कैथल में 11 हजार मीट्रिक टन गेहूं खराब होने के मामले में जांच पड़ी सुस्त, 2 महीने बाद भी नहीं हुई कार्रवाई

Edited By Gourav Chouhan, Updated: 27 Jan, 2023 03:41 PM

11 000 metric tonnes of wheat spoilage in kaithal investigation is slow

दो महीने बीत जाने के बाद भी आज तक सरकार द्वारा गठित की गई टीम मौके पर जांच करने के लिए नहीं पहुंची है। इस कारण यह मामला अब ठंडे बस्ते में चला गया है।

कैथल(जयपाल) : शहर में 11 हजार मीट्रिक टन गेहूं को खुले में रखकर षड्यंत्र के तहत सड़ाने के मामले को सरकार के उच्च अधिकारी दबाने की कोशिश कर रहे है। दरअसल सरकार ने इस मामले की निष्पक्ष जांच करने के लिए प्रशासनिक सचिव के साथ चार अन्य उच्च अधिकारियों की एक टीम बनाकर पूरे मामले की जांच पूरी कर 1 महीने में रिपोर्ट देने के आदेश जारी किए थे। वहीं दो महीने बीत जाने के बाद भी आज तक सरकार द्वारा गठित की गई टीम मौके पर जांच करने के लिए नहीं पहुंची है। इस कारण यह मामला अब ठंडे बस्ते में चला गया है।

 

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उपमुख्यमंत्री ने भी दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होने का दिया था आश्वासन

 

बता दें कि इस मामले में उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने भी दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बात कही गई थी, लेकिन हैरानी की बात है कि 2 महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी दोषियों के खिलाफ कोई भी ठोस कार्रवाई देखने को नहीं मिली है।

 

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दोषी अधिकारियों को डीसी ने पहले ही दे दी थी क्लीन चिट

 

कैथल डीसी संगीता तेतरवाल ने भी इस मामले में दोषी अधिकारियों को पहले ही क्लीन चिट दे दी थी, हालांकि मामला सुर्खियों में आने के बाद सरकार द्वारा इस पूरे मामले की जांच उच्च स्तरीय कमेटी से करवाने की बात कही गई थी। इस मामले में अब भी जिला उपायुक्त संगीता तेतरवाल ने चुप्पी साधी हुई है। वहीं विपक्ष के नेता भी लगातार जिला प्रशासन और सरकार पर दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों को बचाने का आरोप लगा चुके हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि मामले को जानबूझ कर दबाने की कोशिश की जा रही है।

 

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जानबूझ कर छीना गया था 22 लाख लोगों के मुंह से निवाला

 

गौरतलब है कि कैथल में अलग-अलग जगहों पर कुल मिलाकर 11 हजार मीट्रिक टन गेहूं को खुले में रखकर षड्यंत्र के तहत सड़ाने का मामला सामने आया था। आरोप लगे थे कि ऐसा इसलिए किया गया है ताकि शराब बनाने वालों को यह गेहूं सस्ते दामों पर दिया जा सके। गौर करने वाली बात है कि इस गेहूं की कीमत लगभग 22 करोड़ रुपए से ज्यादा थी और लगभग 22 लाख लोगों को पांच किलो प्रति व्यक्ति के हिसाब से 1 महीने का निवाला बन सकता था। अपने निजी स्वार्थ के लिए भ्रष्ट और लालची अधिकारियों ने न सिर्फ गरीबों से निवाला छीनने का काम किया, बल्कि सरकार के राजस्व को भारी नुकसान पहुंचाया था। इस मामले को लेकर विपक्षी नेताओं ने भी खूब बवाल किया था। वहीं सरकार ने भी कमेटी का गठन कर दोषी अधिकारियों को सजा देने की दावा किया था, जो समय के साथ-साथ कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। सवाल यह है कि क्या ऐसे लालची और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई होगी या फिर ये इसी तरह गरीब लोगों के हितों का हरण करना अपना निजी स्वार्थ पूरा करते रहेंगे। 

 

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