हरियाणा में 2,193 रेप के मामले अदालतों में विचाराधीन, 257 अपराधियों को न्यायालय ने सुनाई सजा

Edited By Isha, Updated: 10 Dec, 2019 01:13 PM

2 193 rape cases under consideration in courts in haryana

हरियाणा में 5 सालों दौरान रेप के 5,826 मामले दर्ज किए गए हैं। वर्ष 2014 से लेकर 2018 के बीच दर्ज इन मामलों में से 1,103 बलात्कारियों को न्यायालय ने सजा सुनाई,परंतु अब भी 2,193 रेप के ऐसे

डेस्क(अर्चना सेठी): हरियाणा में 5 सालों दौरान रेप के 5,826 मामले दर्ज किए गए हैं। वर्ष 2014 से लेकर 2018 के बीच दर्ज इन मामलों में से 1,103 बलात्कारियों को न्यायालय ने सजा सुनाई,परंतु अब भी 2,193 रेप के ऐसे मामले हैं जिनकी पीड़िताओं को इंसाफ का इंतजार है। हरियाणा स्टेट क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों की मानें तो 5 सालों से हर साल 2 हजार से अधिक ऐसे मामले होते हैं जो न्यायालय में विचाराधीन होते हैं। हाल ही में हैदराबाद गैंगरेप के बाद पुलिस एनकाऊंटर और निर्भया गैंगरेप में सात सालों बाद भी न मिल सके इंसाफ ने एक बहस छेड़ दी है कि क्या रेप से संबंधित मामलों को जल्द इंसाफ नहीं मिल पाता? हरियाणा से जुड़े आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2014 में रेप से संबंधित 1,174 मामले दर्ज किए गए।

इसी साल रेप के मामले में 257 अपराधियों को न्यायालय ने सजा सुनाई। वर्ष 2014 में 2,011 ऐसे मामले थे जिन पर न्यायालय में फैसले विचाराधीन थे। वर्ष 2015 की बात करें तो 1,070 रेप के मामले रजिस्टर किए गए और 286 अपराधियों को सजा सुनाई गई। 2016 में रेप के 1,187 मामले दर्ज किए गए। 175 रेपिस्ट को न्यायालय ने सजा सुनाई। 2,341 मामले रेप के ऐसे थे जो न्यायालय में विचाराधीन थे। वर्ष 2017 में 1,099 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। 203 बलात्कारियों के खिलाफ अदालत ने सजा का ऐलान किया जबकि 2136 मामले ऐसे थे जिनमें न्यायालय में फैसला लिया जाना बाकी था। वर्ष 2018 में रेप से संबंधित 1296 मामले दर्ज किए गए थे। 182 बलात्कारियों को न्यायालय ने सजा सुनाई और 2193 मामलों में फैसले का इंतजार था।



बलात्कार से जुड़े मामले जिनमें अदालत सुना चुकी है सजा
रोहतक गैंगरेप केस फरवरी, 2015 में मानसिक रूप से विक्षिप्त नेपाली महिला के सामूहिक बलात्कार के मामले में ट्रायल कोर्ट ने दिसम्बर, 2015 को सात बलात्कारियों को मौत की सजा सुनाई थी। यह मामला दिल्ली के निर्भया गैंगरेप से मिलता जुलता था। खेत में काम करने वाली नेपाली महिला के साथ प्रमोद, पवन, सेवर, मनबीर, राजेश, सुनील, सुनील ने न सिर्फ सामूहिक बलात्कार और हत्या की, बल्कि पोस्टमार्टम दौरान पेट से पत्थर और रेजर तक मिले थे। सातों अपराधियों को बर्बर क्रूरता पर मौत की सजा सुनाई गई थी। अपराधियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया परंतु वहां से भी 4 जुलाई को ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा गया।  

जून, 2018 को रेवाड़ी की 8 साल की बच्ची के रेप और हत्या के मामले में पड़ोस में रहने वाले 22 वर्षीय युवक को कोर्ट ने दोषी पाया था। अपराधी सन्नी ने रेप करने के बाद बच्ची को मारकर घर के कपबोर्ड में छिपा दिया था। बाद में पुलिस से बचने के लिए जांच में मदद का झूठा नाटक भी किया। दिसम्बर, 2018 को कोर्ट ने सन्नी को मौत की सजा सुनाई थी। 
बौंदकलां पुलिस को सांकरोड पर रहने वाली महिला ने शिकायत दी थी मोनू नामक व्यक्ति ने दीवार फांदकर घर में घुसकर दुराचार की कोशिश की थी। कोर्ट ने मोनू को 5 साल की जेल और 10 हजार का जुर्माना ठोका था। 

13 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म मामले में दोषी रामदीन को 10 साल की सजा और 30 हजार जुर्माने की सजा सुनाई थी। फरवरी, 2017 में चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन के नजदीक 27 साल के रामदीन ने 13 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म किया था। बच्ची ने जब परिवार को आपबीती सुनाई तो रेलवे पुलिस में मामला दर्ज किया गया था। इसी तरह कुरुक्षेत्र कोर्ट ने बाल आश्रम की बच्ची को वेश्यावृत्ति में धकेलने के खिलाफ 3 लोगों को 10-10 साल की सजा और दस हजार रुपए जुर्माना की सजा सुनाई थी।



अदालतों को जल्द लेने होंगे फैसले
दिल्ली की एडवोकेट श्रुति मिश्रा का कहना है कि बलात्कार से जुड़े मामलों में देरी से इंसाफ की बड़ी वजह ह्यूमन राइट संगठन हैं। संगठनों का मानना है कि कितना भी बड़ा अपराधी क्यों न हो परंतु फांसी नहीं मिलनी चाहिए। इसके बाद बलात्कार के मामलों में सबसे बड़ा पेंच उम्र का फंस जाता है। बलात्कार माइनर एज की लड़की के साथ हुआ है या फिर 18 साल से बड़ी उम्र की लड़की के साथ। निर्भया केस माइनर से जुड़ा था इस वजह से ट्रीटमैंट बड़ी उम्र की महिलाओं से नहीं जोड़ा जा सकता था।



उसके बाद कई मामलों में ऐसा भी होता है कि कोर्ट ने मौत की सजा सुना दी परंतु जेल में रह रहे अपराधी का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। फांसी की सजा पाने वाले अपराधी के लिए शारीरिक और दिमागी तौर पर स्वस्थ होना बहुत ही जरूरी है। एक खालिस्तानी आतंकवादी के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी परंतु सेहत बिगड़ गई व अदालत ने सजा-ए-मौत की बजाय उम्रकैद दे दी। न्यायालयों को तुरंत फैसले सुनाने होंगे,क्योंकि उन्नाव जैसे केस में बेल पर आने वाले अपराधी या पीड़िता को जला देंगे या फिर जेल से मर्सी अपील करेंगे या तबियत बिगडऩे का बहाना कर सकते हैं। 

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