BJP के खिलाफ वोट न डालना पड़े, उन परिस्थिति से बचने के लिए अभय ने दिया इस्तीफा : कुलदीप शर्मा

Edited By Manisha rana, Updated: 05 Feb, 2021 11:18 AM

abhay resigns to avoid those situations not to vote against bjp kuldeep sharma

हरियाणा के कद्दावर कांग्रेसी नेता गन्नौर से विधायक कुलदीप शर्मा ने आज सरकार को जहां अल्पमत में बताया। वहीं कहा कि बहुत से जेजेपी और निर्दलीय विधायक सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं, सुर बदल रहे हैं और इंटरव्यू दे रहे...

चंडीगढ़ (धरणी) : हरियाणा के कद्दावर कांग्रेसी नेता गन्नौर से विधायक कुलदीप शर्मा ने आज सरकार को जहां अल्पमत में बताया। वहीं कहा कि बहुत से जेजेपी और निर्दलीय विधायक सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं, सुर बदल रहे हैं और इंटरव्यू दे रहे हैं। बहुत से विधायकों ने चेयरमैनशिप छोड़ी। अब विधानसभा में कांग्रेस द्वारा लाया जा रहा अविश्वास प्रस्ताव के बाद तय हो जाएगा कि वह लोग केवल बयानबाजी कर रहे हैं या सच में वह किसानों के साथ हैं। इसके साथ ही उन्होंने किसान आंदोलन को हल्के में लेना सरकार के लिए भारी भूल बताया और कहा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में इस सरकार को उसी प्रकार से खामियाजा भुगतना पड़ेगा जैसे कांग्रेस ने अन्ना हजारे के आंदोलन को हल्के में लिया था और 2014 के चुनावों में इसकी भारी क्षति उठाई थी।

कुलदीप शर्मा पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भी रह चुके हैं और विधानसभा अध्यक्ष के पद पर भी आसीन रह चुके हैं। कुलदीप शर्मा एक राजनीतिक परिवार से  होने के कारण काफी स्पष्टवादी नेता माने जाते हैं। उनके बयानों के कारण विवादों में रहना उनके लिए एक आम बात रही है। उनके पिता चिरंजीलाल शर्मा 4 बार सांसद रह चुके हैं। कुलदीप शर्मा ने अपने इस इंटरव्यू में बड़ी बेबाकी से सभी प्रश्नों का जवाब दिया। उनसे बातचीत के कुछ अंश आपके सामने प्रस्तुत हैं:-

प्रश्न : कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रही है। क्या आपको लगता है सफल होगा ?
उत्तर : 
सबसे पहले तो यह जानना जरूरी है कि हम अविश्वास प्रस्ताव ला क्यों रहे हैं। सरकार अल्पमत की सरकार है। बीजेपी और कुछ निर्दलीय विधायकों की बैसाखियों पर यह सरकार चल रही है। जब किसान आंदोलन उग्र हुआ और उसकी तपिश बढ़ी। जब गांव में यह पोस्टर लगने लगे कि बीजेपी और जेजेपी के विधायकों का इस गांव में आना वर्जित है। आने नहीं देंगे। मंत्रियों की तो हिम्मत तो कहां है जब मुख्यमंत्री के सम्मेलनों को होने नहीं दिया गया। उनके हेलीकॉप्टर को लैंड तक नहीं होने दिया। किसानों के प्रति बढ़ती सहानुभूति को देखकर कुछ विधायकों ने जिसमें 7 विधायक जजपा के हैं उन्होंने अपने इंटरव्यू में किसान के पक्ष की बात की और कुछ ने तो चेयरमैनशिप उसको छोडा इसी प्रकार समर्थन करने वाले कुछ निर्दलीय विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया और मीटिंग्स की, चेयरमैनशिप छोड़ी और कहा कि किसान आंदोलन का समर्थन करते हैं और सरकार का विरोध करते हैं। हम यह चाहते थे कि जो यह स्टैंड उनके द्वारा लिया गया है, वह विधानसभा में भी है या केवल पब्लिक में और मीडिया में इस प्रकार की बयानबाजी की जा रही है। इन लोगों का स्टैंड स्पष्ट होना चाहिए। अगर इस प्रकार के बयान देने वाले अपने स्टैंड पर कायम है तो सरकार गिर जाएगी।क्योंकि सरकार की कार्यशैली और किसान आंदोलन के दबाव से भाजपा के लोग भी सुर बदलने लगे हैं। अब असंतोषतो की गिनती बढ़ती जा रही है और किसी भी समय एक धमाका हो सकता है। ऐसी स्थिति में हमारे नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात की। ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके कि सरकार अल्पमत में है।

