Edited By Isha, Updated: 12 Nov, 2024 08:34 PM
हरियाणा में बीजेपी की राजनीति के पिछले करीब चार दशक से प्रमुख चेहरे हरियाणा के सबसे सीनियर विधायक परिवहन, ऊर्जा और श्रम मंत्री अनिल विज की दिल्ली परिक्रमा और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के राजनीतिक मायने राजनीतिक समीक्षक निकालने
चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी) : हरियाणा में बीजेपी की राजनीति के पिछले करीब चार दशक से प्रमुख चेहरे हरियाणा के सबसे सीनियर विधायक परिवहन, ऊर्जा और श्रम मंत्री अनिल विज की दिल्ली परिक्रमा और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के राजनीतिक मायने राजनीतिक समीक्षक निकालने में लगे हुए हैं। अनिल विज भाजपा सरकार में 2014 में, 2019 में व अब 2024 में कैबिनेट मंत्री के पद पर हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनिल विज का सामन्जसय कोई नया नहीं है। लाल चौक कश्मीर में जब भाजपा के तत्कालीन नेता तिरंगा झंडा लहराने के लिए जा रहे थे, उस यात्रा में नरेंद्र मोदी के साथ अनिल विज का लगाव सबने देखा था।
अनिल विज हरियाणा के उन राजनीतिक लोगों में से एक है, जो अपने संबंधों का ढींढोरा पिटने के आदि नहीं है। चार दशक से अधिक लंबी राजनीतिक पारी खेलने वाले अनिल विज भाजपा की हैट्रिक लगने के बाद सत्ता पक्ष में एक मात्र ऐसे विधायक और मंत्री है, जो हरियाणा के बहुत सारे लोग जब उनसे मिलने आते हैं तो उन्हें उनका नाम लेकर संबोधित करते हैं। आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद और जनसंघ की पृष्ठभूमि से जुड़े अनिल विज ने भाजपा की राजनीति की बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं। हरियाणा की विधानसभा में जब भाजपा के दो व चार विधायक हुआ करते थे, उस समय भी अनिल विज विधायक थे और विपक्ष के विधायक के रूप में सदन के भीतर इनकी आक्रामक भूमिका सबने देखी है।
छात्र राजनीति से की शुरूआत
15 मार्च 1953 को जन्मे अनिल विज राजनीति में आने से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा में थे। अनिल विज ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जरिए छात्र राजनीति में कदम रखा। वह एसडी कॉलेज, अंबाला कैंट में पढ़ते हुए राजनीति में एक्टिव रहे। 1970 में एबीवीपी ने अनिल विज को महासचिव बनाया। अनिल विज ने विश्व हिंदू परिषद, भारत विकास परिषद बीएमएस और ऐसे अन्य संगठनों के साथ सक्रिय रूप से काम किया। अनिल विज 1974 में भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी करने लगे लेकिन बीजेपी से जुड़े रहे।
सुषमा स्वराज की जगह लड़े उपचुनाव
1990 में जब सुषमा स्वराज राज्यसभा के लिए चुनी गईं तो अंबाला छावनी की सीट खाली हो गई। अनिल विज ने बैंक की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और सुषमा स्वराज की सीट से उपचुनाव लड़े। अनिल विज यह उपचुनाव जीत गए। करीब 34 साल पहले 27 मई 1990 को तत्कालीन सातवीं हरियाणा विधानसभा में दो रिक्त हुई सीटों पर उपचुनाव हुए थे। उस समय ओम प्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री हुआ करते थे। तब दडवा कला हलके से जनता दल की टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला और अंबाला कैंट से अनिल कुमार विज विधायक निर्वाचित हुए थे। तब अनिल विज की आयु 37 वर्ष की थी। बैंक की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए अनिल विज 2019 में हुए 14वीं विधानसभा के चुनाव में लगातार तीसरी बार और कुल छठी बार अंबाला छावनी से चुनाव जीते थे।
अपनी पार्टी बनाकर भी नहीं छूटा बीजेपी प्रेम
अनिल विज एक अप्रैल 1996 तथा फऱवरी 2000 में हुए दो विधानसभा चुनावों में निर्दलीय के रूप में अंबाला कैंट से विधायक बने। 2005 में विधानसभा के आम चुनाव में अनिल विज 615 वोट से अपनी हैट्रिक बनाने से चूक गए। 2007 में उन्होंने विकास परिषद के नाम से अपनी एक अलग राजनीतिक पार्टी भारतीय चुनाव आयोग से पंजीकृत करवाई। 2009 में हरियाणा विधानसभा के आम चुनाव से पहले भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा उन पर फिर से भरोसा जताया गया और उन्हें भाजपा की टिकट दी गई। विज 2009, 2014, 2019 में लगातार तीन बार विधायक बने और अपनी हैट्रिक लगाई। अब 2024 में विज ने अंबाला कैंट से लगातार चौथी बार और कुल सातवीं बार जीत दर्ज की है।
बंसीलाल-चौटाला के मंत्री के ऑफर को भी ठुकरा चुके हैं विज
अनिल विज अंबाला कैंट विधानसभा से सातवीं बार विधायक चुने गए हैं। वह पिछले 11 साल से हरियाणा की बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री है। अनिल विज अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन में भाजपा के अलावा कभी किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल नहीं हुए। 1996 में बंसीलाल जब हरियाणा के मुख्यमंत्री थे, उनके द्वारा मंत्री बनाए जाने के ऑफर को भी विज ने ठुकरा दिया था और सन 2000 में ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व में प्रदेश में इनेलो की सरकार थी, चौटाला ने पार्टी के दो दिग्गज पंजाबी नेताओं अशोक अरोड़ा और ओमप्रकाश महाजन की जिम्मेदारी अनिल विज को पार्टी ज्वाइन करने के लिए मनाने को दी थी। मनाए जाने पर इनाम के रूप में ना केवल अनिल विज को बल्कि ओपी महाजन को भी मंत्री बनाया जाना था। इस कोशिश में महाजन 2 दिन तक विज के निवास पर डटे रहे, लेकिन उस समय भी उनके पथ- सोच और विचारधारा से अलग नहीं कर पाए।