हिंदी में मांगा आदेश तो हाईकोर्ट ने उपलब्ध करवाया हस्त लिखित अनुवाद

Edited By Shivam, Updated: 01 Jul, 2018 05:15 PM

hand written translation made available by the high court

न्यायालय की अवमानना का दोषी मानते हुए हाईकोर्ट ने सजा के आदेश अंग्रेजी में सौंपे तो दोषी करार दिए गए वकील ने इन्हें हिंदी में उपलब्ध करवाने की अपील कर दी। नतीजा यह हुआ कि अंग्रेजी में 67 पन्नों के आदेश अनुवाद कर 114 पन्नों पर हाथ से लिखकर उपलब्ध...

चंडीगढ़ (धरणी): न्यायालय की अवमानना का दोषी मानते हुए हाईकोर्ट ने सजा के आदेश अंग्रेजी में सौंपे तो दोषी करार दिए गए वकील ने इन्हें हिंदी में उपलब्ध करवाने की अपील कर दी। नतीजा यह हुआ कि अंग्रेजी में 67 पन्नों के आदेश अनुवाद कर 114 पन्नों पर हाथ से लिखकर उपलब्ध करवाए गए। यह अनोखा मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का है।

उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में लगभग सभी काम अंग्रेजी में होते हैं और यहां तक कि बहस के लिए भी अंग्रेजी भाषा निर्धारित है। हिंदी से लगाव व इसकी सहजता के चलते न्यायालय से हिंदी में आदेश मांगने का बेहद रोचक मामला प्रकाश में आया है। नारनौल बार एसोसिएशन के पूर्व प्रधान एवं एडवोकेट नवीन वशिष्ठï ने हाईकोर्ट द्वारा उनके खिलाफ जारी किए गए आदेश हिंदी में उपलब्ध करवाने की अपील की थी। जस्टिस एमएमएस बेदी एवं जस्टिस हरिपाल वर्मा की खण्डपीठ ने 31 मई को अपराधिक अवमानना मामले में 67 पेज का निर्णय अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध करवाया था। 

वशिष्ठ ने खण्डपीठ से उक्त निर्णय के हिन्दी अनुवाद की मांग करते हुए कहा था कि भले ही वह अधिवक्ता हैं लेकिन उसकी शिक्षा दीक्षा हिन्दी में हुई है तथा हिन्दी उसकी मातृभाषा है। इसके अतिरिक्त भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363(2) के प्रावधान के अनुसार वह उक्त निर्णय वह उक्त निर्णय का हिन्दी अनुवाद लेने का अधिकारी है।

वशिष्ठ की इस अपील पर हाईकोर्ट ने निर्णय के हस्तलिखित हिन्दी अनुवाद को उपलब्ध करवा दिया। मनीष वशिष्ठ एडवोकेट ने कहा कि पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट की भाषा भले ही अंग्रेजी हो लेकिन संविधान एवं कानून में कई ऐसे प्रावधान है, जिनके अनुसार किसी भी व्यक्ति को न्यायालय अपने निर्णयों को हिन्दी में उपलब्ध करवाएगा। उन्होंने कहा कि यह न्यायालयों में हिन्दी के प्रयोग की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि यदि आमजन इस दिशा में प्रयास करे तो उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी।

निचली अदालत से भी ले चुके हैं हिंदी में आदेश 
वशिष्ठ ने इससे पहले अधिनस्थ न्यायालय में दाखिल याचिका का आदेश हिंदी में सौंपे जाने की अपील की थी। सीजेएम ने आदेश हिंदी में उपलब्ध करवाने की मांग को खारिज कर दिया था। इसके बाद उन्होंने इस आदेश को चुनौती दी थी जिसे अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने मंजूर करके मैजिस्ट्रेट को निर्णय का हिन्दी अनुवाद देने का आदेश दिया था। 

सुप्रीम कोर्ट के जज कर चुके हैं सम्मानित 
नवीन वशिष्ठ हिंदी भाषा को बढ़ावा देने की मुहीम चला रहे हैं और इसी के चलते न्यायालयों में हिन्दी भाषा के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए उन्हें भारत के उच्च न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस शिवकीर्ति सिंह ने उच्चतम न्यायालय के वीके कृष्णमेनन हाल में सम्मानित भी किया था। इसके अतिरिक्त न्यायालयों में हिन्दी भाषा के प्रयोग के लिए ज्ञापन व गोष्ठियों का आयोजन भी करते हैं।

कोर्ट में रहा था चर्चा का विषय
हाईकोर्ट में हिंदी में आदेश की मांग कई दिनों तक जजों के बीच चर्चा का विषय रही। आखिरकार आदेश हिंदी भाषा में उपलब्ध करवाने का निर्णय ले लिया गया। अब समस्या हिंदी में टाईप को लेकर थी। ऐसे में कोर्ट ने आदेश उपलब्ध करवाने के लिए कागज पर इसे लिखकर सौंपने का निर्णय लिया।

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