Special story: हरियाणा का राजनीतिक सफर, जानिए कैसे 54 से 90 हुई विधानसभा की संख्या

Edited By Isha, Updated: 03 Oct, 2024 05:09 PM

political journey of haryana

हरियाणा में 1966 से लेकर 2024 तक 4 लालों का आधिपत्य रहा है। देवीलाल, बंसीलाल, भजनलाल के मनोहर लाल हरियाणा के चौथे वह लाल हैं, जिन्हें हरियाणा में मुख्यमंत्री का ताज मिला है। हरियाणा में कभी तीन लालों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजाने

चंडीगढ़ (चंद्रशेखर धरणी):  हरियाणा में 1966 से लेकर 2024 तक 4 लालों का आधिपत्य रहा है। देवीलाल, बंसीलाल, भजनलाल के मनोहर लाल हरियाणा के चौथे वह लाल हैं, जिन्हें हरियाणा में मुख्यमंत्री का ताज मिला है। हरियाणा में कभी तीन लालों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजाने वाले कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा 2005 से लेकर 2014 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। हुड्डा ने तब तीन लालों देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल के खिलाफ लाल हटाओ, हरियाणा बचाओं अभियान चलाया था। उन्होंने तब यह कल्पना नहीं की होगी कि हरियाणा में इन तीन लालों के बाद चौथे लाल भाजपा के मनोहर लाल भी बन सकते हैं।

हुड्डा के लाल विरोधी अभियान में तत्कालीन मंत्री कर्नल राम सिंह, शमशेर सिंह सुरजेवाला, चौधरी बीरेंद्र सिंह, राव इंद्रजीत सिंह आदि को साथ लेकर कांग्रेस में रहते हुए भजनलाल के खिलाफ मुहिम चलाई और वह अपनी मुहिम में सफल भी रहे। अब हरियाणा की 15वीं विधानसभा के गठन की प्रक्रिया में 5 अक्टूबर को मतदान होना है। मतदाता 5 अक्टूबर को मतदान करेंगे और 8 अक्टूबर को मतगणना होगी। दशहरें से पूर्व हरियाणा की नई सरकार के गठन की संभावना है। 

54 से 81 और फिर 90 हुई विधानसभा सीट
1966 में हरियाणा गठन के बाद विधानसभा का पहला चुनाव 1967 में हुआ। उस समय में विधानसभा की 81 सीट के लिए चुनाव हुआ था। पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 48 सीटों पर जीत दर्ज की। उस समय पंडित भगवत दयाल शर्मा प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। एक साल बाद ही 1968 में फिर से हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में भी कांग्रेस ने फिर से 81 में से 48 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। इसके बाद 1972 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 81 में से 52 सीटों पर जीत दर्ज की।

1977 में हुए हरियाणा में पहली बार 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए। इस चुनाव में जनता पार्टी ने 75 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस केवल 3 सीट पर सिमट गई। इसके बाद 1982 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 36 और लोकदल ने 31 सीटों पर जीत दर्ज की। 1987 के विधानसभा चुनाव में लोकदल सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और उसने 60 सीटों पर जीत हासिल की। इसी प्रकार से 1991 में कांग्रेस ने 51, 1996 में बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी ने 33 और बीजेपी ने 11 सीट हासिल कर हरियाणा में गठबंधन की सरकार बनाई। इसके बाद 2000 में इनेलो ने 47, 2005 में कांग्रेस ने 67, 2009 में कांग्रेस ने 40 सीटों पर जीत दर्ज की। 2009 में कांग्रेस ने हजकां के विधायकों को तोड़कर फिर से भूपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व में सरकार बनाई। 2014 में बीजेपी ने पहली बार हरियाणा में अपने दम पर 47 सीट हासिल की और अकेले सरकार बनाई। 2019 में बीजेपी ने 40 सीट हासिल की और जेजेपी के सहयोग से गठबंधन की सरकार बनाई।

यह बने थे पहले मुख्यमंत्री
भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री बने थे। उस वक्त राज्य में विधानसभा की 54 सीटें थी जो 1967 में बढ़कर 81 और 1977 में 90 हो गईं। हरियाणा की पहली विधानसभा में कांग्रेस बहुत मजबूत थी। तब 54 विधायकों में से 48 विधायक कांग्रेस के थे, तीन भारतीय जनसंघ, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का एक और दो विधायक निर्दलीय थे।

