क्या लाल परिवार लगा पाएंगे BJP का बेड़ा पार? भाजपा को सत्ता और वारिसों को साख बचाने की चुनौती !

Edited By Saurabh Pal, Updated: 26 Jun, 2024 08:36 PM

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10 साल पहले हरियाणा की राजनीति में शून्य से शिखर तक का सफर तय करने वाली भारतीय जनता पार्टी इन दिनों राज्य में बेहद कठिन परिस्थिति से गुजर रही है। लोकसभा चुनाव के परिणाम ने बीजेपी के खिलाफ चल रहे मजबूत सत्ता विरोधी लहर को उजागर कर दिया है...

चंडीगढ़(कृष्ण कन्हैया): 10 साल पहले हरियाणा की राजनीति में शून्य से शिखर तक का सफर तय करने वाली भारतीय जनता पार्टी इन दिनों राज्य में बेहद कठिन परिस्थिति से गुजर रही है। लोकसभा चुनाव के परिणाम ने बीजेपी के खिलाफ चल रहे मजबूत सत्ता विरोधी लहर को उजागर कर दिया है। 2019 में सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज कर इतिहास रचने वाली बीजेपी अबकी बार पांच सीटों पर ही सिमट गई है। 70 से अधिक विधानसभा सीटों में लीड लेने वाली भाजपा इस बार 44 सीटों पर ही बढ़त बना सकी साफ है, गिरता जनाधार आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। 

लालों के लाल को लाकर सियासी जमीन मजबूत कर रही भाजपा

वर्तमान में उसके सामने खड़ी चुनौतियां इस बात को भी स्पष्ट करती हैं कि जाट दबदबे वाली हरियाणा की सियासत में नॉन जाट राजनीति को बढ़ावा देने की बीजेपी रणनीति बुरी तरह विफल हुई है। ऐसे में भगवा दल ने किसी जमाने में प्रदेश के दिग्गज क्षत्रप रहे तीन लाल – देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल के परिवार के लोगों को अपने साथ लाकर नए सिरे से अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की कोशिश की है। इनमें दो जाट और एक गैर जाट हैं। बीजेपी की रणनीति प्रदेश के दो कद्दावर जाट परिवारों के सहारे इस बिरादरी के भीतर उसके खिलाफ पनपे आक्रोश को कम करने की रणनीति भी है। हालांकि, इन तीनों दिग्गज लाल परिवारों की जो वर्तमान राजनीतिक क्षमता है। उस पर लोकसभा चुनाव के परिणाम ने सवालिया निशान जरूर लगा दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई में बीजेपी के लिए ये एक मास्टरस्ट्रोक और कांग्रेस के लिए कोई झटका है, तो चलिए एक नजर बीजेपी में गए तीनों लाल परिवारों के सदस्यों के सियासी वजन पर एक नजर डालते हैं। 

आदमपुर हलके तक में ही सिमट कर रह गए कुलदीप बिश्नोई

हरियाणा में राजनीति के पीएचडी कहे जाने वाले चौधरी भजनलाल के नाम सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड है। जाट दबदबे वाले प्रदेश में भजनलाल की गिनती सबसे बड़े गैर जाट नेता के रूप में होती है। उनका प्रभाव हरियाणा के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों के बिश्नोई मतदाताओं पर भी माना जाता है। भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई को उनका सियासी उत्तराधिकारी माना जाता है। बिश्नोई के अब तक के सियासी सफर को देखें तो वो अपनी पिता की तरह अपनी सियासी जमीन तैयार नहीं कर पाए और आदमपुर हलके तक में ही सिमट कर रह गए। कुलदीप बिश्नोई 2014 में खुद और 2019 में उनके बेटे हिसार लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे। 2022 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए कुलदीप बिश्नोई इस आम चुनाव में अपने हलके आदमपुर तक में बीजेपी को लीड नहीं दिला पाए। जबकि यहां से उनका बेटा भव्य विधायक है। इस सीट पर उनके परिवार का 1970 के दशक से कब्जा है। सियासी जानकार इस नतीजे को कुलदीप बिश्नोई के लिए बड़े झटके के तौर पर देख रहे हैं। 

