एवज में पैसे (सुविधा शुल्क) (रिश्वत) लेकर संबंधित अधिकारी-कर्मचारियों तक पहुंचा दें, इसके लिए हर नगर निगम में अगर कहें कि दर्जनों की तादाद दलालों की है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस प्रकार के कई मामले मुख्यमंत्री उड़नदस्ते या विजिलेंस द्वारा हाल ही में पकड़े भी गए हैं जिसमें दलालों के थ्रू अधिकारियों तक पैसे पहुंचते थे।
महीनों का काम दिनों में और दिनों का काम घंटों में करवाते हैं दलाल
उक्त दलालों की अधिकारियों और कर्मचारियों से इतनी घनिष्ठ मित्रता और सेटिंग होती है कि उनके लिए कोई भी काम चुटकी बजाने से अधिक मुश्किल नहीं होता। यह लोग अधिकारियों की मदद से महीनों का काम दिनों में और दिनों का काम घंटों में करवाने की ताकत रखते हैं और जनता अपना कार्य अतिशीघ्र - बिना रोक-टोक व बिना किसी अड़चन के करवाने के लिए सरकारी फीस से 20-30-50-100 गुना तक रकम ऐसे इन दलालों को देने के लिए मजबूर रहती है। क्या यह जानकारी संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों या मंत्री तक नहीं, ऐसा संभव नहीं हो सकता। क्योंकि कई बार दलालों से संबंधित खबरें भी अखबारों में प्रकाशित होती रही हैं।
नगर निगमों में सक्रिय दलालों की आमदनी प्रतिमाह लाखों में
शहरी निकाय विभाग के अधिकतर कार्य पब्लिक से जुड़े हुए हैं और शहरवासी तरह-तरह के छोटे- बड़े कार्य जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र, एनडीसी, प्रॉपर्टी आईडी, पेंशन से संबंधित कुछ कार्य, नक्शा पास करवाना इत्यादि समेत कार्यों को लेकर विभाग में आते जाते रहते हैं। लेकिन जानबूझकर या तो उनके संबंधित कागजों में कमी निकाल दी जाती है या फिर छोटे-छोटे कामों के लिए कई-कई दिन या कई-कई महीनों तक उन्हें धक्के खिलाए जाते हैं ताकि अपने कार्य को आसानी से करवाने के लिए वह दलालों के पास जाएं। क्योंकि अधिकारी-कर्मचारी सीधे तौर पर जनता से पैसा नहीं मांग सकते, लेकिन दलालों के माध्यम से (परोक्ष रूप से) संबंधित अधिकारी- कर्मचारी आसानी से पैसा वसूलते हैं यानि अगर कहें कि जनता को जानबूझकर धक्के खिला- खिला कर दलालों के पास जाने को मजबूर किया जाता है तो गलत नहीं होगा। ऐसे दलालों की आमदनी भी प्रतिमाह लाखों से कम नहीं होती।
विभाग की नस- नस में भ्रष्टाचार का जहर
आज प्रदेश के शहरी निकाय विभाग के हालात इतने बुरे हैं कि छोटे से छोटे कार्य के लिए मोटी रकम देना आज जरूरी बन चुका है। नगर निगम -नगर परिषद और नगर पालिकाओं की नस-नस में अगर कहें भ्रष्टाचार का जहर घुला हुआ है तो गलत नहीं होगा। आज ऐसी कहावत बन चुकी है कि चाहे कोई कितना भी बड़ा शिफारशी या कानून का जानकार क्यों ना हो अपने प्लॉट-अपनी संपत्ति की प्रॉपर्टी आईडी केवल सरकारी खर्चा देकर नहीं बनवा सकता। क्या इस प्रकार की जानकारी ऊपरी लेवल पर नहीं हो, ऐसा मुमकिन नहीं है। फिर आखिर इस पर कड़ी कार्रवाई आज तक क्यों नहीं देखी गई।
अनिल विज से विभाग लेना रहा दुर्भाग्यपूर्ण
इससे पहले शहरी निकाय विभाग प्रदेश के मौजूदा गृह-स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के पास था। विज द्वारा विभाग में तमाम तरह के कई सुधारात्मक प्रयोग किए गए। लगातार जनता को राहत देने का काम किया गया। किसी भी समय अनिल विज का औचक निरीक्षण लगातार सुर्खियों में रहा। प्रदेशभर में अधिकारी- कर्मचारी इस बात से भयभीत रहते थे कि कहीं कोई पीड़ित अनिल विज के दरबार में ना पहुंच जाए। इसलिए जनता को काफी हद तक राहत मिलती थी। जबकि आज यह विभाग उनके पास नहीं है। विभाग का अनिल विज से जाना कहीं- ना- कहीं प्रदेश की जनता के लिए दुर्भाग्यवान साबित हुआ है।
आखिर क्यों समय-समय पर संबंधित मंत्री की रही है चुप्पी ?
