Edited By Yakeen Kumar, Updated: 07 Aug, 2025 10:36 PM

प्रदेश और देश में 9 अगस्त, शनिवार के दिन पूरे धूमधाम से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाएगा। ये खास दिन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
हरियाणा डेस्क : प्रदेश और देश में 9 अगस्त, शनिवार के दिन पूरे धूमधाम से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाएगा। ये खास दिन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनकी सलामती और खुशहाली की दुआ करती हैं। इस त्योहार को विभिन्न धार्मिक और ऐतिहासिक कहानियों से भी जोड़ा जाता है। जैसे कि महाभारत में द्रौपदी द्वारा कृष्ण को राखी बांधने से इसकी शुरुआत बताई जाती है। लेकिन हरियाणा में एक ऐसा भी गांव है, जहां ये रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता। आईये जानते हैं इसके पीछे की कहानी।
कैथल जिले के सिरसल गांव में ये त्योहार लंबे समय से नहीं मनाया जाता है। गांव वालों के अनुसार सालों पहले हिंदुस्तान पर मुगलों को शासन था। जिसका नेतृत्व क्रुर मुगल शासक औरंगजेब कर रहा था। उस दौरान सिरसल गांव के आसपास के 7-8 गांव भी किसी मुसलमान शासन के अधीन थे, लेकिन मुख्य रूप से शासन औरंगजेब ही कर रहा था।
गांव वालों ने ठुकरा दिया औरंगजेब का प्रस्ताव

ग्रामीणों के अनुसार इस गांव में किसी एक व्यक्ति के पास एक काफी सुंदर घोड़ी थी, जो कि दूर-दूर तक आकर्षक का केंद्र बनी हुई थी। जब इस बात का औरंगजेब को पता चला, तो उसने ग्रामीणों को अपने दरबार में आने के निमंत्रण भेजा। जब ग्रामीण औरंगजेब के दरबार में पहुंचे तो इस मुगल शासक ने घोड़ी उन्हें देने की पेशकश की। इसके बदले उन्होनें खूब धन-संपत्ति की बात भी कही। लेकिन घोड़ी के मालिक को यह घोड़ी काफी प्रिय थी तो उसने देने से मना कर दिया। वहीं अन्य ग्रामीणों ने भी मुगल शासक के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
प्रस्ताव ठुकराने पर भौखलाया औरंगजेब
गांव वालों के अनुसार औरंगजेब उस समय शासन हथियाने के शिखर पर था। इसलिए ग्रामीणों द्वारा यह प्रस्ताव ठुकराने से वो गुस्सा हो गया। ग्रामीणों ने बताया कि औरंगजेब इतना क्रुर था कि उसने दरबार में पहुंचे करीब सभी ग्रामीणों को क्रुरता से मौत के घाट उतरवा दिया। वहीं बचे हुए लोग वहां से भाग गए। ग्रामीणों की मौत के बाद घोड़ी को अपने पास रख लिया। ग्रामीणो के अनुसार बाकि कुछ बचे ग्रामीण कभी इस गांव में वापस नहीं आए। इसलिए उत्तर भारत के अन्य राज्यों में जाकर रहने लगे।

रक्षाबंधन के दिन ही की थी ग्रामीणों की हत्या
ग्रामीणों ने बताया कि जिस दिन मुगलों ने ग्रामीणों की हत्या की, उस दिन रक्षाबंधन का त्योहार था। इस दुखभरी घटना के बाद गांव में मातम पसर गया। तब से आज तक इस सिरसल गांव में ये त्योहार नहीं मनाया जाता। वहीं ग्रामीणों ने बताया कि केवल शांडिल्य और टुरण गोत्र के लोग ये त्योहार नहीं मनाते, क्योंकि मारे गए लोग इन्हीं गात्रों से थे। उन्होनें बता कि इस गांव बाकि सभी अन्य जातियों द्वारा यह त्योहार मनाया जाता है।
ग्रामीणों का तर्क
कुछ ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव की चली आ रही पंरपंरा को ये निभा रहे हैं। हम इस पंरपंरा को तोड़कर त्योहार नहीं मना सकते। क्योंकि इस दिन हमारे पूर्वजों हत्या की गई थी। वहीं कुछ ग्रामीणों को कहना है कि जो लोग चाहे अब मना सकते हैं, क्योंकि वो पुरानी बातें थी। उनके साथ नहीं जी-मर सकते, सभी को आगे बढ़ने का हक है।
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