कभी आठ साल की उम्र में खोया बेटा, अब युवावस्था में मिला, मां आवाज सुन बोलीं-, ‘तू ज़िंदा है‘

Edited By Isha, Updated: 01 May, 2025 04:45 PM

once lost his son at the age of eight

कभी आठ साल की उम्र में खोया बेटा, अब युवावस्था में पढ़ाई करता हुआ जब अपनी मां के गले लगा, तो उपस्थित हर शख्स की आंखे नम हो गई। ये सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उन हजारों कहानियों में से एक है, जो हरियाणा पुलिस की कोशिशों से फिर से जी उठीं।

चंडीगढ़ (चन्द्र शेखर धरणी ):  कभी आठ साल की उम्र में खोया बेटा, अब युवावस्था में पढ़ाई करता हुआ जब अपनी मां के गले लगा, तो उपस्थित हर शख्स की आंखे नम हो गई। ये सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उन हजारों कहानियों में से एक है, जो हरियाणा पुलिस की कोशिशों से फिर से जी उठीं।

बीते डेढ़ वर्षों के दौरान हरियाणा की एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट ने 1974 ऐसे मामलों का समाधान किया, जिनमें वर्षों से बिछड़े परिजन एक-दूसरे से पुनः मिल सके। ये वे क्षण थे जब लापता सदस्य की एक झलक भर से परिवारजन पहचान कर आगे बढ़े और वर्षों की दूरी समाप्त हो गई। ये ऐसे भावनात्मक क्षण थे जिनमें केवल आंसू, मुस्कान और सुकून के पल थे। .20 साल बाद बेटे की आवाज़ सुनकर मां ने बस इतना कहा, ‘तू ज़िंदा है।‘

हरियाणा के डीजीपी श्री शत्रुजीत कपूर ने एक ऐसा ही किस्सा सांझा किया, जहां परिवार दो दशकों से अपने बेटे को ढूंढ़ रहा था, लेकिन उम्मीदें लगभग मर चुकी थीं। जब वह बेटा, जो अब खुद कॉलेज का छात्र था, अपने परिवार से मिला, तो माँ के मुंह से निकला पहला शब्द था कि ‘तू ज़िंदा है‘।

अगस्त 2023 के बाद 44 ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां परिवारजन 20 वर्षों से किसी अपने को ढूंढ रहे थे। लेकिन इतने लंबे समय के बाद कोई भी पहचान बदल जाती है। चेहरा, भाषा, यहां तक कि बोलने और सोचने का तरीका भी। फिर भी एएचटीयू ने हर सुराग को जोड़ा, हर दस्तावेज खंगाले, और वह बिछड़ों का मिलना संभव हो पाया, जिससे रिश्तों की डोर फिर से बंध सकी।

. बदल चुके चेहरे, लेकिन एक उम्मीद ने बना दी पहचान

कई मामलों में तो व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ था, कोई भाषा नहीं समझता था, तो कोई दिव्यांग था। फिर भी पुलिसकर्मी रुकते नहीं। वे तस्वीरों की तुलना करते हैं, पुराने मुकदमों की फाइलें पलटते हैं, और उस एक जुड़ाव की तलाश में रहते हैं, जो किसी मां की आंखों में आंसू और बेटे की बांहों में सुकून ले आए।

. पुलिस नहीं, जैसे परिवार का कोई हिस्सा बन गए अफसर

हरियाणा पुलिस ने वर्ष-2024 के पहले तीन महीनों में हरियाणा पुलिस ने 2781 वयस्कों को उनके परिजनों से मिलवाया और यह कोई आंकड़ा मात्र नहीं है। ये 2781 अलग-2 कहानियां हैं, जहां दरवाजे की घंटी बजने के साथ किसी मां ने अपने बेटे को देखा और यकीन ही नहीं हुआ।

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606 नाबालिग बच्चों का परिवार से पुनर्मिलन, 183 भिखारी बच्चों और 176 बाल श्रमिकों का रेस्क्यू

इन सब में पुलिस की एक संवेदनशील छवि उभर कर सामने आई है जहां यूनिफॉर्म सिर्फ शक्ति की नहीं, बल्कि सहारे और संवेदना की पहचान बन गई। हरियाणा पुलिस ने वर्ष-2025 में जनवरी से लेकर मार्च के अंत तक 606 नाबालिग बच्चों को उनके घर के आँगन तक पहुँचाया। वहीँ इसके अलावा प्रदेश पुलिस के अथक प्रयासों से भीख मांगने में अपना बचपन खो रहे 183 नाबालिग बच्चों और 176 बाल मज़दूरों को रेस्क्यू किया। वहीं, प्रदेश में कार्यरत एंटी ह्यूमन ट्रैफिक यूनिट ने भी बच्चों के चेहरे में मुस्कान लाने का काम किया है। पहले 3 महीनों में 164 नाबालिग बच्चों को, भीख मांगने के लिए मजबूर करने वाले 555 बच्चों तथा 874 बाल मजदूरी करने वाले बच्चों को रेस्क्यू किया है। 