पहले चुनाव में कांग्रेस को मिला बहुमत
1967 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में हरियाणा की 81 सीटों में से कांग्रेस ने 48, भारतीय जन संघ ने 12, स्वतंत्र पार्टी ने 3 और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने 2 सीटें और बाकी सीटें निर्दलीयों ने जीती थीं। 1968 का साल भारतीय राजनीति के लिए बेहद उथल-पुथल वाला था। समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया, गांधीवादी नेता जेबी कृपालानी, भारतीय जन संघ के दीनदयाल उपाध्याय और स्वतंत्र पार्टी के सी. राजगोपालाचारी ने देश में कांग्रेस विरोधी अभियान छेड़ा हुआ था।
1967 में ही कुछ राज्यों में संयुक्त विधायक दल (गैर कांग्रेसी सरकारें) की सरकारें बनी थी। इन राज्यों में पश्चिम बंगाल, बिहार, केरल, मद्रास (तमिलनाडु का पुराना नाम), ओडिशा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश शामिल हैं।
हरियाणा की राजनीति में उस दौरान एक बड़ा परिवर्तन तब हुआ जब विधानसभा के स्पीकर राव बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी और विशाल हरियाणा पार्टी बनाई। 24 मार्च, 1967 को वह हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री बने लेकिन उनका कार्यकाल ज्यादा नहीं रहा क्योंकि कई विधायकों ने उनका साथ छोड़ दिया। 20 नवंबर, 1967 को इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने राव बीरेंद्र सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया।

आया राम-गया राम की कहावत
आपने राजनीति में अक्सर आया राम-गया राम की कहावत खूब सुनी होगी। आया राम-गया राम की कहावत हरियाणा से ही निकली है। हुआ यूं था कि 1967 में कांग्रेस को हरियाणा के विधानसभा चुनाव में कमजोर बहुमत मिला था। भगवत दयाल शर्मा ने 10 मार्च को शपथ ली थी। लेकिन कांग्रेस के 48 में से 12 विधायकों ने हरियाणा कांग्रेस नाम से एक नया गुट बना लिया और इन्होंने निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर ‘यूनाइटेड फ्रंट’ का गठन किया। धीरे-धीरे यूनाइटेड फ्रंट के पास विधायकों का कुल आंकड़ा 48 हो गया।

इनमें से एक विधायक हसनपुर आरक्षित सीट से गया लाल भी थे। 9 घंटे में ही गया लाल ने दो बार पार्टी बदल ली। वह पहले कांग्रेस में गए और फिर कांग्रेस छोड़ दी। 15 दिनों के अंदर वह यूनाइटेड फ्रंट में शामिल हो गए। इसके बाद जब राव बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने गया लाल के बारे में चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ‘गया राम अब आया राम’ हैं। तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री वाईबी चव्हाण ने संसद में दलबदलू नेताओं के लिए ‘आया राम गया राम’ का इस्तेमाल किया।



बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल के नाम रहा 1970 का दशक
1968 के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बंसीलाल को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया। बंसीलाल जाट समुदाय से आते थे और भिवानी के रहने वाले थे। 1969 में कांग्रेस में जबरदस्त टूट हुई लेकिन बंसीलाल मुख्यमंत्री बने रहे और 30 नवंबर 1975 तक मुख्यमंत्री के पद पर काम करते रहे। जब बंसीलाल केंद्र की राजनीति में चले गए तो बंसीलाल की जगह पर भिवानी के एक अन्य नेता बनारसी दास गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया गया। 1977 में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार ने बनारसी दास गुप्ता की सरकार के साथ ही अन्य राज्यों की कांग्रेस सरकारों को भी बर्खास्त कर दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया।


राष्ट्रपति शासन के बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तो जनता पार्टी की जीत हुई और सिरसा के जाट नेता देवीलाल मुख्यमंत्री बने। लेकिन उसे दौरान एक यादगार वाकया और हुआ। जून, 1979 में भजनलाल जो देवीलाल की सरकार में मंत्री थे, वह कुछ असंतुष्ट विधायकों को लग्जरी बस और कारों के काफिले के साथ अलवर, कोटा, आगरा, ग्वालियर, भोपाल, कानपुर, कोलकाता और मुंबई ले गए। दो हफ्ते से ज्यादा वक्त तक यह सभी विधायक बड़े होटलों और रिसॉर्ट में ठहरे। सरकार की अस्थिरता को देखते हुए देवीलाल ने इस्तीफा दे दिया और 29 जून 1979 को भजनलाल मुख्यमंत्री बने।



