Edited By Gaurav Tiwari, Updated: 11 Nov, 2024 07:39 PM
जीडीआई पार्टनर्स एक सामाजिक प्रभाव परामर्श फर्म है जो सरकारों के साथ मिलकर भारत में वायु प्रदूषण जैसी गंभीर समस्याओं से निपटने के लिए काम कर रही है।
गुड़गांव ब्यूरो : भारत के प्रदूषण प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोगों के स्वास्थ्य को खतरा है। यह खतरा प्रदूषण से जुड़ी पुरानी नीतियों, प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में कर्मचारियों की कमी और वायु गुणवत्ता (एक्यू) नियंत्रण प्रणाली में बिखरे आंकड़ों के कारण पैदा हो रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और प्रभावी प्रदूषण नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए तत्काल सुधार आवश्यक हैं। प्रदूषण नियंत्रण को लेकर यह सुझाव वायु प्रदूषण जैसी गंभीर समस्याओं से निपटने के लिए काम कर रही संस्था ''जीडीआई (गवर्नेंस डेवेलेपमेंट इम्पैक्ट) पार्टनर्स'' ने दिया है।
जीडीआई पार्टनर्स एक सामाजिक प्रभाव परामर्श फर्म है जो सरकारों के साथ मिलकर भारत में वायु प्रदूषण जैसी गंभीर समस्याओं से निपटने के लिए काम कर रही है। इस फर्म ने हाल ही में वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। इन सुझावों में उसने प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को मजबूत करने, वायू प्रदूषण को लेकर बनी पुरानी नीतियों में सुधार करने और विभिन्न क्षेत्रों में डेटा और प्रौद्योगिकी का एकीकरण करने की बात कही है। ये सिफारिशें जीडीआई पार्टनर्स द्वारा चलाए जा रहे उन प्रयासों के अनुरूप हैं, जिसमें वह सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण प्रबंधन सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली सुधार लाने के लिए काम कर रही है। जीडीआई पार्टनर्स का मानना है कि इन सुधारों से भारत में वायु प्रदूषण की समस्या को कम करने में मदद मिलेगी और लोगों के स्वास्थ्य में सुधार होगा।
जीडीआई पार्टनर्स ने कहा है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (पीसीबी) की क्षमता को मजबूत करना आवश्यक है, क्योंकि लगभग आधे पद खाली होने के कारण विशेषज्ञता और जनशक्ति की कमी है। पर्यावरण विशेषज्ञों और कुशल पेशेवरों की नियुक्ति से पीसीबी अधिक प्रभावी ढंग से काम कर सकेगा। साथ ही, वर्तमान वायु गुणवत्ता नीतियां भी पुराने मानकों पर आधारित हैं, जैसे पीयूसी प्रणाली बीएस-VI मानकों को ध्यान में नहीं रखती और औद्योगिक क्षेत्रों में सीईएमएस के लिए कानूनी समर्थन की भी कमी है। इसके अलावा, वायु गुणवत्ता डेटा विभिन्न एजेंसियों में बिखरा होने से प्रदूषण स्रोतों को समझना कठिन हो जाता है। ऐसे में डेटा और तकनीक के एकीकरण से प्रदूषण प्रवृत्तियों को समझने, हॉटस्पॉट्स की पहचान करने और लक्षित समाधान लागू करने में आसानी होगी।