ऑपरेशन मुस्कानः जहाँ हर चेहरा फिर मुस्कराया

मार्च माह में चलाए गए ‘ऑपरेशन मुस्कान‘ में ये भावनाएं अपने चरम पर दिखीं। पूरे प्रदेश में अभियान चला कर एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट्स द्वारा 91 बच्चों और 117 वयस्कों को उनके परिवारों से मिलवाया गया। वहीं 360 भीख मांगने जैसे दुष्कर कार्य में लिप्त बच्चों और 640 बाल श्रमिकों को बचाया गया। ये वे बच्चे थे, जो जीवन को नहीं, जीवन उन्हें घसीट रहा था। और जब इन्हें बचाकर उनके घर लौटाया गया, तो गांव की सूनी गलियां इन बच्चों की चहलकदमी से फिर से गुलजार हो गई। जब बच्चों को रेस्क्यू किया गया और पुनर्स्थापन किया गया तो उनके चेहरे पर एक बेहतर भविष्य की मुस्कान थी। एएचटीयू यूनिटों ने इसी दौरान बच्चों से सम्बन्धित 18 एफआईआर और वयस्कों से सम्बन्धित 43 एफआईआर का निपटारा भी किया। 

.गुरुग्राम की गलियों से अम्बाला के आंगनों तक, हर जगह गूंजी वापसी की कहानियां

ऑपरेशन मुस्कान में प्रदेश में स्थापित एएचटीयू के अलावा हमारी जिला पुलिस ने भी अपनों को ढूंढने में दिन रात एक कर दिए। मार्च महीने में आयोजित इस ऑपरेशन मुस्कान में जिला पुलिस ने 511 बच्चों को उनके घर के आंगन में सुरक्षित पहुँचाया, वहीं 1079 वयस्क भी जो अपने परिवार से बिछड़ गए थे, उनको अपने परिवार से मिलवाया। कई केस तो ऐसे भी रहे, जहाँ लापता व्यक्ति ने बोल सकता और ना सुन सकता था, लेकिन फिर भी पुलिस ने हार नहीं मानी। गुरुग्राम जिला इस अभियान में सबसे आगे रहा, जहां 129 बच्चे और 125 वयस्क अपनों से मिले। अम्बाला में भी ऐसे कई मामले सामने आए जहां वर्षों से बिछड़ी आंखों ने फिर अपनों को देखा। ये केवल आँकड़े नहीं बल्कि रिश्ते जोड़े गए हैं और ये रिश्ते ही समाज की असली पूंजी होते हैं। देश का भविष्य जो कि बाल मज़दूरी और भीख के चक्रव्यूह में फंस जाता है, पुलिस ने उनको उस दलदल से निकाल कर समाज की मुख्यधारा में लाने का काम किया। जिला पुलिस ने मार्च महीने में भीख मांगने में लिप्त 203 बच्चों और 250 बाल मज़दूरों को रेस्क्यू किया और उनका पुर्स्थापन किया ताकि वो भी सामान्य बच्चों की तरह अपने भविष्य को संजो सकें ।

 एक अफसर की आंखों सेः ‘हमने सिर्फ केस नहीं सुलझाए, घर बसाए‘

पुलिस महानिदेशक श्री शत्रुजीत कपूर ने जब पुलिस टीम को प्रमाण पत्र और पुरस्कार दिए, तो उनके शब्दों में गर्व से ज्यादा भावनाएं थीं। उन्होंने कहा, “हर एक केस जब सुलझता है, तो सिर्फ एक फाइल बंद नहीं होती, एक मां की रातों की नींद लौटती है, एक पिता का दिल चौन पाता है, और एक बच्चा अपने बचपन को फिर से जीता है।”

पुलिसिंग अब सिर्फ कानून व्यवस्था नहीं, रिश्तों की रखवाली है

हरियाणा पुलिस ने यह साबित कर दिया है कि पुलिसिंग अब केवल अपराध रोकने का नाम नहीं है। यह संवेदना, सेवा और समाज के सबसे नर्म धागों को फिर से जोड़ने का कार्य है। इन 1974 मिलनों में सिर्फ लोग नहीं मिले बल्कि भरोसा लौटा है और यही भरोसा, किसी भी राज्य की सबसे बड़ी ताकत है।

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