1980 के दशक  में चला देवीलाल और चौटाला का दौर
1982 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 36 सीटें मिली। देवीलाल की लोकदल को 31 और बीजेपी को 6 सीटें मिली जबकि 16 सीटों पर निर्दलीय जीते। राज्यपाल जीडी तपासे ने सबसे बड़े दल के नेता के रूप में भजनलाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई लेकिन देवीलाल 45 विधायकों के साथ राजभवन पहुंच गए। कहा जाता है कि उनकी राज्यपाल के साथ बहस हुई और उन्होंने उनके साथ मारपीट भी की थी। 1987 के विधानसभा चुनाव से साल भर पहले कांग्रेस ने भजनलाल को हटा दिया और बंसीलाल को मुख्यमंत्री बना दिया। 1987 के चुनाव में देवीलाल की पार्टी लोकदल ने 60 सीटें जीती और बीजेपी को 16 सीटें मिली और देवीलाल मुख्यमंत्री बने।

1989 का वक्त ऐसा था जब राजीव गांधी के सामने मुश्किलें बढ़ रही थी। उस वक्त मुख्यमंत्री देवीलाल ने कांग्रेस के खिलाफ बगावत का झंडा उठाने वाले वीपी सिंह का समर्थन किया। वीपी सिंह ने कांग्रेस छोड़कर जनता दल का गठन किया था और बोफोर्स घोटाले में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर कांग्रेस को घेरा था। देवीलाल की ‘ग्रीन ब्रिगेड’ ने कांग्रेस के खिलाफ अभियान चलाने में उनकी मदद की थी। दिसंबर, 1989 में जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने देवीलाल को उप प्रधानमंत्री बनाया और हरियाणा में मुख्यमंत्री का पद देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला को मिला।

1991 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 90 में से 51 सीटें जीती और भजनलाल मुख्यमंत्री बने। 1996 के विधानसभा चुनाव में बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया और इस गठबंधन को 90 में से 44 सीटें मिली और बंसीलाल मुख्यमंत्री बने। लेकिन 1999 में बीजेपी ने गठबंधन तोड़ दिया और ओम प्रकाश चौटाला के साथ हाथ मिला लिया और चौटाला चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए।

कमजोर होती गई इनेलो
मार्च 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल ने 47 सीटें जीती और वह मुख्यमंत्री बन गए। मुख्यमंत्री रहने के दौरान ओमप्रकाश चौटाला पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे और उनके बेटे अजय चौटाला और अभय चौटाला भी आरोपों के घेरे में आए। पिता-पुत्रों को जेल भी जाना पड़ा। इसके बाद इनेलो कमजोर होती गई। अजय चौटाला ने अपने बेटे दुष्यंत और दिग्विजय के साथ मिलकर जेजेपी बनाई।

2005 से शुरू हुआ गैर जाट मुख्यमंत्री का दौर
2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 90 में से 67 सीटें जीती। रोहतक से आने वाले जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया। हुड्डा 2014 तक मुख्यमंत्री रहे। 2014 के चुनाव में पहली बार बीजेपी अपने दम पर हरियाणा की सत्ता में आई और उसने 47 सीटें जीती। ऐसा माना जाता है कि हरियाणा में गैर जाट जातियों का बड़ा समर्थन बीजेपी को मिला और मनोहर लाल खट्टर जो आरएसएस के प्रचारक रहे थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ काम कर चुके थे, उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया।

2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें घटी लेकिन उसने जेजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई। मनोहर लाल खट्टर को दोबारा मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गैर जाट जाति से आने वाले नायब सिंह सैनी को हरियाणा का मुख्यमंत्री बना दिया।

निश्चित रूप से छोटे से राज्य हरियाणा का राजनीतिक सफर काफी पेचीदा रहा है। देखना होगा कि क्या इस बार हरियाणा में पूर्ण बहुमत वाली कोई सरकार बनेगी या फिर बीजेपी और कांग्रेस को किसी छोटे दल, निर्दलीयों का सहारा लेकर सरकार बनानी होगी।

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