BJP प्रत्याशी को भी हो सकता है भितरघात से नुकसान! किसी उम्मीदवार की जीत हार के बारे में कोई दांव लगाने को तैयार नहीं

Edited By Manisha rana, Updated: 06 May, 2024 10:25 AM

bjp candidate may also suffer loss due to graffiti

भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट पर मुकाबला रोचक होता जा रहा है। मगर यहां से चुनाव लड़ रहे मुख्य पार्टियों भाजपा और कांग्रेस को अपने ही नेताओं के भितरघात का नुकसान हो सकता है। यही कारण है कि इस लोकसभा क्षेत्र से अभी तक किसी प्रत्याशी की जीत हार के बारे...

भिवानी : भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट पर मुकाबला रोचक होता जा रहा है। मगर यहां से चुनाव लड़ रहे मुख्य पार्टियों भाजपा और कांग्रेस को अपने ही नेताओं के भितरघात का नुकसान हो सकता है। यही कारण है कि इस लोकसभा क्षेत्र से अभी तक किसी प्रत्याशी की जीत हार के बारे में कोई दांव लगाने को तैयार नहीं है।

बता दें कि भाजपा ने इस लोकसभा क्षेत्र से यहां से दो बार के सांसद धर्मबीर सिंह को फिर से चुनावी समर में उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने यहां से 3 बार चुनाव लड़ चुकी और 2009 में सांसद बन चुकी पूर्व सीएम स्व. बंसीलाल की पौत्री श्रुति चौधरी का टिकट काटकर उनकी जगह विधायक राव दान सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। इन दोनों ही पार्टियों के प्रत्याशियों ने अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया है। इसलिए अब ये प्रत्याशी चुनाव प्रचार के लिए चुनावी समर में पूरी तैयारी के साथ उतर चुके हैं।

जाट वोट बैंक तय करेगा धर्मबीर का भविष्य

दूसरी ओर राजनीति के जानकारों का मानना है कि भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा में लोहारू, तोशाम, बाढड़ा व दादरी विधानसभा क्षेत्र में जाट यानि किसान वोट बैंक की संख्या सबसे ज्यादा है। इसलिए यह माना जा रहा है कि धर्मबीर का भविष्य इस चुनाव में जाट वोट बैंक पर टिका हुआ है। इसका कारण यह है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में धर्मबीर सिंह को इन सभी विधानसभा क्षेत्रों में अच्छी खासी जीत और बढत मिली थी। जबकि इस बार हालात अलग बने हुए हैं।

किसान आंदोलन के चलते जाट दिख रहे भाजपा से नाराज 

इसका कारण यह है कि 3 कृषि कानूनों को केंद्र सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद लागू किया था। उन कानूनों को खत्म कराने के लिए किसानों को एक साल से भी लंबे समय तक दिल्ली की सीमाओं के अलावा प्रदेश में भी जगह-जगह आंदोलन करना पड़ा था तब जाकर केंद्र सरकार ने उन कानूनों को वापस लिया था। इसके चलते उस समय से ही प्रदेश के किसान और जाट भाजपा से दूरी बनाते आ रहे हैं और भाजपा प्रत्याशियों के अलावा कुछ महीने पहले तक प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा की सहयोगी पार्टी जजपा के नेताओं को जगह-जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है। वहीं धर्मबीर सिंह ने उस समय ना किसानों के समर्थन में कोई बात कही और ना ही केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए कृषि कानूनों का बखान किया। इसलिए कुल मिलाकर भाजपा प्रत्याशी को भी इस लोकसभा चुनाव में भीतरघात के अलावा किसानों व जाटों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।

भाजपा प्रत्याशी पर लगे थे आरोप

धर्मबीर सिंह पर 2019 के विधानसभा चुनावों के दौरान चुनाव हारने वाले प्रत्याशी ने हार के बाद अप्रत्यक्ष रूप से अपनी हार का ठीकरा धर्मबीर सिंह पर फोड़ा था। चुनाव में मदद ना कर दूसरी पार्टी के प्रत्याशी की ओर से इशारा किया था।

वजूद कुछ नहीं, धर्मबीर का प्रभाव

हालांकि उक्त नेता का उस विधानसभा क्षेत्र में अपना कोई खासा वजूद नहीं है। मगर राजनिीत के जानकारों का मानना है कि ये एक जाति विशेष से संबंध रखते है, इसलिए माना जा रहा है कि वे अपनी हार का बदला लेने के लिए अपनी जाति विशेष के लोगों की ओर किसी दूसरी पार्टी के प्रत्याशी के पक्ष में मतदान का इशारा कर सकते हैं। हालांकि भाजपा प्रत्याशी धर्मवीर सिंह का उस विधानसभा क्षेत्र में अपना एक अलग ही प्रभाव है। इसलिए यह भी माना जा रहा है कि अगर उक्त नेता अंदरखाते भीतरघात करेगा तो भी धर्मबीर सिंह को उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। मगर इस समय देख जाए तो हर प्रत्याशी के लिए एक-एक वोट बहुत कीमती है।

 

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