बरोदा से जाट नेता ने ही कांग्रेस के लिए लगाया जीत का ‘चौका’

Edited By Manisha rana, Updated: 12 Nov, 2020 08:19 AM

jat leader from baroda made a  stall  of victory for congress

सोनीपत संसदीय सीट का हिस्सा बरोदा विधानसभा क्षेत्र के 2009 में सामान्य सीट के रूप में अस्तित्व में आने के बाद से यहां हुए सभी 4 चुनावों में कांग्रेस ने जीत हासिल की है और चारों बार ही जाट समुदाय के नेता को ही विधायक बनने का सौभाग्य मिला...

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : सोनीपत संसदीय सीट का हिस्सा बरोदा विधानसभा क्षेत्र के 2009 में सामान्य सीट के रूप में अस्तित्व में आने के बाद से यहां हुए सभी 4 चुनावों में कांग्रेस ने जीत हासिल की है और चारों बार ही जाट समुदाय के नेता को ही विधायक बनने का सौभाग्य मिला है। 2009, 2014 और 2019 में कांग्रेस के उम्मीदवार श्रीकृष्ण हुड्डा लगातार यहां से 3 बार विधायक बने। उनसे पहले इस हलके से लोकदल के रमेश खटक भी जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। सामान्य सीट बनने के बाद यहां से कांग्रेस ने 2009 में हुए पहले चुनाव में 25,343 वोटों के अंतर से बड़ी जीत दर्ज की जो अब तक सामान्य सीट पर हुए 4 चुनाव में जीत का सबसे बड़ा रिकॉर्ड भी है।

गौरतलब है कि बरोदा विधानसभा क्षेत्र 1967 से लेकर 2005 तक आरक्षित विधानसभा क्षेत्र था। यहां 1967 के चुनाव में कांग्रेस को जबकि 1968 विशाल हरियाणा पार्टी को जीत मिली। 1972 में कांग्रेस ने जीत हासिल की। 2009 से लेकर अब तक हुए उप-चुनाव सहित कुल 4 चुनाव में यहां से कांग्रेस ने जीत हासिल की है। भारतीय निर्वाचन आयोग के अनुसार 2009 के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार श्रीकृष्ण हुड्डा ने 56,225 वोट हासिल करते हुए इनैलो के डा.कपूर नरवाल को 25,343 वोटों से पराजित किया। कपूर नरवाल को उस चुनाव में 30,882 वोट मिले थे।

2014 के चुनाव में श्रीकृष्ण हुड्डा ने इनैलो के ही डा. कपूर नरवाल को 5,183 वोट से हराया। हुड्डा को 50,530, जबकि नरवाल को 45,347 वोट ही मिले। 2019 के विधानसभा चुनाव में श्रीकृष्ण हुड्डा ने जीत की हैट्रिक लगाई और भाजपा के योगेश्वर दत्त को 4,840 वोटों से हरा दिया। अब हुए उप-चुनाव में कांग्रेस के इंदूराज नरवाल ने भाजपा के योगेश्वर दत्त को 10,566 वोट से पराजित किया है। इस प्रकार से सामान्य सीट बनने के बाद से लगातार चारों बार यहां पर कांग्रेस ने जीत हासिल की और चारों बार जाट समुदाय के नेता को ही विधायक बनने का अवसर मिला है। 

लगातार 2-2 बार हारे डा. नरवाल, योगेश्वर व जोगेंद्र मलिक   
उल्लेखनीय है कि बरोदा के सामान्य सीट बनने के बाद 2009 व 2014 के चुनाव में यहां पर इनैलो दूसरे स्थान पर रही जबकि 2014 और अब हुए उप-चुनाव में यहां से भाजपा दूसरे स्थान पर रही है और इनैलो की 2019 के आम चुनाव व अब हुए उप-चुनाव में जमानत जब्त हुई है जबकि 1977 से 2005 तक सबसे अधिक 7 चुनाव लगातार जीतने का रिकॉर्ड आज भी देवीलाल व चौटाला के सियासी दलों के नाम हैं। एक खास पहलू यह भी है कि इस सीट के सामान्य होने के बाद यहां से 3 बड़े सियासी दलों के उम्मीदवार लगातार दो चुनाव हार चुके हैं, जिनमें डा. कपूर नरवाल,योगेश्वर दत्त व जोगेंद्र मलिक के नाम शामिल है।

बरोदा के 2009 में सामान्य सीट बनने के बाद इनैलो उम्मीदवार के रूप में पहला चुनाव लडऩे वाले डा. कपूर नरवाल कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा से पराजित हुए और इसके बाद 2014 में भी उन्हें फिर से श्रीकृष्ण हुड्डा के हाथों चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसी प्रकार 2019 व अब हुए उप-चुनाव में भाजपा के योगेश्वर दत्त व इनैलो के जोगेंद्र मलिक भी इन दोनों ही चुनावों में दो बार पराजित हुए।

6 बार बरोदा से भाग्य आजमा चुकी है भाजपा
1967 से लेकर 2019 तक बरोदा में 13 सामान्य चुनाव हुए। 1982 में भाजपा अस्तित्व में आई और वह यहां से अकेले 1991, 2005, 2009, 2014, 2019 और हाल में हुए उप-चुनाव सहित 6 बार भाग्य आजमा चुकी है। 1991 के चुनाव में भाजपा के इकबाल सिंह को महज 928 (1.59 प्रतिशत) वोट मिले थे। 2005 में भाजपा के महावीर सिंह को 12,593 वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर रहे। 2009 में भाजपा प्रत्याशी रमेश भारद्वाज को 1180 (1.25 प्रतिशत) वोट ही मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई। 

2014 में बलजीत सिंह मलिक 8,698 वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे। 2019 में भाजपा उम्मीदवार योगेश्वर दत्त 4,840 वोट से चुनाव हार गए थे। भाजपा के अस्तित्व में आने से पहले भारतीय जनसंघ की टिकट पर दरिया सिंह 1967 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बरोदा सीट से मैदान में उतरे थे और उन्होंने 11,637 वोट हासिल किए तथा वह दूसरे स्थान पर रहे। दरिया सिंह 1,527 वोटों से चुनाव हारे और यह अब तक जीत का सबसे कम अंतर है। दरिया सिंह के नाम एक और भी रिकॉर्ड है। बतौर आजाद उम्मीदवार सबसे अधिक मत लेने का रिकॉर्ड आज भी बरोदा में उनके नाम है। 1977 में दरिया सिंह ने आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और 10,672 वोट हासिल करते हुए महज 2,100 वोटों से चुनाव हारे थे। 
 

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