Edited By Manisha rana, Updated: 29 Dec, 2025 01:17 PM

बराड़ा उपमंडल के किसान अब पारंपरिक रासायनिक खेती से हटकर जैविक खेती की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं। खासकर आलू की खेती में जैविक खाद के प्रयोग से न केवल फसल की गुणवत्ता बेहतर हुई है
बराड़ा (अनिल कुमार) : बराड़ा उपमंडल के किसान अब पारंपरिक रासायनिक खेती से हटकर जैविक खेती की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं। खासकर आलू की खेती में जैविक खाद के प्रयोग से न केवल फसल की गुणवत्ता बेहतर हुई है, बल्कि किसानों की लागत भी कम हुई है और मुनाफा बढ़ा है। यह बदलाव पर्यावरण के साथ-साथ किसानों के स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी साबित हो रहा है।
उपमंडल के गांवों के आसपास के क्षेत्रों में कई किसानों ने गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नीम खली और जैविक घोलों का उपयोग कर आलू की खेती शुरू की है। किसानों का कहना है कि जैविक खाद से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और फसल लंबे समय तक अच्छी पैदावार देती है। पहले जहां रासायनिक खादों पर निर्भरता अधिक थी, वहीं अब किसान अपने खेतों में तैयार की गई जैविक खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं।
किसान बताते हैं कि उन्होंने इस बार भूमि में जैविक तरीके से आलू की खेती की है। शुरुआत में थोड़ा संकोच था, लेकिन फसल तैयार होने पर परिणाम उत्साहजनक रहे। आलू का आकार अच्छा है, स्वाद बेहतर है और बाजार में इसकी मांग भी ज्यादा मिल रही है। जैविक आलू को व्यापारी सामान्य आलू की तुलना में बेहतर दाम देने को तैयार हैं। किसानों ने बताया कि जैविक खाद के प्रयोग से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है, जिससे पौधों को प्राकृतिक रूप से पोषण मिलता है। इससे आलू की फसल में रोगों का प्रकोप भी कम होता है।
बराड़ा उपमंडल के किसानों का कहना है कि विभाग द्वारा किसानों को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण और मार्गदर्शन दिया जा रहा है। वर्मी कम्पोस्ट यूनिट लगाने के लिए प्रोत्साहन राशि भी उपलब्ध कराई जा रही है। इससे किसान आत्मनिर्भर बन रहे हैं और रासायनिक खेती से होने वाले नुकसान से बच रहे हैं। वहीं स्थानीय बाजारों में जैविक आलू की मांग लगातार बढ़ रही है।
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