SYL विवाद को लेकर SC ने पंजाब-हरियाणा सरकार पर उठाए सवाल, केंद्र को दिए ये निर्देश

Edited By Manisha rana, Updated: 23 Mar, 2023 03:13 PM

sc raised questions punjab haryana government regarding the syl dispute

सतलुज-यमुना-लिंक विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा सरकार पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि दोनों को मिलकर मामले का हल निकालना...

दिल्ली (कमल कंसल) : सतलुज-यमुना-लिंक विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा सरकार पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि दोनों को मिलकर मामले का हल निकालना होगा। आखिरकार दोनों देश के ही राज्य है। इस मामले में दोनों राज्य बैठक कर हल निकाले। वहीं केंद्र को भी सक्रिय भूमिका निभाने के निर्देश दिए गए है। उन्होंने कहा कि मामले में मूकदर्शक नहीं रह सकता है। दो महीने में हलफनामा मांगा है। यह सुनवाई चार अक्तूबर को होगी। 

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद पंजाब ने नहीं किया एसवाईएल का निर्माण

 

गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने एसवाईएल का निर्माण कार्य पूरा नहीं किया है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को लागू करने की बजाए पंजाब ने साल 2004 में समझौता निरस्तीकरण अधिनियम बनाकर इनके क्रियान्वयन में रोड़ा अटकाने का प्रयास किया। बता दें कि पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के अंतर्गत भारत सरकार के 24 मार्च, 1976 को जारी आदेश के अनुसार हरियाणा को रावी-ब्यास के फालतू पानी में से 3.5 एमएएफ जल का आबंटन किया गया था। एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न होने की वजह से हरियाणा केवल 1.62 एमएएफ पानी का इस्तेमाल कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का गैर-कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है।

 

एसवाईएल का पानी मिलने से हरियाणा को होगा काफी फायदा

पंजाब के इस रवैये के कारण हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एम.ए.एफ. पानी नहीं ले पा रहा है। पंजाब और राजस्थान हर वर्ष हरियाणा के लगभग 2600 क्यूसेक पानी का प्रयोग कर रहे हैं। यदि यह पानी हरियाणा में आता तो 10.08 लाख एकड़ भूमि सिंचित होती, प्रदेश की प्यास बुझेगी और लाखों किसानों को इसका लाभ मिलेगा। इस पानी के न मिलने से दक्षिण-हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा चुका है। एसवाईएल के न बनने से हरियाणा के किसान महंगे डीजल का प्रयोग करके और बिजली से नलकूप चलाकर सिंचाई करते हैं, जिससे उन्हें हर साल 100 करोड़ रुपए से लेकर 150 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ता है। पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल के न बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित करने के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है। हरियाणा को हर साल 42 लाख टन खाद्यान्नों की भी हानि उठानी पड़ती है। यदि 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल बन जाती है, तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे उत्पादों का उत्पादन करता। 15 हजार प्रति टन की दर से इस कृषि पैदावार का कुल मूल्य 19,500 करोड़ रुपये बनता है।


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