शाश्वत है 'सनातन धर्म'- "जीवन शैली और दर्शन का मेल है सनातन धर्म" : स्वामी आशुतोषानन्द गिरी

Edited By Gaurav Tiwari, Updated: 23 Jun, 2025 04:16 PM

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विश्व के प्राचीनतम धर्मों से से एक कहा जाने वाला सनातन धर्म अपनेआप में भारत की गौरवशाली संस्कृति और परंपरा का समावेश है।

गुड़गांव ब्यूरो : विश्व के प्राचीनतम धर्मों से से एक कहा जाने वाला सनातन धर्म अपनेआप में भारत की गौरवशाली संस्कृति और परंपरा का समावेश है। हिंदू धर्म के नाम से प्रचलित सनातन धर्म का महत्व न केवल इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं में है, बल्कि इसके दार्शनिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों में भी है। भगवान शिव की नगरी काशी में स्थापित कैलाश मठ के महामंडलेश्वर एवं न्याय वेदांत दर्शनाचार्य स्वामी आशुतोषानन्द गिरी इस विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं,"हिंदू पौराणिक कथाओं में भारत की धरती का विशेषरूप से उल्लेख मिलता है और दुनियाभर में इसकी पहचान विभिन्न देवी देवताओं के निवास स्थल के रूप में स्थापित है।

 

सनातन धर्म की जड़ें हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथों अर्थात वेद, उपनिषद, भगवद गीता, पुराण, रामायण और महाभारत में समाहित हैं, इसलिए यह हम सबका परम दायित्व बन जाता है कि अपने इस महान धर्म को न केवल समूचे विश्व में प्रचारित किया जाए, बल्कि इसका संरक्षण भी किया जाए।" स्वामी आशुतोषानन्द गिरी महाराज ने विगत कई वर्षों से सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठा रखा है और इस सिलसिले में वह देश के अलग-अलग शहरों में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने जाते रहते हैं। सनातन धर्म के महत्व और महिमा के विषय में बताते हुए स्वामी आशुतोषानन्द गिरी कहते हैं,"सनातन धर्म में, 'सनातन' शब्द का अर्थ है 'शाश्वत' या 'हमेशा रहने वाला'। यह धर्म देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सदाचार के मार्ग पर चलते हुए जीवन जीने का एक सर्वोत्तम तरीका है। इस धर्म का कोई निश्चित संस्थापक या जन्म तिथि नहीं है क्योंकि यह एक शाश्वत धर्म है, जिसका अर्थ है कि इसका न तो कोई आदि है और न ही कोई अंत। सनातन धर्म का अनुसरण हमें विपत्तियों के सामने घुटने टेकने की बजाय साहस के साथ उनका सामना करने की प्रेरणा देता है।"

 

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    सनातन धर्म की अन्य विशेषताओं का वर्णन करते हुए स्वामी जी कहते हैं कि इस धर्म के अनुसार हमारे जीवन में आने वाले संघर्ष हमें गिराने नहीं, बल्कि मजबूत बनाने के लिए आते हैं। वर्तमान में सनातन धर्म को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ियां अपने इस गौरवशाली धर्म के महत्व से परिचित हो सकें और दुनियाभर में इसका विस्तार कर सकें। उनका मानना है कि उनका उद्देश्य सनातन धर्म के प्रमुख सिद्धांतों: धर्म (कर्तव्य), अर्थ (समृद्धि), काम (इच्छा) और मोक्ष (मुक्ति) से दुनिया को परिचित करवाना है, ताकि लोग धर्म के मार्ग से ना भटकें और सदाचरण वाला जीवन जीएं। वो स्वयं भी पूरे भारत में श्री रामकथा, श्रीमद्भागवत कथा, देवी भागवत कथा, श्री ज्ञान यज्ञ और शिव महापुराण की कथा का वाचन करते हैं और भारत संस्कृति से लोगों को परिचित करवाने का काम करते हैं। स्वामी आशुतोषानन्द गिरी के कुशल मार्गदर्शन एवं अध्यक्षता में एक गुरुकुल भी चलाया जा रहा है, जहां सैकड़ों की संख्या में छात्र वैदिक शास्त्रों का अध्ययन करते हैं। इस गुरुकुल के मेधावी छात्रों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पुरस्कृत कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त स्वामी जी के मार्गदर्शन में एक गौशाला भी चलाई जा रही है, जहां कसाई घरों से छुड़ाकर लाई गई गायों की सेवा की जाती है।

     

    महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोषानन्द गिरी का जन्म बिहार के विश्वास पुर नामक गांव के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही उनका रुझान सांसारिक दुनिया की बजाय पूजा-पाठ, संत सेवा और धार्मिक अनुष्ठानों योग साधना में बढ़ने लगा था। हालांकि बड़े होने पर अपनी पढ़ाई पूरी करके आशुतोषानन्द गिरी नेट (जे०आर०एफ) उत्तीर्ण करके कोलकाता के स्वामी विवेकानन्द विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर भी नियुक्त हो गए।लेकिन उनके मन भौतिक दुनिया को लेकर विरक्ति का भाव इतना प्रबल हो चुका था कि मार्च 2014 में उन्होंने काशी स्थित कैलाश मठ में संत रूप धारण करके सांसारिक जीवन का पूर्ण रूप से त्याग कर दिया और एक संत का वेश धारण कर लिया। काशी में उन्होंने चौदह वर्षों तक न्याय शास्त्र और वेदांत का गहन अध्ययन किया। इस दौरान उन्हें कई बार शास्त्रार्थ प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं, एक बार महाराज जी को भारत में भी प्रथम स्थान मिल चुका है।

     

     

    सनातन धर्म के पौराणिक महत्व और महानता को किसी परिचय की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि सनातन धर्म मात्र एक धर्म नहीं है, बल्कि यह एक जीवनशैली और एक दर्शन भी है जो व्यक्ति को आध्यात्मिक और नैतिक रूप से समृद्ध बनाने में मदद करता है। सनातन धर्म के मूल तत्व करुणा, दया, प्रेम, अहिंसा, सत्कर्म और सदभाव हैं। ये ऐसी विशेषताएं हैं जिन्हें अपने जीवन में सम्मिलित करना सभी मनुष्यों के लिए आवश्यक है। ऐसी हैं बहुत सी अन्य विशेषताएं भी हैं जो इस धर्म को इतना महत्वपूर्ण बनाती हैं।

     

    विविधता में एकता का है रूप: हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वर्णन मिलता है,जिनकी अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार पूजा की जाती है। लेकिन इसके बावजूद यह एकेश्वरवाद की भावना को भी बढ़ावा देता है,जिसके अनुसार ईश्वर के रूप तो अनेक हैं लेकिन सर्वोच्च शक्ति एक ही है।

     

    कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत: सनातन धर्म में कर्म की अवधारणा को बहुत महत्व दिया गया है। यह धर्म कर्म के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें व्यक्ति के कार्यों का फल उसे अगले जन्म में मिलता है। अर्थात व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है इसलिए धर्म के मार्ग पर ही चलना चाहिए।

     

    आध्यात्मिक मार्गदर्शन: यह धर्म व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है और आत्म-साक्षात्कार पर जोर देता है। ताकि उसे जीवन के उद्देश्य और अर्थ को समझने में मदद मिल सके। धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति अपने अंतर्मन से संपर्क स्थापित करने में सक्षम हो जाता है, जिससे जीवन की सही दिशा स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगती है।

     

    सांस्कृतिक धरोहर: सनातन धर्म भारतीय संस्कृति की बहुमूल्य सांस्कृतिक धरोहर भी है और दिवाली, होली, नवरात्रि, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी जैसे पर्व, विभिन्न रीति-रिवाज और परंपराएं हमारी सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध बनाती हैं।

     

    नैतिकता और मानवीय मूल्य: यह धर्म नैतिकता और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देता है, जैसे कि सत्य, अहिंसा और करुणा। सनातन धर्म में अन्य जीवों के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखने पर विशेष जोर दिया जाता है ताकि सभी जीव एक साथ मिलकर प्रेम पूर्वक रह सकें।

     

     स्वामी आशुतोषानन्द गिरी दुनियाभर में सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए भी मजबूत रणनीति बनाने और उसके अनुसार आवश्यक कदम उठाने पर जोर देते हैं। उनका मानना है कि अपने धर्म की नींव मजबूत करने के लिए आपसी मतभेद मिटाकर हम सबको एकजुट होकर काम करने की जरूरत है।सनातन धर्म की महानता से दुनियाभर का परिचय करवाने के लिए महामंडलेश्वर आशुतोषानन्द गिरी जी महाराज ने कई किताबें भी लिखी हैं, जिनमें भजनामृत, आरती पुष्पांजलि तथा अनेक स्त्रोतों का संग्रह, वेदांत स्त्रोत्रावली, श्रीमद् भागवत सप्तपदी, भजन रसधारा और भक्तियोग सहित अनेकों अन्य धार्मिक किताबें शामिल हैं।

     

    वर्तमान में स्वामी आशुतोषानंद गिरी सनातन धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक काशी में स्थित कैलाश मठ के महामंडलेश्वर एवं न्याय वेदांत दर्शनाचार्य के रूप में जाने जाते हैं। काशी के भेलूपुर गांव में स्थित कैलाश मठ पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यहां भगवान शिव की पूजा उनके शिवलिंगम स्वरूप में की जाती है और पूरे भारतवर्ष से श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं।

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