देवीलाल का एक फैसला से उन पर पड़ा भारी, रोहतक के लोगों ने उन्हें कभी नहीं लगाया गले

Edited By Nitish Jamwal, Updated: 18 Apr, 2024 06:19 PM

one decision of devi lal cost him dearly

देवीलाल का एक फैसला उन पर इतना भारी पड़ गया कि रोहतक के लोगों ने उन्हें फिर कभी गले नहीं लगाया।प्रदेश की राजनीतिक का गढ़ रोहतक की जनता  ने भूतपूर्व उपप्रधानमंत्री चौ़ देवीलाल को पहली ही बार में सिर आंखों पर बैठाया था।

चंडीगढ़ (चंद्र शेखर धरणी): देवीलाल का एक फैसला उन पर इतना भारी पड़ गया कि रोहतक के लोगों ने उन्हें फिर कभी गले नहीं लगाया।प्रदेश की राजनीतिक का गढ़ रोहतक की जनता  ने भूतपूर्व उपप्रधानमंत्री चौ़ देवीलाल को पहली ही बार में सिर आंखों पर बैठाया था। लेकिन देवीलाल का एक फैसला उन पर इतना भारी पड़ गया कि रोहतक के लोगों ने उन्हें फिर कभी गले नहीं लगाया। बेशक, उस समय उनका फैसला राजनीतिक तौर पर बेशक सही हो सकता है लेकिन ‘मरोड़ काढ़ने’ के लिए अलग पहचान रखने वाले इस पार्लियामेंट के मतदाताओं को देवीलाल का वह फैसला रास नहीं आया।

 1989 के लोकसभा चुनावों की घटना है। यह वही चुनाव था, जिसने देवीलाल को राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर पहचान दी थी। चौ़ देवीलाल ने 1989 में एक साथ तीन संसदीय सीटों से चुनाव लड़ा। हरियाणा में वे रोहतक, राजस्थान में सीकर और पंजाब में फिरोजपुर संसदीय क्षेत्र से जनता दल (जेडी) की टिकट पर चुनाव लड़े। तीनों ही जगहों पर देवीलाल का यह पहला चुनाव था। रोहतक और सीकर के लोगों ने उन्हें सिर आंखों पर बैठाया और जीत का सेहरा उनके सिर बांधा।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि उस समय देवीलाल ने एक साथ तीन राज्यों से चुनाव भी इसीलिए लड़ा था ताकि वे पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा सकें। बेशक, इस चुनाव के नतीजों ने देवीलाल को बड़ी पहचान दी। वे पहली बार देश के उपप्रधानमंत्री भी बने लेकिन रोहतक सीट से इस्तीफा देकर सीकर का प्रतिनिधित्व करना उनके लिए भारी पड़ गया। रोहतक के लोगों ने देवीलाल के फैसले को एक तरह से अपने लिए ‘अपमान’ माना।

इसका नतीजा यह हुआ कि इसके बाद देवीलाल रोहतक से लगातार तीन – 1991, 1996 और 1998 लोकसभा चुनाव हारे। तीनों ही चुनावों में उनका मुकाबला भूपेंद्र सिंह हुड्डा से हुआ और हुड्डा, देवीलाल के खिलाफ जीत की हैट्रिक लगाकर कांग्रेस का बड़ा चेहरा बनने में कामयाब रहे। ऐसा भी कहा जाता है कि देवीलाल को तीन बार शिकस्त देने की वजह से ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा का पार्टी नेतृत्व में राजनीतिक कद बढ़ा और 2005 में वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो सके।

1989 में चौ़ देवीलाल ने रोहतक सीट से 3 लाख 90 हजार 243 वोट हासिल करके कांग्रेस के हरद्वारी लाल को पटकनी दी। हरद्वारी लाल को 2 लाख 1 हजार 238 वोट हासिल हुए। देवीलाल के इस्तीफा देने के बाद हरद्वारी लाल ने कोर्ट में याचिका दायर करके उन्हें विजेता घोषित करने की मांग की। इसी वजह से इस सीट पर उपचुनाव भी नहीं हो सका। इसके बाद 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में देवीलाल ने फिर रोहतक से किस्मत आजमाई।

