Edited By vinod kumar, Updated: 23 May, 2020 04:00 PM
कोरोना महामारी से बचाव के लिए पूरे देश काे लाॅकडाउन किया गया है। इस लॉकडाउन में पलायन कर रहे मजदूरों की मजबूरी की दिल दहला देने वाली कहानियां सामने आ रही हैं। ऐसा ही एक राेंगटे खड़े कर देने वाली कहानी बिहार के औरंगाबाद की बिंदिया की है।
अम्बाला: कोरोना महामारी से बचाव के लिए पूरे देश काे लाॅकडाउन किया गया है। इस लॉकडाउन में पलायन कर रहे मजदूरों की मजबूरी की दिल दहला देने वाली कहानियां सामने आ रही हैं। ऐसा ही एक राेंगटे खड़े कर देने वाली कहानी बिहार के औरंगाबाद की बिंदिया की है। बिंदिया के गर्भ में 9 माह का बच्चा था। उसका पति जितिन राम उसे साथ लेकर लुधियाना से पैदल ही 1350 किलोमीटर दूर औरंगाबाद के लिए निकलना पड़ा। बिंदिया दिन-रात पैदल चलने काे मजबूर थी, क्याेंकि अब घर पहुंचने के सिवा उनके पास काेई चारा भी नहीं था।
बिंदिया काे तीन दिन पहले रास्ते में लेबर पैन शुरू हाेने लगे। शंभू बॉर्डर के पास से लाेगाें व पुलिस की मदद से उसे अम्बाला सिटी के सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया गया। वहां उसने मरी बच्ची काे जन्म दिया। तब एक मां का दिल कितना दर्द से भर आया हाेगा, इसका अंदाजा बिंदिया की हालत सुनकर लगाया जा सकता है, जिसने पैदल चलने के कारण अपनी पहली संतान काे खाे दिया।
वहीं इसके बाद भी जल्द ही घर पहुंचने की ललक में परिवार ने बच्ची काे सिविल अस्पताल के पास खाली प्लाॅट में दफना दिया और बिहार तक के सफर के लिए निकल पड़े। दर्द से कराहतीं बिंदिया काे पूरे रास्ते कभी उसका पति ताे कभी उसकी ननद संभाल रही थी। दाे साल पहले ही बिंदिया की शादी हुई थी और लगभग एक साल पहले वे अपने पति के पास गांव से रहने लुधियाना आई थी।
दवाइयां व अन्य जरूरत का सामान उपलब्ध करवाया
एक काेशिश टूगेदर वी कैन संस्था की फाउंडर निक्की ढिल्लाें व सदस्य श्वेता बवेजा एसडी काॅलेज के बाहर खाना वितरित कर रहे थे ताे फुटपाथ पर बिंदिया व उसका परिवार मिला। बिंदिया की ननद ने पूरी आप-बीती उन्हें बताई। परिवार ने मदद मांगी कि खाना ताे हर काेई दे रहा है, लेकिन घर तक पहुंचाने में काेई मदद नहीं कर रहा। उसके बाद निक्की ढिल्लों ने बिंदिया को मरहम पट्टी, दवाइयां व अन्य जरूरत का सामान उपलब्ध करवाया।