प्रदेश के शहरी निकाय विभाग के मंत्री कमल गुप्ता है जो हिसार से दो बार विधायक बन चुके हैं। लेकिन किसी भी ऐसे मामले में मंत्री के मुखर बयान या सख्त कार्रवाई के आदेश कभी देखने- सुनने को नहीं मिले, इससे भी कहीं ना कहीं उनकी कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े होते हैं।

भाजपा का महत्वपूर्ण और पैट शहरी वोटरों के साथ ऐसा कुठाराघात क्यों ?
भारतीय जनता पार्टी हमेशा शहरी वोटरों की पसंदीदा पार्टी रही है। या यूं कहें कि भाजपा का अस्तित्व जब प्रदेश में ना के बराबर था, तब भी पार्टी को जिंदा रखने में शहरवासियों की ही अहम भूमिका थी। सदा से शहरी वोटरों ने भाजपा को ताकत प्रदान की। आज भी शायद ग्रामीण हलकों से भाजपा को ज्यादा उम्मीद नही होगी। ऐसे में क्यों भाजपा के पैट शहरी वोटरों के साथ ऐसा कुठाराघात हो रहा है, क्यों शहरियों के पैसों को बड़ी आसानी से लूटा जा रहा है, अगर अभी से कोई कदम नहीं उठाया गया तो इसका भारी खामियाजा भारतीय जनता पार्टी को भुगतना पड़ सकता है। क्योंकि इस बार भाजपा के लिए अति महत्वपूर्ण शहरी वोटरों को जोड़कर रखना इतना आसान नहीं होगा। शहरी निकाय विभाग जैसे विभागों के मानसिक टॉर्चर ने कहीं ना कहीं शहरवासियों को विचलित किया है। शहरी निकाय विभाग की स्थितियां देखकर शहरवासी कहीं ना कहीं मौजूदा सरकार पर भी टिप्पणियां करते नजर आने लगे हैं।
शहरी निकाय विभाग की कार्यशैली ऐसी रही तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है जीत की राह
विधानसभा-लोकसभा चुनावों को मात्र 1 वर्ष शेष है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल के जीरो टॉलरेंस के वायदे को लेकर तमाम विभागों में तमाम सुधार देखे जाते रहे हैं। सदा से भ्रष्टाचार को लेकर पुलिस विभाग बदनाम रहा है, लेकिन आज स्तिथियाँ बदल चुकी है। प्रदेश की जनता कहीं ना कहीं हरियाणा पुलिस के प्रति अच्छे भाव रखने लगी है। लेकिन शहरी निकाय विभाग सुधारने को कतई तैयार नहीं नजर आता। अगर कहे कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल के जीरो टोलरेंस के सपने को चकनाचूर करने में शहरी निकाय विभाग लगा है, तो यह सच भी है। अगर अभी से कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया तो इसमें कोई दो राय नहीं कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में इसका खामियाजा भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ सकता है।
"हरियाणा के लोकल बॉडी मनिस्टर कमल गुप्ष्टा कहतें हैं कि भ्रष्टाचार का कोई भी मामला सहन नहीं किया जाएगा। 0% टोलरेंशन सरकार और मुख्यमंत्री की नीति है। हर गंभीर मामले पर जांच करवाई जाएगी।"
कमल गुप्ता, शहरी निकाय मंत्री, हरियाणा सरकार