Edited By Yakeen Kumar, Updated: 19 Dec, 2025 09:51 PM

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय महासचिव एवं राज्यसभा के सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से बनाया गया नया विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार तथा आजीविका मिशन कानून सही मायनों में मनरेगा कानून की दिनदिहाड़े हत्या है।
चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय महासचिव एवं राज्यसभा के सदस्य रणदीप सिंह सुर्जेवाला का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से बनाया गया नया विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार तथा आजीविका मिशन कानून सही मायनों में मनरेगा कानून की दिनदिहाड़े हत्या है। यह कानून करोड़ों मजदूरों के हकों पर डाका है और मेहनतकशों की रोजी-रोटी पर हमला है । गरीबों के काम मांगने के अधिकार का हनन है। मजदूरों के अधिकारों पर कुठाराघात है तथा एस.सी., एस.टी. व ओ.बी.सी. समाज के मनरेगा मजदूरों को सामाजिक न्याय से वंचित करने की साजिश है। राज्यसभा में अपनी बात रखते हुए कांग्रेस महासचिव ने कहा कि मनरेगा कानून का नाम बदलना नाथूराम गोडसे के अनुयायियों द्वारा गांधी के दर्शन को खत्म करने की एक और साजिश है। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं। साल 2015 से ही मनरेगा खत्म करने की साजिश की जा रही है । 28 फरवरी 2015 को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि मनरेगा कांग्रेस की नाकामियों का एक जीता-जागता स्मारक है । सुर्जेवाला ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि साल 2020-21 में मनरेगा में 31.97 लाख परिवारों को काम मिला। साल 2025-26 में 12 दिसंबर तक केवल 6.74 लाख परिवारों को ही काम मिल पाया है। साल 2020-21 में मनरेगा मजदूरों को औसतन साल में 52 दिन ही काम मिला। साल 2025-26 में यह संख्या घटकर साल में 36 दिन रह गई है। साल 2020-21 में मनरेगा में 11.19 करोड़ मजदूरों को काम मिला । साल 2025-26 में 12 दिसंबर तक यह संख्या घटकर 6.25 करोड़ रह गई है। यानी अब तक 5 करोड़ मजदूरों को कम काम मिला है।
राज्यसभा सदस्य ने नए कानून पर लगाए सवालिया निशान
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रणदीप सिंह सुर्जेवाला ने कहा कि मनरेगा को बदल कर बनाया गया नया कानून तो पूरी तरह से करोड़ों मजदूरों और गरीबों के अधिकारों को खत्म करने का एक दुश्मनीपूर्ण हमला है। रोजगार देने की जिम्मेवारी से सरकार ने पल्ला झाड़ लिया है। मनरेगा कानून में मजदूरी का सारा बजट केंद्र सरकार द्वारा दिया जाता था। अब नए कानून में केंद्र सरकार केवल 60 प्रतिशत बजट देगी और 40 प्रतिशत प्रांत की सरकार को देना पड़ेगा । जी.एस.टी. लगाने तथा केंद्रीय सैस से 5 लाख करोड़ सालाना वसूलने के बाद राज्यों के पास तो पहले से पैसा है ही नहीं। ऐसे में न राज्य पैसा दे पाएंगे, न करोड़ों मजदूरों को रोजगार मिलेगा। ऐसे में न बांस रहेगा, ना बांसुरी । कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार ने मजदूरों का काम मांगने का अधिकार छीना है। मनरेगा कानून डिमांड ड्राइवन है। मजदूर अगर काम मांगे, तो काम देना पड़ेगा, चाहे वो देश के किसी प्रांत, जिले या गांव में हों। नए कानून में केंद्र सरकार तय करेगी कि किस प्रांत में कितना काम देना है, प्रांत के किस हिस्से में देना है और कितने दिन देना है। यानी सारे अधिकार अब केंद्र सरकार के पास हैं, मजदूरों के पास नहीं रह गए हैं। पहले मनरेगा कानून में बजट की कोई सीमा नहीं थी । जब भी जितने भी लोग, जिस जिले या राज्य में काम मांगें, काम देना होगा और बजट भी देना होगा। नए कानून में केंद्र सरकार फैसला करेगी कि किस राज्य को कितना बजट देना है। जिसे चाहें दो, जिसे चाहें मत दो। यानी अंधा बांटे सिरणी, मुड़-मुड़ अपनों को दे।
काम की गारंटी छीनने की है साजिश
कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुर्जेवाला ने कहा कि मनरेगा कानून 100 दिन तक के काम का अधिकार है, गारंटी है । यह गारंटी भारत के संविधान के आर्टिकल 39 (ए. ) और 41 का प्रतिबिंब है। अब जैसा नए कानून के सैंक्शन 3 में कहा भी है कि मौजूदा कानून एक प्रायोजित स्कीम है और कुछ नहीं। यानी रोजगार के अधिकार की गारंटी अब खत्म। पहले प्रावधान था कि मनरेगा कानून में काम मांगने की न कोई पात्रता और न कोई समय सीमा। जब भी रोजगार मांगा जाए, तो काम देना होगा। नए कानून में किसान और मजदूर का बंटवारा करने की एक साजिश रची गई है। कानून में प्रावधान है कि बिजाई और कटाई के समय 60 दिन तक कानून में कोई मजदूरी नहीं दी जाएगी। सुर्जेवाला ने सवाल पूछते हुए कहा कि क्या भारत में अलग-अलग फसलों की खेती का अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय नहीं है? उदाहरण के तौर पर, खरीफ सीजन में अलग-अलग राज्यों में धान की फसल के बीजने का समय मई से अगस्त तक है और धान की कटाई का सितंबर से जनवरी तक है। इसी तरह, रबी में गेहूं की फसल की बिजाई अलग-अलग राज्यों में अक्तूबर से जनवरी तक है और गेहूं की कटाई फरवरी से जून तक है। कई बड़े राज्यों में जैसे यू.पी., मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि में तो राज्य के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में फसलों की बुआई और कटाई के समय में अंतर है। तो ऐसे में 60 दिन मजदूरी बंद करवा, जहां एक तरफ काम न देने का तरीका है, तो दूसरी तरफ किसान और मजदूर में टकराव पैदा करने की भी साजिश है। पिछले 10 साल के आंकड़े तो यह भी बताते हैं कि मनरेगा के बावजूद 8 साल के दौरान तो खेती में मजदूरी के रेट ज्यादा रहे और मनरेगा में कम। तो मनरेगा से बिजाई और कटाई की मजदूरी को जोडऩा क्या सही है?
ग्राम पंचायतों से भी छीने जाएंगे अधिकार
कांग्रेस नेता सुर्जेवाला ने कहा कि मनरेगा कानून में काम देने का कार्यक्रम ग्राम पंचायत बनाती थी, ग्राम पंचायतें ही सारे काम मंजूर करती थी। नए कानून की धारा 4 में अब सब ग्रामीण कार्य पी.एम. गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान का हिस्सा होंगे। यानी सब कुछ केंद्र सरकार के हाथ में होगा। वैसे भी पी.एम. गति शक्ति एक आधारभूत संरचनात्मक कार्यक्रम है, जिसका लक्ष्य ग्रामीण रोजगार पैदा करने से पूरी तरह से अलग है। ऐसे में ग्रामीण रोजगार को पी.एम. गतिशक्ति से जोडऩा क्या उचित है? उन्होंने कहा कि मनरेगा कानून की धारा 6 में मनरेगा मजदूरी प्रांत के न्यूनतम मजदूरी दर के बराबर होनी चाहिए। यानी मनरेगा कानून में मजदूरी की दरों का कानूनी अधिकार है। अब नए कानून में प्रांत की न्यूनतम मजदूरी की दरों पर मजदूरी देना अनिवार्य नहीं है। सैक्शन 10 में तो यहां तक लिख दिया गया है कि प्रांत के अलग-अलग हिस्सों में भी मजदूरी का रेट अलग-अलग हो सकता है। एक तरह से यह सीधे-सीधे गरीब मजदूरों के शोषण की गारंटी है। महात्मा गांधी श्रम को पूजा का दर्जा देते थे और श्रमिक को भगवान का। शायद इसीलिए देश के करोड़ों भगवान और देवताओं, यानी देश के करोड़ों मजदूरों के रोजगार का अधिकार छीनने के लिए सबसे पहले महात्मा गांधी का नाम हटाया गया। एक तरह से यह करोड़ों भगवानों के साथ भी दुश्मनी और जालसाजी है। इसे ही कहते हैं, मुंह में राम बगल में छुरी। पिछले 11 सालों में प्रचार के लिए केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी का चश्मा तो उधार ले लिया, पर उनके विचारों को दरकिनार कर दिया। इसी तरह, भगवान राम के नाम पर सत्ता तो हथिया ली, पर उनके आदर्शों की तिलांजलि दे दी। यही तरीका है इस सरकार का। सुर्जेवाला ने उदाहरण देते हुए कहा कि तुलसीदास जी ने कहा है जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी। अर्थात जिस राजा के राज्य में उसकी प्रजा को दुख भोगना पड़े, वह राजा नरक का अधिकारी होता है। सुर्जेवाला ने कहा कि केंद्र सरकार ने गांधी के राम और करोड़ों भगवानरूपी मजदूरों को घाव दिए हैं। देश के करोड़ों मेहनतकश मजदूर भाजपा सरकार को कभी माफ नहीं करेंगे। गरीब की आह इस सरकार की चूलें हिलाकर रख देगी।