32 साल बाद फिर दिल्ली बनी बड़े किसान आंदोलन का केंद्र, 1988 की यादें हुईं ताजा

Edited By Isha, Updated: 30 Nov, 2020 12:59 PM

after 32 years delhi became the center of the big peasant movement again

कृषि कानूनों के विरोध में भारतीय किसान यूनियन और अन्य किसान संगठनों के इस समय दिल्ली में चल रहे बड़े किसान आंदोलन ने 1989 के लोकसभा चुनाव से पहले 25 अक्तूबर, 1988 को दिल्ली में भाकियू के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में...

जींद : कृषि कानूनों के विरोध में भारतीय किसान यूनियन और अन्य किसान संगठनों के इस समय दिल्ली में चल रहे बड़े किसान आंदोलन ने 1989 के लोकसभा चुनाव से पहले 25 अक्तूबर, 1988 को दिल्ली में भाकियू के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में हुए किसान आंदोलन की यादें ताजा करवा दी हैं। मोदी सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के विरोध में पिछले 3 दिनों से दिल्ली बहुत बड़े किसान आंदोलन का केंद्र बन गई है। दिल्ली के टिकरी बॉर्डर से लेकर नैशनल हाईवे नंबर-1 पर सिंघु बॉर्डर पर पंजाब व हरियाणा के हजारों किसानों ने डेरा डाला हुआ है। किसानों ने दिल्ली को चारों तरफ से घेर लिया है।

इस किसान आंदोलन ने 1988 में दिल्ली में भारतीय किसान यूनियन के किसान आंदोलन की यादें ताजा करवा दी हैं। 1988 में केंद्र में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी व राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे। उस समय किसानों की फसलों के भावों को लेकर बड़ा आंदोलन हुआ था। किसान फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत के आधार पर तय करवाने हेतु भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में दिल्ली कूच के लिए ठीक उसी तरह निकले थे जिस तरह अब हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसान दिल्ली की सीमा में प्रवेश कर गए हैं।

‘बोट क्लब पर डट गए थे किसान ’
भाकियू अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश सहित 14 राज्यों के 5 लाख किसानों ने 25 अक्तूबर, 1988 को दिल्ली के बोट क्लब पर आकर डेरा डाल दिया था। टिकैत के नेतृत्व में यूं तो इससे पहले भी कई बड़े किसान आंदोलन हुए थे लेकिन एक आंदोलन दिल्ली के बोट क्लब पर अक्तूबर 1988 में ऐसा भी हुआ था जिसे देख राजीव गांधी की केंद्र सरकार तक कांप गई थी। बोट क्लब पर 25 अक्तूबर, 1988 को बड़ी किसान पंचायत हुई थी। किसानों ने विजय चौक से इंडिया गेट तक के पूरे क्षेत्र को 7 दिन तक अपने कब्जे में रखा था। 

‘राजीव गांधी को बदलनी पड़ी थी रैली की जगह
दिल्ली के बोट क्लब पर किसान आंदोलन के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बोट क्लब पर पहले से तय अपनी रैली का स्थान बदलकर लाल किला मैदान में करनी पड़ी थी। तब किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी थी कि सरकार उनकी बात नहीं सुन रही, इसलिए वह 5 लाख किसानों के साथ दिल्ली आए हैं। ठेठ गंवई अंदाज वाले बाबा टिकैत ने किसानों के साथ वहां 7 दिन तक धरना दिया था। 
बोट क्लब पर हुए किसान आंदोलन के आगे तत्कालीन पी.एम. राजीव गांधी को भी झुकना पड़ा था। राजीव गांधी को भारतीय किसान यूनियन की सभी 35 मांगों पर फैसला लेना का मौका देने की बात पर बोट क्लब का धरना 31 अक्तूबर को खत्म हुआ था। 

‘तब पूरा विपक्ष आ गया था किसानों के समर्थन में’ 
25 से 31 अक्तूबर तक 7 दिन दिल्ली के बोट क्लब पर चले किसान आंदोलन के मंच पर हरियाणा के तत्कालीन सी.एम. चौधरी देवीलाल से लेकर पंजाब के पूर्व सी.एम.प्रकाश सिंह बादल, बाद में देश के प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर, एच.डी. देवेगोड़ा, पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सी.एम. ज्योति बसू सरीखे विपक्ष के तमाम दिग्गज नेताओं ने पहुंचकर किसान आंदोलन को समर्थन दिया था। किसानों के मंच पर पूरे देश के विपक्ष के आ जाने से ही तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को किसानों के आगे नतमस्तक होना पड़ा था। 

‘तीन-चौथाई बहुमत वाले पी.एम. राजीव गांधी थे ज्यादा लोकतांत्रिक : कंडेला’ 
टिकैत के नेतृत्व में 7 दिन तक चले किसान आंदोलन में भाग लेने वाले और हरियाणा भाकियू के प्रदेश महासचिव रामफल कंडेला का कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का लोकसभा में तीन-चौथाई बहुमत था। इतने भारी बहुमत वाली सरकार के प्रधानमंत्री होने के बावजूद राजीव गांधी ने दिल्ली में किसानों की एंट्री नहीं रोकी थी। उनका कहना है कि 1988 में दिल्ली के बोट क्लब पर हुए किसान आंदोलन के मुद्दे से कहीं बड़े मुद्दे पर आज पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान के किसान दिल्ली पहुंचे हैं। किसानों के लिए अब जीवन-मरण का सवाल पैदा हो गया है और देश का किसान पीछे नहीं हटेगा। भाजपा सरकार ने वायदा तो किसानों को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू कर फसलों के लागत मूल्य में 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का किया था और अब न्यूनतम समर्थन मूल्य को ही नए कृषि कानून में समाप्त कर चुकी है। 

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