मनरेगा : 18 साल में 1.39 लाख को ही मिली 100 दिन की गारंटी, 26.37 लाख पंजीकृत परिवारों में से महज 4.50 लाख ही एक्टिव वर्कर्स

Edited By Manisha rana, Updated: 31 Dec, 2025 11:21 AM

mnrega in 18 years only 1 39 lakh people received the 100 day work guarantee

केंद्र सरकार की बहुचर्चित महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) हरियाणा को रास नहीं आ रही है। मनरेगा के अंतर्गत कामगारों को रोजगार की' गारंटी' नहीं मिल रही है।

सिरसा : केंद्र सरकार की बहुचर्चित महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) हरियाणा को रास नहीं आ रही है। मनरेगा के अंतर्गत कामगारों को रोजगार की' गारंटी' नहीं मिल रही है। मनरेगा के अंतर्गत 2007-08 से इस साल 29 दिसम्बर यानी करीब 18 वर्ष में मनरेगा के अंतर्गत हरियाणा में 1 लाख 39 हजार 748 पंजीकृत परिवारों ने 100 दिन का रोजगार पूरा किया है। खास बात यह है कि योजना के अंतर्गत इस समय राज्य के करीब 15 लाख 61 हजार 372 परिवारों के 26 लाख 37 हजार 898 सदस्य पंजीकृत हैं।

मनरेगा में हाल में केंद्र सरकार की ओर से किए बदलाव के बाद विपक्ष की ओर से लगातार सरकार पर आरोप लगाए जा रहे हैं। मनरेगा के आंकड़े चिंताजनक हैं। जहां इस योजना तहत 26 लाख 37 हजार सदस्य पंजीकृत हैं जबकि हर साल करीब 20 प्रतिशत लोग ही काम मांग रहे हैं। इस वित्तीय वर्ष में ही 26 लाख 37 हजार 898 पंजीकृत सदस्यों में से केवल 4 लाख 53 हजार 250 सदस्यों ने ही काम मांगा है।

दरअसल हरियाणा में खेती के साथ मनरेगा को न जोड़ना इस योजना को विफल बना रहा है। खेती सैक्टर में अधिक मजदूरी दर होने के चलते मनरेगा से लोग दूरी बनाए हुए हैं। हालांकि यह बात दीगर है जब योजना शुरू हुई तो रोजगार की गारंटी का आकर्षण देखते हुए लाखों लोगों ने जॉब कार्ड बनवा लिए, लेकिन जब काम मांगने की बारी आई तो लोग मुंह मोड़ने लगे। मनरेगा संघर्ष मोर्चा एवं केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में इस समय पूरे देश में खेती सैक्टर में न्यूनतम मजदूरी दर सबसे अधिक है। पंजाब से भी अधिक है। 

हरियाणा में कृषि मजदूरी दर इस  समय 433 रुपए में है। मनरेगा के अंतर्गत प्रति दिवस मजदूरी दर 400 रुपए है। ऐसे में यह करीब 33 रुपए कम है। वैसे भी बाजार में अकुशल श्रमिक को प्रतिदिन 500 रुपए तक मिल जाते हैं। यह एक बड़ा अमाऊंट है। ऐसे में मनरेगा संग लोगों का जुड़ाव नहीं बन रहा है। यही वजह है कि हरियाणा जैसे राज्यों की कृषिकीय एवं श्रमिकीय स्थिति को देखते हुए काफी समय से अनेक अर्थशास्त्री एवं विशेषज्ञ मनरेगा की खेती सैक्टर से जोड़ने की वकालत करते आ रहे हैं। इस योजना के पहलू को समझना हो तो आंकड़ों में आकंठ डूबना पड़ेगा। मसलन इस साल योजना के अंतर्गत जहां महज साढ़े 4 लाख लोगों ने काम मांगा है और केवल 159 लोगों ने ही 100 दिन का रोजगार पूरा किया है।

योजना को खेती के साथ जोड़ना जरूरी

विशेषज्ञों की राय में हरित क्रांति में अन्न उत्पादन का कटोरा बनने वाले पंजाब एवं हरियाणा दोनों समृद्ध राज्य हैं। हरियाणा में इस समय 60 प्रतिशत से अधिक आबादी परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप से खेती पर निर्भर है। हरियाणा में करीब 89 लाख एकड़ खेतिहर जमीन है। खेती प्रधान इन पंजाब व हरियाणा दोनों ही राज्यों में खेतिहर दृष्टि से काम की बहुतायत है और मजदूरी दर भी 400 से 500 रुपए प्रति दिवस के करीब है।
खास बात यह है कि इन दोनों सूबों में ही इस समय बिहार व उत्तरप्रदेश के करीब 1 लाख से अधिक मजदूर काम में लगे हुए हैं। नरेगा में इस समय सबसे अधिक मजदूरी दर हरियाणा में करीब 400 रुपए हैं। हरियाणा में भी योजना पूरी तरह फ्लाप हुई है पर पंजाब की अपेक्षा कम। पर यह भी अजीब पहलू है कि इस समय पंजाब में हरियाणा की तुलना में नरेगा के अंतर्गत मजदूरी दर कम है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि योजना के अंतर्गत दोनों प्रदेशों के आर्थिक पक्ष के लिहाज से मजदूरी दर व मापदंड तय होने चाहिएं तभी योजना सफल हो पाएगी।

एक्टिव वर्कर्स के मामले में हरियाणा 23वें नम्बर पर

आर्थिक परिपेक्ष्य के संदर्भ में आ रही अड़चन का कारण है कि हरियाणा में मनरेगा के अंतर्गत अब तक पूरे हुए कार्यों एवं एक्टिव वर्कर्स के मामले में हरियाणा टॉप-20 राज्यों में भी नहीं है। हरियाणा में योजना के अंतर्गत कुल 26.37 लाख में से महज 4.53 लाख यानी करीब 20 फीसदी ही जॉबधारक एक्टिव वर्कर्स हैं और इस मामले में पूरे देश में हरियाणा का रैंक 28 वां है।

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