मकान मालिक ने सरकार से लगाई न्याय की गुहार

Edited By Gaurav Tiwari, Updated: 13 Jan, 2025 07:58 PM

the landlord appealed to the government for justice

अपने ही घर को किराये पर देकर मकान मालिक ने अपने आप को परेशानी में डाल लिया। इसके साथ ही वे अब तक अपनी 35 लाख रुपए की बकाया राशि बतौर किराया प्राप्त करने में भी विफल रहे हैं और अपने मकान पर कब्जा नहीं कर पाए हैं।

गुड़गांव, (ब्यूरो): अपने ही घर को किराये पर देकर मकान मालिक ने अपने आप को परेशानी में डाल लिया। इसके साथ ही वे अब तक अपनी 35 लाख रुपए की बकाया राशि बतौर किराया प्राप्त करने में भी विफल रहे हैं और अपने मकान पर कब्जा नहीं कर पाए हैं। यह बात मकान मालिक मिथिलेश कुमार झा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहीं। मकान मालिक मिथिलेश कुमार झा ने बताया कि एक जोड़े को अपने घर में किराए पर रहने के लिए दिया, जिन्होंने खुद को पति-पत्नी के रूप में पेश किया,जबकि वे वास्तविक रूप से शादीशुदा नहीं बल्कि आपराधिक साजिश के साझीदार थे।

 

इस छद्म दंपति की ये पूरी योजना केवल एक धोखाधड़ी, जालसाजी और मकान कब्जाने के उद्देश्य से तैयार की गई थी। घटना गुडग़ांव के सेक्टर 49, सोहना रोड पर स्थित उप्पल्स साउथ एड के एक घर की है। यहां राजिंदर सिंह यादव और उनकी सहयोगी सुदेश बाला, जो कि राजु यादव की पत्नी है, ने मिथिलेश कुमार झा को धोखा दिया। सुदेश बाला ने अपने बच्चों विवेक यादव और सृष्टि यादव को भी इस धोखाधड़ी, जालसाजी और मकान कब्जाने में सक्रिय रूप से शामिल किया। मिथिलेश कुमार झा ने बताया कि इन लोगों ने यह विश्वास दिलाया कि वे एक शादीशुदा जोड़ा हैं और उनके बच्चे उनके खुद के हैं। मकान मालिक ने उन्हें एक सामान्य परिवार समझकर उनके साथ एक किराए के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। इसमें मौखिक रूप से किराया का भुगतान पत्नी के बैंक खाते से करने की बात कही गई और इसे मकान मालिक ने मान लिया।

 

किराये की अदायगी कुछ महीने तक ठीक रही, लेकिन बाद में यह बंद हो गई। जब किराए की अदायगी बंद हो गई, तो मकान मालिक ने कानूनी प्रक्रिया शुरू की और निष्कासन की मांग की,जो कई वर्षों तक अदालतों में लटकी रही। जब अदालत ने अंतत: मकान मालिक के पक्ष में निष्कासन आदेश पारित किया, तो आरोपी पक्ष ने उसे चुनौती दी और कोर्ट के आदेश का पालन करने से इनकार किया। मकान मालिक मिथिलेश कुमार झा ने कहा कि यह मामला एक लंबी कानूनी लड़ाई बन गया है। अपने मकान पर कब्जा नहीं कर पाए हैं। इसके साथ ही वे अब तक अपनी 35 लाख रुपए की बकाया राशि प्राप्त करने में भी विफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में न्याय की पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाए जाते हैं, क्योंकि सरकार और अदालतों की अनदेखी और उदासीनता से इस तरह के धोखाधड़ी के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस धोखाधड़ के कारण मकान मालिक को न केवल कानूनी परेशानियों का सामना करना पड़ा, बल्कि उन्हें भारी आर्थिक नुकसान भी हुआ है। यह मामला अदालतों और सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार और उनकी उदासीनता को उजागर करता है जो ऐसे अपराधों को संरक्षण देने के लिए जिम्मेदार हैं।

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