प्रश्न : पिछले दिनों भाजपा नेतृत्व से मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री मिल कर आए और उन्होंने वहां सारे मामलों में एकता दिखाई। फिर यह सरकार अल्प मत में कैसे है ?
उत्तर : 
जो लोग प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मिलकर आए हैं। उनको उनसे मिलने की जरूरत क्यों पड़ी।क्यों ऐसी परिस्थितियां बनी कि हरियाणा की राजनीति हरियाणा की सीमाओं को तोड़कर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के क्षेत्र में पहुंच गई। कहीं ना कहीं वह यह विश्वास दिलवाने गए थे कि भले ही हमें लोग गांवों में न घुसने दे, भले ही आज हरियाणा सरकार देश की सबसे अलोकप्रिय सरकार है, उसके बावजूद संकट की इस घड़ी में हम चौधरी देवीलाल के वंशज और खून उस खून को सफेद करने में लगे हुए हैं। वह विश्वास दिलाने गए थे कि हमें बहुत सालों बाद राज की खाज मिटाने का मौका मिला है, इसलिए हम अपनी राज की खाज को मिटायेंगे। चाहे किसान आंदोलन कहीं जा रहा हो, चाहे जनता की सहमति कहीं जा रही हो।

प्रश्न : चौधरी देवी लाल के पौत्र अभय चौटाला ने भी इसी आंदोलन के कारण इस्तीफा दिया है ?
उत्तर : 
मैं विधानसभा का अध्यक्ष रहा हूं और उसके नाते मैं कह सकता हूं कि अभय चौटाला ने जो पहला कंडीशनल इस्तीफा दिया, वह चार बार चुनकर आ चुके हैं, क्या उन्हें नहीं पता कि कंडीशनल इस्तीफा की कोई कीमत नहीं होती। यह मंजूर नहीं किया जा सकता। उन्होंने फिर कुछ आदमियों को भेजा। होना यह चाहिए था कि जब नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की, अगर अभय चौटाला किसानों के हक में हैं और सरकार के खिलाफ हैं तो कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन कर, सरकार को गिराने में मदद करनी चाहिए थी। मगर अभय चौटाला जब नेता प्रतिपक्ष थे। तब भी भारतीय जनता पार्टी की बी टीम थे और आज भी विधानसभा में पहुंचे हैं तो भाजपा से उनकी मिली जुगत है। उन्होंने उस परिस्थिति से बचने के लिए कि विधानसभा में अपने बीजेपी के आकाओं के खिलाफ वोट न डालने पड़े, इसलिए इस्तीफा दिया। देख लेना भविष्यवाणी करता हूं कि ऐलनाबाद के उपचुनाव में भाजपा और अभय चौटाला की मिलीभगत जगजाहिर हो जाएगी।

प्रश्न : राकेश टिकैत द्वारा आज जींद में पहुंचना राजनीतिक दृष्टिकोण से क्या संकेत हैं ?
उत्तर : 
हरियाणा और पंजाब दोनों ही कृषि प्रधान प्रदेश हैं। हरियाणा का किसान पहले भी कई आंदोलनों का साक्षी रहा है और कई आंदोलनों के सिर पर हरियाणा में सरकारें बदली हैं। इसलिए जो जन आक्रोश दिखाई दे रहा है कि 1 दिन के नोटिस पर कंडेला में या रात-रात के अंदर गाजीपुर में हजारों लाखों की भीड़ उमड़ कर आ रही है। दो चीजें हुआ करती हैं एक तो व्यक्ति विशेष का प्रभाव और दूसरा मुद्दे की गर्मी। आज के दिन किसानों के मुद्दे में इतनी गर्मी है जो जहां बुलाएगा, वहां भीड़ का आलम होगा। क्योंकि जनता आज काले कानूनों के खिलाफ अविश्वास के रूप में जाग चुकी है। इसलिए आप देख रहे हैं कि कंडेला में जब सम्मेलन हो रहा है तो हजारों लाखों की भीड़ आ रही है। पलवल में करण दलाल के नेतृत्व में सभी पार्टियों के, सभी बिरादरी के लोग इकट्ठे हुए। वहां भी एक अभूतपूर्व धरना इस रविवार-सोमवार से शुरू हो चुका है। जहां भी-जो भी किसानों के मुद्दे को उठा रहा है, एकदम से जनता के आकर्षण का केंद्र बना है।

प्रश्न : लाल किले पर लोगों ने चढ़कर तिरंगे का अपमान किया। क्या यह घटना सही है ?
उत्तर : 
अगर कोई मुझसे पूछे कि लाल किले पर कोई झंडा तिरंगे के अलावा फहराया जाएगा तो मैं इसे कभी सहमत नहीं हो सकता। परंतु आरएसएस तो इस इतिहास को पहले भी दोहरा चुकी है। 1980 में आर एस एस के लोगों ने लाल किले की प्राचीर पर भगवा झंडा फहरा दिया था। इतिहास इसका गवाह है। लेकिन यह जो झंडा फहराया गया इसके पीछे राजनीतिक साजिश है और साजिश को करने वाली केंद्र और हरियाणा की सरकार है। मुकरबा चौक से लाल किला 21 किलोमीटर दूर है। 21 किलोमीटर दूर किसान बिना रोक-टोक के लाल किले के दरवाजे तक पहुंच गए। जो दरवाजे हाथी नहीं तोड़ सकते थे। वह खुले छोड़ दिए गए। जहां सेना का कंट्रोल रहता है। उस दिन सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं था। दीप सिद्दू नाम का व्यक्ति जो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की झोली में बैठा देखा गया है। वह उसका नेतृत्व कर रहा था।

