भारत द्वारा तेल क्षेत्रों में सुधारः क्या दिग्गज वैश्विक ताकतें करेंगी भरोसा और देंगी सहयोग?*

Edited By Gaurav Tiwari, Updated: 13 May, 2025 07:11 PM

improvement in oil fields by india

ऊर्जा सुरक्षा के मामले में भारत की कोशिशों के बावजूद लगातार गंभीर चुनौतियां जारी हैं। महत्वाकांक्षी आर्थिक लक्ष्यों के बावजूद, देश आज अपनी आवश्यकता का करीब 90% कच्चा तेल, लगभग आधी प्राकृतिक गैस, और अपनी एलपीजी आवश्यकता का 60% से अधिक आयात करता है।

नई दिल्ली : ऊर्जा सुरक्षा के मामले में भारत की कोशिशों के बावजूद लगातार गंभीर चुनौतियां जारी हैं। महत्वाकांक्षी आर्थिक लक्ष्यों के बावजूद, देश आज अपनी आवश्यकता का करीब 90% कच्चा तेल, लगभग आधी प्राकृतिक गैस, और अपनी एलपीजी आवश्यकता का 60% से अधिक आयात करता है। इसके $25 अरब मूल्य के अपस्ट्रीम तेल एवं गैस सेक्टर के सामने भूविज्ञान, नीतिगत असंगितयों और उच्च सरकारी लाभों जैसी चुनौतियां हैं – ये ऐसे मसले हैं जिनके चलते वैश्विक दिग्गज भी रुचि लेने से बच रहे हैं। 

 

ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (ओएएलपी) के, जो कि निवेशकों को अपने ब्लॉकों को चुनने के लिए सशक्त बनाने के मकसद से तैयार की गई, अभी तक भी आशातीत परिणाम नहीं मिले हें। नवें दौर में, ब्रिटेन की प्रमुख कंपनी बीपी ने, रिलायंस और ओएनजीसी के साथ, गुजरात के केवल एक ब्लॉक में रुचि दिखायी है। अधिक जोखिम वाले इलाकों में राजस्व-बंटवारे में छूट जैसी उदार नीतियों के बावजूद, मुख्य विजेता एक बार फिर ओएनजीसी, ऑयल इंडिया और वेदांता रहे। 

 

10वें दौर के लिए रोड शो के दौरान, 25 ब्लॉकों की पेशकश की गई थी और इस बार भी विदेशी खरीदारों की ओर से रुचि न के बराबर दिखी। लेकिन अधिकारियों को उम्मीद है कि नए विनियमनों से हालात बदलेंगे, हालांकि अभी इस बारे में गहरा संदेह बना हुआ है। भारत में तेल उत्पादन अधिकतर पुराने तेल क्षेत्रों से हो रहा है, और विव 25 में उत्पादन में 2% गिरावट दर्ज की गई है। इतना ही नहीं, नए तेल क्षेत्रों की खोज भी कुछ खास नहीं हो पायी है। 

 

फिलहाल, पहले से जारी चिंताएं भी बरकरार हैं। उद्योग से जुड़े जानकारों का कहना है कि सरकार द्वारा अत्यधिक वित्तीय दावे – जो कभी-कभी ड्रिलर की आमदनी का 70% तक होता है, और उसके साथ ही पट्टे की अस्थिर शर्तें, एकाएक लगाए जाने वाले शुल्क, और लंबे कानूनी विवाद भी शामिल हैं। वेदांता की इकाई केयर्न के सामने ये चुनौतियां आती रही हैं। रिलायंस और बीपी के खिलाफ $2.8 अरब के मुआवज़े जैसे मामलों ने, अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में जीत के बावजूद, उद्योग के भरोसे को डगमगाया है। 

 

