HC का महत्वपूर्ण आदेश, तीसरे पक्ष की शिकायत पर SC/ST Act के तहत दर्ज न हो मामले

Edited By Manisha rana, Updated: 26 Mar, 2022 06:08 PM

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पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में पुलिस को तीसरे पक्ष के शिकायत पर एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज न करने का आदेश दिया...

चंडीगढ़ (धरणी) : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में पुलिस को तीसरे पक्ष के शिकायत पर एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज न करने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने डीजीपी को कहा है कि वो सभी जिला पुलिस प्रमुख को आदेश जारी करे कि एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज करते समय जिला अटॉर्नी (कानूनी)  से इस बाबत राय ले कि शिकायतकर्ता एससी एंड एसटी एक्ट के तहत पीड़ित की परिभाषा के अंतर्गत आता है या नहीं, उसके बाद ही मामला दर्ज करे।

हाई कोर्ट ने कहा कि तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता एससी/एसटी अधिनियम के प्रावधानों का दुरुपयोग कर रहे हैं। हाई कोर्ट के जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान ने यह आदेश जालंधर के एक वरिष्ठ दपंति की  एससी/एसटी के तहत दर्ज एफआइआर को चुनौती देने वाली याचिका पर दिया। दपंति और उनके बेटे के बीच एक संपत्ति विवाद चल रहा है, जिसके बाद दपंति ने 2016 में अपने बेटे को बेदखल कर दिया था। उसने बेटे ने 2021 में अनुसूचित जाति की एक लड़की से विवाह कर लिया। एक दिन बेटे ने याचिकाकर्ता पिता को से  बातचीत की जिसमें याची दंपति ने बातचीत के दौरान उसकी पत्नी के  समुदाय/जाति (एससी/ एसटी जाति) के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की। दपंति के बेटे ने बातचीत कथित ऑडियो रिकॉर्डिंग को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर अपलोड कर दी। इसके बाद  जालंधर में इसके खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता होने का दावा करने वाले तीन लोगों ने प्राथमिकी दर्ज करवा दी। सुनवाई के दौरान याची पक्ष की तरफ से दलील दी गई कि शिकायतकर्ता  एससी  एसटी अधिनियम  के तहत पीड़ित की परिभाषा के अंतर्गत माने जाएगे,  अधिनियम के अनुसार  पीड़ित व्यक्ति  उसे माना जाएगा  जिसने  शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक या आर्थिक नुकसान का अनुभव किया है, जिसमें उसके रिश्तेदार, कानूनी अभिभावक और कानूनी उत्तराधिकारी शामिल हैं।

महत्वपूर्ण बात यह है बहस के दौरान सरकारी वकील  और शिकायतकर्ता के वकील दोनों ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि  लड़की, जिसके खिलाफ कथित अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया था, ने तत्काल मामले में कोई शिकायत नहीं की और न ही तीनों शिकायतकर्ता किसी भी तरह से संबंधित  उससे हैं। ।  कोर्ट ने भी माना कि एफआइआर तीन  तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताद्वारा दर्ज कराई गई है जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम  के अनुसार पीड़ित नहीं हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता एससी/एसटी अधिनियम के प्रावधानों का दुरुपयोग कर रहे हैं।  इस लिए पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया जाता है कि वे जिलों के सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को निर्देश जारी करें कि तीसरे पक्ष के कहने पर एससी और एसटी अधिनियम के तहत कोई भी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए, जब तक कि जिला अटॉर्नी (कानूनी) से यह राय नहीं ले ली जाती कि शिकायतकर्ता एससी एंड एसटी एक्ट के तहत पीड़िता की परिभाषा के अंतर्गत आता है।

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