देवीलाल के मुकाबले कांग्रेस ने चेहरा बदलते हुए पहली बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मौका दिया। हुड्डा अपने पहले ही चुनाव में देवीलाल जैसे दिग्गज को बड़े अंतर से चुनाव हराने में कामयाब रहे। हुड्डा को 2 लाख 41 हजार 235 वोट हासिल हुए वहीं देवीलाल को 2 लाख 10 हजार 662 मत मिले। देवीलाल रोहतक के राजनीतिक महत्व का समझते थे। इसलिए वे हारने के बाद भी पीछे नहीं हटे। 1996 में उन्होंने फिर रोहतक से दाव ठोका। हुड्डा ने दूसरी बार भी देवीलाल के रोहतक से संसद नहीं पहुंचने दिया।

1996 के चुनावों में हुड्डा ने 1 लाख 98 हजार 154 वोट हासिल किए और देवीलाल को 1 लाख 95 हजार 490 मत मिले। इस बार का चुनाव त्रिकोणीय भी बना हुआ था। चूंकि भाजपा के प्रदीप कुमार भी पूरी मजबूती से चुनाव में डटे थे। भाजपा के प्रदीप कुमार ने इस चुनाव में 1 लाख 58 हजार 376 वोट लेकर सम्मानजनक प्रदर्शन किया। इसके बाद देवीलाल ने 1998 में फिर रोहतक से ही ताल ठोक दी। कांग्रेस ने भी हुड्डा पर अपना भरोसा बरकरार रखा।

1998 में हुआ एकदम नजदीकी मुकाबला

1998 के चुनाव में चौ़ देवीलाल जहां हुड्डा से हार का बदला लेने के लिए पूरी मजबूत से मैदान में आए वहीं इस बार हुड्डा भी जीत की हैट्रिक लगाने की ठान चुके थे। 1998 में रोहतक के चुनाव में आमने-सामने की टक्कर देखने को मिली। कौन हारेगा और कौन जीतेगा, इसका अनुमान लगाना आसान नहीं था। यह चुनाव कितने कांटे का और नजदीकी था, इसका अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि हुड्डा के मुकाबले देवीलाल लगातार तीसरी बार महज 383 मतों से चुनाव हारे। हुड्डा को 2 लाख 54 हजार 951 और देवीलाल को 2 लाख 54 हजार 568 वोट मिले।

चुनाव से पीछे नहीं हटा देवीलाल परिवार

खुद चौ़ देवीलाल कई चुनाव हारे, लेकिन उनका परिवार कभी भी चुनाव से पीछे नहीं हटा। देवीलाल परिवार ने अपने गृह क्षेत्र सिरसा के अलावा प्रदेश के दूसरे जिलों व अन्य प्रदेशों में जाकर चुनाव लड़ने से कभी गुरेज नहीं किया। देवीलाल 1980 में सोनीपत से भी सांसद रहे। उन्होंने जनता पार्टी (सेक्युलर) की टिकट पर कांग्रेस के रणधीर सिंह को चुनाव हराया। इसके बाद 1984 के चुनावों में चौ़ देवीलाल सोनीपत से कांग्रेस के धर्मपाल सिंह के हाथों शिकस्त खा बैठे।

चौटाला ने भी लड़े अलग-अलग चुनाव

देवीलाल पुत्र ओमप्रकाश चौटाला उचाना, महम सहित कई हलकों से चुनाव लड़ चुके हैं। चौटाला पुत्र अजय सिंह भिवानी से सांसद रहे हैं। वे राजस्थान के दो हलकों से विधायक रह चुके हैं और हिसार से भी लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। उनके छोटे बेटे व ऐलनाबाद विधायक अभय चौटाला पहले भी कुरुक्षेत्र से पार्लियामेंट लड़ चुके हैं। अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला हिसार से सांसद रहे हैं और वर्तमान में उचाना कलां से विधायक हैं। वहीं अजय चौटाला की पत्नी दादरी जिला के बाढ़डा हलके से विधायक हैं। देवीलाल पुत्र चौ. रणजीत सिंह हिसार से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वे पूर्व में आदमपुर से विधानसभा व हिसार से लोकसभा भी लड़ चुके हैं। यह ऐसा परिवार है, जिसने अभी तक प्रदेश में सबसे अधिक और अलग-अलग सीटों से चुनाव लड़ा है।

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!