राज्यसभा में गूंजा प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी वसूली का मुद्दा, सांसद कार्तिकेय शर्मा ने उठाई आवाज

Edited By Gourav Chouhan, Updated: 09 Feb, 2023 08:54 PM

issue of arbitrary recovery of private hospitals echoed in rajya sabha

कार्तिकेय शर्मा ने उदाहरण देते हुए बताया कि  नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के एक निजी अस्पताल ने महिला के प्रसव के बाद उसके परिजनों द्वारा अस्पताल का बिल के भुगतान न करने पर उस महिला को बंधक बना लिया गया।

चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी) : युवा सांसद कार्तिकेय शर्मा ने सदन में प्राइवेट अस्पतालों द्वारा मरीजों व उनके परिजनों से मनमानी वसूली का मुद्दा उठाया। राज्‍य सभा में उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि भारतीय संविधान में सभी नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। संविधान के अनुच्छेद 21 को अगर डायरेक्टिव प्रिंसिपल के अनुच्छेद 39 (e), अनुच्छेद 41 और अनुच्छेद 43 के साथ जोड़ कर देखा जाए तो राइट टू हेल्थ एंड मेडिकल केयर नागरिकों का फंडामेंटल राइट है, लेकिन इसके बावजूद प्राइवेट अस्पताल मनमानी करने से बाज नहीं आते हैं। इसके चलते मरीजों के अधिकारों का हनन होता है। यहां तक जब कई बार मरीज की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वो भुगतान नहीं कर पाते तो संबंधित प्राइवेट अस्पतालों द्वारा मृतक मरीजों का शव तक उनके परिजनों को नहीं दिया जाता है और उनको बंधक बना लिया जाता है।

 

कार्तिकेय शर्मा ने उदाहरण देते हुए बताया कि  नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के एक निजी अस्पताल ने महिला के प्रसव के बाद उसके परिजनों द्वारा अस्पताल का बिल के भुगतान न करने पर उस महिला को बंधक बना लिया गया। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद अस्पताल प्रशासन से उस महिला को मुक्त करवाया जा सका। ऐसे ही अगस्त 2019 में दिल्ली के एक हॉस्पिटल में सर्जरी के बाद बिल न चुकाए जाने पर मरीज को बंधक बना लिया गया। इतना ही नहीं बल्कि शवों को भी बंधक बनाने के कई मामले सामने आए हैं, जैसे कि पिछले वर्ष मध्यप्रदेश के शहडोल जिले से एक घटना सामने आई, जहां एक हॉस्पिटल में डाक्टरों ने शव देने से इंकार कर दिया क्योंकि मृतक के परिजनों के पास हॉस्पिटल के बिल चुकाने के पैसे नहीं थे।

 

शर्मा ने आगे बताया कि देश के विभिन्न भागों से ऐसे अनेक मामले सामने आ रहे हैं जहां मरीज को बिल न चुकाए जाने पर अस्पताल प्रशासन द्वारा बेड पर बांध दिया जाता है और उनके इलाज में कोताही बरतनी शुरू कर दी जाती है। ऐसे ही मामलों को ध्यान में रखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने 2016 में देवेश सिंह चौहान बनाम स्टेट एंड अदर केस में कहा था कि कोई भी अस्पताल किसी भी हालत में मरीज को बंधक नहीं बना सकता, चाहे वो बिल न चुकाने का मामला हो। इसके साथ साथ एनएचआरसी द्वारा तैयार किए गए चार्टर ऑफ पेशेंट राइट्स में भी साफ लिखा गया है कि पेशेंट को डिस्चार्ज होने का अधिकार है, उसे किसी भी स्थिति में अस्पताल द्वारा बंधक नहीं बनाया जा सकता। सांसद कार्तिकेय शर्मा ने सदन में आगे जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 2017 में गुरुग्राम के में डेंगू के चलते एक बच्ची की मौत हुई थी। उसे 15 दिन जिस अस्पताल में रखने का बिल 18 लाख बना दिया गया।

 

ऐसा ही एक मामला हैदराबाद की महिला का सामने आया जिसके इलाज का बिल दिल्ली के एक अस्पताल ने एक करोड़ बीस लाख का बना दिया। मुंबई में तो एक हॉस्पिटल का ओवरचार्जिंग के चलते लाइसेंस ही रद्द करना पड़ा। साल 2021 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार  दिल्ली के कई बड़े और नामी अस्पतालों के चार्ज बहुत ज्यादा है। ये अस्पताल दवाइयों की कीमत के कई हजार गुना मूल्य मरीज से वसूलते हैं। उन्होंने आगे कहा कि हालांकि अस्पताल द्वारा ओवरचार्ज न किया जाए इस बारे में सरकार ने कानून बनाया हुआ है कि यदि कोई अस्पताल ऐसा करता है तो उसकी शिकायत की जा सकती है। जांच के बाद यदि शिकायत सही पाई जाती है तो उक्त अस्पताल का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है। परंतु इन सबके बावजूद भी प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी चल रही है। इसे रोका जाना बहुत आवश्यक है।

 

उन्होंने सभापति से अनुरोध करते हुए कहा कि  उपरोक्त दोनों मुद्दों पर ध्यान दिया जाए और इनसे जुड़े नियमों को सख्ती से लागू करवाया जाए तथा इसके साथ साथ सरकार से एक अनुरोध ये भी है कि अस्पतालों द्वारा बिल न चुकाए जाने पर बंधक बनाने और इलाज में होने वाली ओवरचार्जिंग को रोकने के लिए आम जनता को भी जागरूक करना चाहिए।  इसके लिए सरकार कोई अभियान के माध्यम से आम जन को उनके अस्पतालों में मूलभूत अधिकारों के बारे में अवगत करवाए ताकि सभी नागरिकों को अस्पतालों की मनमानी से बचाया जा सके।

 

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