हरियाणा की राजनीति: ‘लालों’ की पीढिय़ों में फिर विरासत की जंग

Edited By Shivam, Updated: 10 Apr, 2019 02:09 PM

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हरियाणा की राजनीति में भले ही तीन प्रमुख ‘लालों’ के युग का अंत हो गया हो पर उनकी विरासत को लेकर एक बार फिर जंग शुरू हो गई है। इस बार फिर हरियाणा के पहले लाल व देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री स्वर्गीय देवीलाल की चौथी पीढ़ी चुनाव मैदान में ताल ठोकने की...

चंडीगढ़ (अविनाश पांडेय): हरियाणा की राजनीति में भले ही तीन प्रमुख ‘लालों’ के युग का अंत हो गया हो पर उनकी विरासत को लेकर एक बार फिर जंग शुरू हो गई है। इस बार फिर हरियाणा के पहले लाल व देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री स्वर्गीय देवीलाल की चौथी पीढ़ी चुनाव मैदान में ताल ठोकने की तैयारी में है। वहीं, तीसरे लाल यानी पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भजनलाल की तीसरी पीढ़ी भी चुनावी तैयारी में जुट गई है। दूसरे लाल बंसीलाल की पौत्री भिवानी में फिर अपने दादा की विरासत को सहेजने में जुटी हुई है। हालांकि, तीसरे लाल पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भजनलाल के दो बेटे अपने पिता की राजनीतिक आकांक्षाओं को पूरा करने में तल्लीन हैं। भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन भी अपने पिता की सीट रही करनाल से टिकट के दावेदार हैं।

फिलहाल लालों की विरासत को संभालने में कौन फिट बैठेगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन लोकसभा चुनावों के दौरान लालों के नामों को लेकर चर्चा एक बार फिर शुरू हो गई है। लालों के नाम से मशहूर हरियाणा की राजनीति किसी न किसी तरह से लालों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। मौजूदा समय में भी मनोहर लाल के पास सत्ता की चाबी है। वर्ष 2014 विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री मनोहर लाल के तौर पर चौथे लाल भी सामने आए हैं, लेकिन पूर्व के तीनों लालों की पीढ़ी विरासत को संभालने में लग गई है। 15 साल पहले तक हरियाणा में सत्ता की चाभी भी लालों और उनकी पीढिय़ों के हाथों में रही है जिसे भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने छीन ली थी। लिहाजा लोकसभा चुनावों में एक बार फिर लालों की विरासत को लेकर उनकी दूसरी, तीसरी और चौथी पीढ़ी में जंग तेज हो गई है।

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हिसार लोकसभा सीट
प्रपौत्र दोबारा चुनावी मैदान में आने की तैयारी में
हरियाणा के पहले लाल व पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल के प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला दोबारा से चुनावी मैदान में आने की तैयारी में हैं। उनका मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई से हो सकता है। कुलदीप पूर्व में हिसार से सांसद रहे हैं और गत लोकसभा चुनाव में दुष्यंत से पराजित हो गए थे। कुलदीप ने यह सीट पिता भजनलाल की मृत्यु के बाद उपचुनावों में देवीलाल की तीसरी पीढ़ी अजय चौटाला को हराकर जीती थी। मौजूदा लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से दो लालों की पीढिय़ों के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है। देखना यह होगा कि दुष्यंत दोबारा से जीत दर्ज करते हैं या फिर कुलदीप खोई विरासत को बरकरार रखते हैं। 

करनाल लोकसभा सीट
विरासत को बचाने के लिए बेटा टिकट की दौड़ में
कभी भजनलाल का गढ़ कहे जाने वाले करनाल लोकसभा क्षेत्र में एक बार फिर से भजनलाल के नाम की चर्चा शुरू हो गई है। वजह उनके बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई अपने पिता की विरासत को बचाने के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं। हालांकि सीट पर भजनलाल को एक बार जीतने के बाद मात भी खानी पड़ी थी, लेकिन 17वीं लोकसभा में सीट फिर लालों की विरासत को लेकर चर्चा में आ गई है। लंबे समय के बाद पिता भजनलाल की खोई विरासत को हथियाने के लिए चंद्रमोहन अब किसी भी तरह से करनाल सीट पर चुनाव लडऩे का सपना देख रहे हैं।

भिवानी लोकसभा सीट
वर्ष 2004 में तीनों लालों की पीढिय़ां थीं आमने-सामने
हरियाणा के दूसरे लाल पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पौत्री श्रुति चौधरी एक बार फिर चुनावी मैदान में आ चुकी हैं। श्रुति बंसीलाल के छोटे बेटे स्वर्गीय सुरेंद्र सिंह की बेटी हैं, जो पिता की मृत्यु के बाद उनकी विरासत को संभाल रही हैं। वह 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा के धर्मवीर से चुनाव हार गई थी। वर्ष 2004 में यह सीट काफी चर्चा का विषय रही जब यहां से तीनों लालों की पीढिय़ां एक-दूसरे के सामने थी। इस चुनाव में देवीलाल के पौत्र अजय चौटाला, बंसीलाल के छोटे बेटे सुरेंंद्र सिंह और भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई में कड़ी टक्कर थी। यह क्षेत्र बंसीलाल का गढ़ भी था, लेकिन उसके बाद भी जनता ने तीसरे लाल यानी भजनलाल के बेटे कुलदीप को अपना प्रतिनिधि स्वीकार किया था। भिवानी में 2 लालों की पीढिय़ों को पराजय करने के बाद ही कुलदीप एकाएक राजनैतिक सुर्खियों में आए थे। 

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