प्रश्न : राकेश टिकैत पर यूपी की कहीं ना कहीं मोहर है और उनका हरियाणा में आना, क्या माना जाए कि हरियाणा के किसान नेतृत्व विहीन है ?
उत्तर : 
नहीं, ऐसा नहीं है। हरियाणा के किसानों के कई संगठन इस आंदोलन को गति दे रहे हैं। हरियाणा के लोगों का 36 बिरादरी का फुल सपोर्ट इस आंदोलन को मिल रहा है। चंडीगढ़ से दिल्ली बॉर्डर तक हरियाणा से गुजरने पर आप देखें तो 20 जगह लंगर दिखाई देंगे। सैकड़ों हजारों की भीड़ दिखाई देगी। नेतृत्व विहीन नहीं है। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर टिकैत परिवार की किसानों को नेतृत्व प्रदान करने का इतिहास रहा है।

प्रश्न : इस मसले का आपके जहन में हल क्या है, क्योंकि दिनोंदिन बढ़ रही महंगाई लोगों को त्रस्त कर रही है ?
उत्तर : 
महंगा तो पेट्रोल और डीजल भी हो रहा है। क्या केंद्र सरकार की बिना कृपा दृष्टि से हो रहा है।इनको महंगाई की चिंता नहीं है। कृषि कानून बनाने से पहले किसानों के असली संगठनों से बात करनी चाहिए थी न की गोदी संगठनों से, 19 पार्टियां विपक्ष में है, उनको भी बुलाकर बात करते। क्योंकि देश की किसानी का एक नया चेहरा सरकार लाना चाहती थी तो सबकी सहमति से इसे लाना चाहिए था। लेकिन संसद में तो बहस तक नहीं हुई। राज्यसभा में जबरदस्ती इसे पास कर दिया गया। कहीं कोई डिस्कशन नहीं हुई। किसान से बात नहीं की। उसका रोष देखने को मिल रहा है। कानून तो है ही गलत, इनको लाने का तरीका भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि यह जोर जबरदस्ती से चंद पूंजीपति खानदानों को फायदा पहुंचाने की नियत से कृषि कानून लेकर आए हैं और मेरा यह मानना है कि जिस प्रकार से जन आक्रोश-जन आंदोलन देश में खड़ा हो रहा है। 2011 में जब लोकपाल बिल पर महाराष्ट्र से अन्ना हजारे ने आंदोलन किया तो तीन चीजें थी वार्ड स्पेक्ट्रम, कॉल स्कैंडल, कामनवेल्थ गेम स्कैंडल। कांग्रेस बदनाम हो गई थी। हालांकि बाद में उसमें कुछ नहीं निकला। उस समय लोकपाल की नियुक्ति के बारे में उन्होंने अनशन किया। उसको कांग्रेस ने हल्के में लिया और उसकी कीमत 2014 के चुनाव में हमने अदा की। आज भारतीय जनता पार्टी उसी ऐतिहासिक गलती की ओर बढ़ रही है। किसानों के आंदोलन को हल्के में लेना एक ऐतिहासिक भूल होगी। 2024 का चुनाव परिणाम आप देखेंगे कि भाजपा को उसकी कीमत अदा करनी होगी।

प्रश्न : सत्ता पक्ष का आरोप है कि किसान आंदोलन को कांग्रेस भड़का रही है ?
उत्तर : 
बीजेपी उकसाने का काम किया करती है। मैंने हमेशा आरएसएस को राष्ट्रीय षड्यंत्रकारी संघ कहा है। षड्यंत्र करते हैं। लाल किले पर झंडा फहराने पर षड्यंत्र हो गया। उसके बाद सिंघु बॉर्डर पर किसानों पर पत्थर फेंके गए, करनाल में फेंके गए, राजौंद पर फेंके गए, बसताड़ा में, निसिंग में फेंके गए। हिंदुस्तान- पाकिस्तान बॉर्डर पर इतनी कांटे की बाढ़ नहीं लगी हुई, जितनी दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर, गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर लगा रखी है। सड़कों पर कील गाड़ दी गई है। और तो और पुलिस के सिपाहियों के हाथों में लकड़ी के डंडों की बजाय लोहे  की लाठियां दी गई है। ताकि किसानों का सिर फोड़ दिए जाए। 

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