इस मामले के महत्व के मद्देनज़र, सरकार ने संशोधित तेल क्षेत्र (विनियमन एवं विकास) विधेशक, 1948 लाने का प्रस्ताव रखा है। वैश्विक दिग्गजों के साथ परामर्श के आधार पर तैयार यह विधेयक स्थिरता का भरोसा दिलाता हैः पट्टे की शर्तों को तेल क्षेत्र के जीवनकाल से जोड़ा गया है, मनमाने करों से सुरक्षा का वायदा है, और साथ ही, स्थानीय अदालतों का सहारा लिए बिना मध्यस्थता को बाध्यकारी बनाया गया है। अधिकारियों का दावा है कि नए विधेयक ने भारत में अब तक के सबसे उदार अन्वेषण दौर की पेशकश की है। 

 

इन उपायों के बावजूद चुनौतियां अपनी जगह पर बरकरार हैं। भारत की भूवैज्ञानिक संभावनाएं गयाना और मोज़ाम्बिक जैसे अपेक्षाकृत नए हॉटस्पॉट्स की तुलना में कमजोर हैं। गैस भंडार प्रायः समुद्रतटों से काफी दूर हैं, जिसके परिणामस्वरूप गैस निकालने की प्रक्रिया काफी खर्चीली साबित होती है। कुछ नए क्षेत्रों को भी खोला गया है, और हालांकि कुछ अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने रुचि भी दिखायी है, लेकिन स्थिरता और अनुबंध संबंधी चिंताएं बनी हुई हैं। 

 

इस बीच, अधिकारियों को उम्मीद है कि इन संशोधनों से धीरे-धीरे भरोसा बढ़ेगा। ये सुधार कई तरह के एकाएक लगााए जाने वाले करों, जैसे विशेष उत्पाद शुल् की चिंताओं को भी कम करने की दिशा में की गई पहल है। साथ ही, निवेश की अवधि में वित्तीय शर्तों के बदले जाने पर समुचित मुआवजे का भी प्रावधान किया गया है। यहां तक कि इंडोनेशिया जैसे नजदीकी बाजारों को गैस निर्यात की मंजूरी देने के बारे में भी बातचीत जारी है ताकि समुद्रतटों से दूर स्थित परियोजनाएं भी लाभकारी साबित हो सकें। 

 

इसके बावजूद, पिछले घाव अभी भी भरे नहीं हैं। हाल में उद्योग के एक कार्यक्रम में, दो बड़ी विदेशी कंपनियों के अधिकारियों ने यह साफ कहा कि जब तक भारत इस बात की गारंटी नहीं देता कि मध्यस्थता के नतीजों को अंतिम माना जाएगा और कर नीतियां स्थिर रहेंगी, वे बोली नहीं लगाएंगे।  इधर, घरेलू ड्रिलर्स पर निर्भरता ने भी कोई खास उत्साहजनक नतीजे नहीं दिखाए हैं। ओएनजीसी का मुंबई हाइ का उत्पादन पिछले चार दशकों में 70% तक गिरा है। वेदांता का बाड़मेर बेसिन भी, जो कि कच्चे तेल का प्रमुख स्रोत रह चुका है, तेजी से घट रहा है। 

 

जहां हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय का यह जोर देकर कहना है कि घरेलू कंपनियां काफी हैं, लेकिन उपलब्ध साक्ष्य कुछ और ही कहानी कहते हैं। जहां तक नए संशोधनों का सवाल है, ऊर्जा सुरक्षा का भारत का सपना एक्सॉन मोबिल, बीपी, शेल, शेवरॉन और टोटल एनर्जी के गलियारों से गुजरता है।  संशोधित तेल क्षेत्र अधिनियम से उम्मीद की राह दिखायी देने लगी है। लेकिन वैश्विक ड्रिलर्स का एक बार फिर भारत पर भरोसा बनाने के लिए, निरंतरता, निष्पक्षता और अनुबंध के प्रति सम्मान का भाव जगाना जरूरी है – और ऐसे सभी प्रयास निश्चित ही कागजों पर दस्तखत से कहीं अधिक दूरी तय करते हैं।

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