 रणजीत चौटाला के सहारे देवी लाल की लेगेसी साधने में भाजपा नाकाम 

चौधरी रणजीत सिंह चौटाला की बीजेपी में सरप्राइज एंट्री ने सबको चौंका दिया था। 24 मार्च को रानियां से निर्दलीय विधायक चौटाला अचानक बीजेपी में शामिल हुए और उन्हें तुरंत हिसार लोकसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया गया। यहां आपको बता दें कि रणजीत चौटाला 2019 से हरियाणा की भाजपा सरकार को अपना समर्थन दे रहे हैं और सरकार में बतौर कैबिनेट मंत्री शामिल भी हैं। उनकी सबसे बड़ी पहचान ये है कि वो पूर्व उपप्रधानमंत्री और कद्दावर जाट नेता ताऊ देवीलाल के सबसे छोटे बेटे हैं। बताया जाता है कि देवीलाल की लीगेसी और जाट चेहरा होने के कारण बीजेपी ने आनन-फानन में अपना तमाम दिग्गज नेताओं को साइड कर लोकसभा का टिकट थमा दिया। बीजेपी को उम्मीद थी कि इसका फायदा आसपास की सीटों पर भी होगा, लेकिन रणजीत चौटाला खुद तो अपनी सीट हारे ही अपनी रानियां सीट से भी सिरसा के बीजेपी उम्मीदवार अशोक तंवर को लीड नहीं दिला पाए। इसके अलावा चौटाला के अब तक के सियासी सफर को देखें तो उनके हिस्से से जीत से अधिक हार ही आई है। जिंदगी के करीब 80 बसंत देख चुके रणजीत चौटाला अब तक मात्र तीन चुनाव ही जीत पाए हैं। 

 किरण ने की भाजपा में एंट्री, कांग्रेस में मचा घमासान

हरियाणा में बीजेपी में सबसे लेटेस्ट एंट्री है किरण चौधरी की, जिनके आने के बाद से इन दिनों हरियाणा कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। किरण एक अन्य दिग्गज जाट नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की बहू हैं। इस परिवार का प्रभाव क्षेत्र भिवानी और आसपास का इलाका माना जाता है। किरण 2005 से तोशाम से विधायक हैं और कैबिनेट मंत्री के साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष के पद पर रह चुकी हैं। अन्य दोनों लालों की तरह बंसीलाल परिवार के सदस्यों का भी प्रभाव क्षेत्र सीमित हुआ है। इसकी बानगी बंसीलाल की पोती और किरण की बेटी श्रुति चौधरी का लगातार दो बार भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से बड़े अंतर से चुनाव हारना है। इसके अलावा इस आम चुनाव में किरण तोशाम में भी कांग्रेस प्रत्याशी को लीड नहीं दिला पाईं। हालांकि, कहा जाता है कि ऐसा उन्होंने जानबूझकर किया, लेकिन जो भी हो बंसीलाल की तरह इलाके में उनका वर्चस्व तो बिल्कुल नहीं है। 

विधानसभा चुनाव में लाल परिवार की अग्निपरीक्षा

बीजेपी अतीत में इन तीनों दिग्गज लालों के साथ अलग-अलग समय में हरियाणा में गठबंधन कर चुनाव लड़ी है और सरकार चलाई है, लेकिन ये पहला मौका है जब इन लालों के परिवार के लोग पूरे भाजपाई बने हैं। बीजेपी इसे एक बड़ी सफलता के तौर पर पेश कर रही है। हालांकि, कांग्रेस खासकर हुड्डा खेमा ऐसा बिल्कुल नहीं सोचता। वो इसे अपने लिए किसी भी तरह का झटका नहीं मान रहे। वो बीजेपी में गए इन नेताओं को कोई बड़ी सियासी चुनौती नहीं मानते कुल मिलाकर आगामी विधानसभा चुनाव बीजेपी में गए तीनों लाल परिवारों के इन नेताओं के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा, अगर परिणाम लोकसभा चुनाव सरीखे रहे तो निश्चित तौर पर इनकी भविष्य की राजनीति के लिए बड़ा झटका होगा। 

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