हरियाणा का ऐसा गांव, जहां के ग्रामीण आपस में ही करवाते हैं शादियां

Edited By Deepak Kumar, Updated: 24 Aug, 2025 05:22 PM

village in haryana where marriages are conducted within same village

हरियाणा के करनाल जिले के गांव हलवाना में आज भी एक अनोखी परंपरा जीवित है, यहां लड़के और लड़कियों की आपस में, यानी एक ही गांव के अंदर शादियां कराई जाती हैं।

डेस्कः हरियाणा के करनाल जिले के गांव हलवाना में आज भी एक अनोखी परंपरा जीवित है, जो इसे बाकी गांवों से अलग बनाती है। यहां लड़के और लड़कियों की आपस में, यानी एक ही गांव के अंदर शादियां कराई जाती हैं, चाहे लड़का और लड़की पड़ोसी ही क्यों न हों।

पीढ़ियों का ध्यान, लेकिन गोत्र केवल पिता का

इस गांव में शादियों को लेकर एक खास नियम का पालन किया जाता है। शादी करते समय केवल पिता का गोत्र देखा जाता है, और विवाह आठवीं पीढ़ी में किया जाता है, यानी सात पीढ़ी छोड़कर। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, और इसमें लड़के और लड़की के माता-पिता की रजामंदी जरूरी होती है। यहां के लोग मानते हैं कि यह रिवाज सामाजिक समरसता और आत्मीयता को बनाए रखने में मदद करता है।

सिर्फ जून-जुलाई में ही होती हैं शादियां

गांव हलवाना की एक और खास बात यह है कि यहां पूरे साल में सिर्फ दो महीने – जून और जुलाई में ही शादियां होती हैं। इसका कारण यह है कि गांव के ज्यादातर लोग मजदूरी या अन्य काम के सिलसिले में साल भर बाहर रहते हैं और केवल इन्हीं महीनों में गांव लौटते हैं।

दहेज नहीं, प्रसाद में इलायचीदाना

जहां आजकल की शादियों में लाखों रुपये खर्च होते हैं और दहेज को सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है, वहीं हलवाना गांव में दहेज लेना-देना अपराध समझा जाता है। गांव के सरपंच प्रतिनिधि गुरजयंत सिंह के अनुसार, एक शादी का खर्च सिर्फ 2 से 3 हजार रुपये होता है। शादियों में बारातियों को केवल नमकीन और मीठे इलायचीदाने का प्रसाद दिया जाता है।

बेटियां यहां लक्ष्मी का रूप मानी जाती हैं

हलवाना गांव की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि यहां बेटियों को बोझ नहीं, बल्कि लक्ष्मी का रूप माना जाता है। किसी घर में बेटी जन्म लेती है तो परिवार खुशी मनाता है। इसका असर यह है कि गांव में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या अधिक है। आज गांव में 1000 लड़कों पर करीब 1400 लड़कियां हैं – जो समाज में लिंग संतुलन को लेकर एक प्रेरणा है।

जीवन-यापन और शिक्षा की स्थिति

हलवाना गांव में अधिकतर लोग गरीब तबके से हैं। करीब 45% लोग आज भी झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं। इनका जीवन-यापन लोहे के तसले, कढ़ाई आदि बनाना या मरम्मत करना और गांव-गांव जाकर इन्हें बेचना है। शिक्षा की स्थिति कमजोर है, लेकिन सामाजिक रूप से गांव एकता और पारिवारिक मूल्यों में समृद्ध है।

गांव में ही बसती है नई दुनिया

इस गांव में शादी के लिए लड़कों को दूसरे गांव में जाने की जरूरत नहीं पड़ती। गांव की ही लड़कियों से उनकी शादी हो जाती है। एक शादी में आए एक बुजुर्ग ने बताया, “मैं इसी गांव का रहने वाला हूं। मेरी शादी भी 25 साल पहले यहीं हुई थी। आज मेरा परिवार सुखी है और मेरे सभी रिश्तेदारों की शादियां भी इसी गांव में आपस में हुई हैं।”

गांव हलवाना की यह परंपरा आधुनिक समाज को सरलता, समानता और सामाजिक एकता का संदेश देती है। जहां आज रिश्तों में दिखावा, खर्च और भेदभाव हावी हो चुका है, वहीं हलवाना जैसे गांव यह दिखाते हैं कि कम संसाधनों में भी खुशहाल और सशक्त समाज बसाया जा सकता है।

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