दिव्यांगता को हराकर शिक्षा की ज्योति बनीं डॉ. कामना, समाजसेवा में भी आगे, देहदान का संकल्प

Edited By Isha, Updated: 14 Apr, 2024 07:58 AM

dr kamna became the light of education by defeating disability

इंसान के हौसले बुलंद हों तो दुनिया की कोई रुकावट उसे अपनी मंजिल पाने से नहीं रोक सकती। सौ प्रतिशत दिव्यांगता को हराकर हजारों छात्र-छात्राओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनीं भिवानी की डॉ. कामना कौशिक इसकी मिसाल हैं। प्रदेश के प्रतिष्ठित

भिवानीः इंसान के हौसले बुलंद हों तो दुनिया की कोई रुकावट उसे अपनी मंजिल पाने से नहीं रोक सकती। सौ प्रतिशत दिव्यांगता को हराकर हजारों छात्र-छात्राओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनीं भिवानी की डॉ. कामना कौशिक इसकी मिसाल हैं। प्रदेश के प्रतिष्ठित वैश्य महाविद्यालय, भिवानी में हिंदी की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कामना (46) ने कई चुनौतियों का मुकाबला किया।

बचपन में आसपास के एक व्यक्ति द्वारा दिव्यांगता का मजाक उड़ाये जाने से व्यथित हुईं नन्ही कामना ने संकल्प लिया कि दिव्यांगता को अपने इरादों के कभी आड़े नहीं आने देंगी। उन्होंने अपने परिजनों को भी ढाढ़स बंधाया और लगातार आगे बढ़ती रहीं। वैश्य महाविद्यालय से पहले सीएमके नेशनल महाविद्यालय, सिरसा में उन्होंने हिंदी विभागाध्यक्ष के तौर पर कार्य किया। उन्होंने डॉ. जगदीश गुप्त के काव्य में युगबोध विषय पर पीएचडी की। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा मद्रास से डीलिट (डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर) का शोध कार्य सम्पन्न किया।


जनहित व समाजसेवा की बानगी प्रस्तुत करते हुए अपनी देहदान करने की घोषणा करके भी उन्होंने एक मिसाल पेश की है। डॉ. कामना राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक मुद्दों पर कई संगोष्ठियों व प्रतियोगिताओं का आयोजन कर चुकी हैं। हिंदी साहित्य के विभिन्न पहलुओं और ज्वलंत मुद्दों पर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में उनके 60 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने करीब 70 सेमिनारों में पेपर प्रस्तुत किए हैं। शोध कार्य के अलावा, डॉ. कामना द्वारा संपादित पांच पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। सामाजिक-आर्थिक सर्वे में नोडल अधिकारी के रूप में उन्होंने बेहतरीन कार्य किया और महाविद्यालय को अपनी श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। इसके लिए महाविद्यालय को राज्य स्तरीय अवार्ड से नवाजा गया।   

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