बड़ा फैसला: 80 साल के बुजुर्ग को 62 साल बाद मिला इंसाफ, हक के लिए लगाए अदालतों के कई चक्कर

Edited By Isha, Updated: 14 Dec, 2025 03:41 PM

80 year old man finally gets justice after 62 years

लंबे समय से चल रहा जमीन से जुड़ा एक कानूनी विवाद आखिरकार 62 साल बाद अपने अंजाम तक पहुंच गया है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने फरीदाबाद में छह दशक पुराने इस संपत्ति विवाद पर अंतिम फैसला सुनाते हुए निजी

फरीदाबाद: लंबे समय से चल रहा जमीन से जुड़ा एक कानूनी विवाद आखिरकार 62 साल बाद अपने अंजाम तक पहुंच गया है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने फरीदाबाद में छह दशक पुराने इस संपत्ति विवाद पर अंतिम फैसला सुनाते हुए निजी डेवलपर के खिलाफ मूल अलॉटी के अधिकारों को पूरी तरह बरकरार रखा है।  

जमीन की मौजूदा कीमत  7 करोड़ रुपये 
दरअसल फरीदाबाद जिले में 5,103 वर्गफुट की वह ज़मीन, जिसे 62 साल पहले 14,000 रुपये से भी कम में खरीदा गया था, अब मौजूदा बाजार कीमत करीब 7 करोड़ रुपये होने के बावजूद केवल 25% अतिरिक्त नाममात्र राशि पर सौंपे जाने का आदेश दिया गया है. इस संपत्ति के एकमात्र वारिस सी. के. आनंद की उम्र 80 वर्ष से अधिक है. जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा, ‘जो पक्ष दशकों तक अपने दायित्वों के पालन को टालता रहा हो, वह बाजार कीमतों में बढ़ोतरी को ढाल बनाकर नहीं अपना सकता।’
 
आधी रकम जमा कर दी  गई थी 
मामला 1963 का है, जब एम/एस आरसी सूद एंड कंपनी लिमिटेड ने फरीदाबाद के सूरजकुंड के पास ईरोस गार्डन्स कॉलोनी शुरू की और खरीदार नांकी देवी (आनंद की मां) से अग्रिम राशि ली. कंपनी ने प्लॉट नंबर 26-ए (350 वर्ग गज) और प्लॉट नंबर बी-57 (217 वर्ग गज) क्रमशः 24 और 25 रुपये प्रति वर्ग गज की दर से बेचने का समझौता किया। नांकी देवी ने लगभग आधी रकम जमा कर दी थी।

पीढ़ियों तक चली कानूनी लड़ाई

इसके बाद वैधानिक अड़चनों, प्रशासनिक देरी और पीढ़ियों तक चली कानूनी लड़ाइयों का सिलसिला शुरू हुआ। 1963 का पंजाब शेड्यूल्ड रोड्स एंड कंट्रोल्ड एरियाज एक्ट और 1975 का हरियाणा डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन ऑफ अर्बन एरियाज एक्ट लागू होने के बाद डेवलपर ने इन्हें कब्जा न देने का कारण बताया। 1980 के दशक के मध्य में, तीसरे पक्ष को प्लॉट बेचे जाने की आशंका पर अलॉटियों ने केवल बिक्री रोकने के लिए अदालत का रुख किया। तब भी हाईकोर्ट ने माना कि अलॉटमेंट वैध हैं और कंपनी उन्हें एकतरफा रद्द नहीं कर सकती. इसके बावजूद कब्जा नहीं मिला।

2002 में मुकदमेबाजी का नया दौर शुरू हुआ. निचली अदालतों ने अलॉटियों के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन डेवलपर हाईकोर्ट पहुंचा और समय-सीमा, 1964 में कथित रद्दीकरण और छह दशक पुराने सौदे को आज के बाजार में लागू करना अनुचित होने जैसे तर्क दिए. जस्टिस गुप्ता ने शनिवार को जारी 22 पन्नों के फैसले में इन सभी दलीलों को खारिज कर दिया।

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