पिता की मौत के बाद सुनील छोडऩा चाहते थे पहलवानी, मां ने हौसला बढ़ाया तो रच दिया इतिहास

Edited By Shivam, Updated: 24 Feb, 2020 01:29 PM

wrestler sunil kumar success story mother encouraged him

दिल्ली में खेली गई एशियन कुश्ती चैम्पियनशिप के ग्रीको रोमन कैटेगरी में 27 साल बाद देश को गोल्ड मेडल जिताने वाले अंतरराष्ट्रीय पहलवान सुनील कुमार ने देश के लिए इतिहास रचा है। इससे पहले 1993 में एशियाई चैम्पियनशिप में पप्पू यादव ने भारत के लिए ग्रीको...

सोनीपत: दिल्ली में खेली गई एशियन कुश्ती चैम्पियनशिप के ग्रीको रोमन कैटेगरी में 27 साल बाद देश को गोल्ड मेडल जिताने वाले अंतरराष्ट्रीय पहलवान सुनील कुमार ने देश के लिए इतिहास रचा है। इससे पहले 1993 में एशियाई चैम्पियनशिप में पप्पू यादव ने भारत के लिए ग्रीको रोमन में गोल्ड मेडल दिलाया था। इसके बाद देश के पहलवान गोल्ड मेडल नहीं जीत पाए। 27 साल बाद देश को गोल्ड मेडल दिलाकर चर्चाओं में आए सोनीपत जिले के डबरपुर गांव निवासी अंतरराष्ट्रीय पहलवान सुनील कुमार इस मुकाम तक पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं रहा।

उन्होंने तीन साल जींद जिले के निडानी व रोहतक शहर में संचालित मेहर सिंह अखाड़ा में वरिष्ठ कुश्ती कोच रणबीर ढाका के निर्देशन में सुबह और शाम कड़ी मेहनत कर इस मुकाम को हासिल किया। अब पहलवान सुनील का लक्ष्य 2020 में टोक्यो में होने वाले ओलिंपिक में देश के लिए गोल्ड मेडल लाना है।

पिता बड़े भाई को बनाना चाहते थे पहलवान 
पहलवान सुनील उनके परिवार में वो तीन भाई और एक बहन हैं। पिता अश्विनी उनके बड़े भाई मोनू को पहलवानी में उतारना चाहते थे। लेकिन मोनू ने पहलवानी को कॅरियर बनाने से मना कर दिया। इसके बाद पिता ने दूसरे नंबर के बेटे सुनील को रेसलर बनने के लिए अखाड़ा में जाने पर जोर दिया। सुनील उस समय आठवीं कक्षा में पढ़ते थे। सुनील ने पिता के सपने के लिए हां भरी तो उन्हें जींद के निडानी की स्पोट्र्स अकादमी में भेजा गया।

इसके कुछ महीनों बाद ही पिता अश्विनी की सड़क हादसे में मौत हो गई। सुनील ने पहलवानी छोडऩे का मन बना लिया। लेकिन मां अनीता देवी ने बेटे सुनील को पिता सपना पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया। मां ने उसे वापस अखाड़े में भेज दिया। वहां जाने के बाद बड़ी बहन रेनू, बड़े भाई मोनू और मां अनीता ने हर संभव सहारा देकर में खेल में आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित करते रहे। अब सुनील ने देश को 27 साल बाद उसका गौरव लौटाया है।

2019 में एशियन कुश्ती चैम्पियनशिप में सिल्वर ही जीत पाए थे सुनील
पिछले साल 2019 भी भारतीय पहलवान सुनील ने चीन में हुई एशियन कुश्ती चैम्पियनशिप के फाइनल में जगह बनाई थी। लेकिन तब उन्हें ईरान के हुसैन अहमद नौरी ने हरा दिया था। तब भी उन्होंने कजाकिस्तान के अजामत कुस्तुबयेव को ही सेमीफाइनल में हराया था। सुनील को इस चैम्पियनशिप में रजत पदक मिला था। अब सुनील के अलावा मंगलवार को अर्जुन हालाकुर्की ने ग्रीको रोमन कैटेगरी के 55 किलो भार वर्ग में ब्रॉन्ज जीता है। सुनील ने इससे पहले 2017 कामनवेल्थ चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। जूनियर एशियन रेसलिंग चैम्पियनशिप में तीन बार ब्रांज मेडल, सीनियर नेशनल रेसलिंग चैम्पियनशिप में तीन मेडल और अंडर 23 आयु वर्ग की नेशनल रेसलिंग चैम्पियनशिप में दो मेडल जीत चुके हैं।

पहलवानी के साथ पढ़ाई में मेधावी रहे हैं रेसलर सुनील
2016 से मेहर सिंह अखाड़ा में रहकर 87 किग्रा भार वर्ग में कुश्ती की प्रैक्टिस करने वाले पहलवान सुनील ने बताया कि खेल अभ्यास के साथ 10वीं की परीक्षा 80 फीसदी अंक और 12वीं  की परीक्षा 75 फीसदी अंकों के साथ पास की। 2017 के दिसंबर माह में सुनील ने एयरफोर्स में वायु सैनिक के पद पर ज्वाइन किया। एक साल तक एयरफोर्स में सेवाएं देने के बाद उन्होंने परिजनों के कहने पर 2018 के नवंबर माह में रेलवे में टीटी के पद पर ज्वाइन किया। सुनील बताते हैं कि रोड एक्सीडेंट में पिता के निधन के बाद उन्होंने रेसलिंग छोडऩे का फैसला कर लिया था लेकिन मां अनीता के प्रोत्साहन की वजह से कॅरियर में टर्निंग प्वाइंट आया और रेसलिंग को जिद और जुनून बनाकर अखाड़े में उतरा। छह साल के कॅरियर में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिताओं में देश व राज्य के लिए मेडल जीतता गया।

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