Edited By Manisha rana, Updated: 03 Aug, 2025 11:45 AM

चाचा! म्हारे गांम के सरकारी स्कूल के सारे मास्टर एक-एक लाख तै उपर तनखा लें सैं, फेर बी बिचारे बहोत गरीब हैं।
भिवानी : चाचा! म्हारे गांम के सरकारी स्कूल के सारे मास्टर एक-एक लाख तै उपर तनखा लें सैं, फेर बी बिचारे बहोत गरीब हैं। जै किम्मे होंदा हो तो इन खात्तर सरकारी मोटर लगवाओ। ये बिचारे जैमीं आ ज्या तो स्कूल म्हें ऐ कोनी आवैं, जै आगे तो टेम तैं पहल्यां लिकड़ ज्यां मैं अपणी-अपणी गाड्डी लेकर। यह बात शुक्रवार दोपहर ठीक 1 बजकर 57 मिनट पर गांव शेरला के राजकीय उच्च विद्यालय के एसएमसी प्रधान रामफल ने हमारे प्रतिनिधि सुखबीर मोटू से उस समय कही जब एसएमसी प्रधान और हमारे प्रतिनिधि दोनों ही गांव के सरकारी स्कूल में मौजूद थे।
यहां बता दें कि सरकारी स्कूलों में अध्यापकों व अन्य स्टाफ का स्कूल टाइम सुबह 8 बजे से दोपहर ढाई बजे का है। मगर गांव शेरला के उच्च विद्यालय के बारे में हमारे प्रतिनिधि को कई दिन से शिकायत मिल रही थी कि यहां अध्यापक या तो आते नहीं, अगर आते हैं तो वे समय से पहले ही फरार हो जाते हैं। जो नहीं आते वे जिस दिन आते हैं उस दिन अपना पूरा हाजिरी रजिस्टर शिकायत एसएमसी प्रधान और हमारे प्रतिनिधि को जानकारी फिर से दी। इस पर ये दोनों सरकारी स्कूल पहुंचे तो यहां एक भी विद्यार्थी नहीं था, क्योंकि उनको पढाने के लिए स्कूल में 2 ही मास्टर बचे हुए थे। वे अपने-अपने विषयों की पढाई पूरी कर चुके थे। इसके अलावा यहां एक महिला क्लर्क और एक चौकीदार मौजूद मिला, जबकि दोनों चपरासी थे ही नहीं।
कमरे पड़े थे बिलकुल खाली-इस दौरान पाया गया कि इस छत पर बड़ी-बड़ी घास उगी हुई है। कई कमरों से की छत से पानी टपक रहा था तो एक बरामदे का लेंटर उखड़ा हुआ था। यहां का हाल देखकर ऐसा लग रहा था कि राजस्थान वाला हादसा अगर यहां हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।
एक लाख से कम किसी अध्यापक का वेतन नहीं यहां कार्यरत एक अध्यापक ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि यहां कार्यरत किसी भी अध्यापक का वेतन एक लाख रुपए महीना से कम होंगे, बाकि तो फरलो पर ही रहते हैं। वे 2-4 दिन में एकाध दिन आकर अपनी हाजिरी पूरी कर जाते हैं। वहीं आने वाले अध्यापक भी कुछ ऐसे होते हैं जो समय से पहले ही अपने-अपने घर चले जाते हैं। जबकि एक भी अध्यापक ऐसा नहीं है जो किसी दूर-दराज के इलाके से आता हो। वहीं इस सरकारी स्कूल में जो बच्चे आते हैं वे सभी लगभग या तो अनुसूचित जाति के लोगों के हैं या फिर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के। इसलिए गांव के है। इसलिए कोई शिकायत नहीं करता तो अधिकारी भी यहां चैकिंग के लिए नहीं आते।
यह बोले रोडवेज जीएम
इस बारे में रोडवेज जीएम दीपक कुंडू ने कहा कि इस तरह के लखपति बेचारे अध्यापकों के लिए रोडवेज बस की सुविधा जरूर दी जाएगी। इसके लिए अलग से रूट मैप बनवाया जाएगा। उन्होंने हैरत की बात है कि एक-एक लाख रुपए से ज्यादा वेतन लेने वाले अध्यापक इस तरह की कोताही बरतते हैं।
महिला सफाईकर्मी तो महीने में एक ही बार आती है
यहां कार्यरत एक महिला सफाईकर्मी के बारे में सुनकर तो और भी अचरज हुआ। उसके बारे में बताया गया कि वह महीने में एक बार आकर अपनी हाजिरी भर जाती है। उसकी खुद की तरख्वाह शायद 35 हजार रुपए महीना है, लेकिन उसने कोई 5 हजार रुपए महीना में कोई युवक छोड़ा हुआ है इसलिए वह भी यहां कभी-कभार ही आता है। वहीं एक चपड़ासी तो अपने आपको जिला शिक्षा अधिकारी से कम नहीं मानता और वह तो कोई काम करने की बजाए अपने कमरे से ही नहीं निकलता।