Edited By Updated: 20 May, 2016 04:54 PM
सन 1890 अंग्रेजों के समय में बनी पानी से चलने वाली पनचक्की आज भी विद्यमान है।
कैथल (रमन गुप्ता): सन 1890 अंग्रेजों के समय में बनी पानी से चलने वाली पनचक्की आज भी विद्यमान है। हरियाणा में एकमात्र बची ये पनचक्की कैथल के कस्बा पुंडरी में है। पुंडरी से धौंस-नैना गांव को जाने वाली सड़क पर बनी ये पनचक्की आज भी लोगों की पहली पसंद है। लोग दूर दराज के क्षेत्र से यहां अपना आटा पिसाने के लिए आते हैं। लोगों का मानना है कि पनचक्की से निकले आटे की सुंगध भी अच्छी होती है और दूसरी चक्की के आटे की अपेक्षा ठण्डा होता है।
गांवों से आट्टा पीसाने आए लोगों का कहना है कि इस चक्की से पिसाए गए आटे की खास बात ये है कि यह खाने में स्वादिष्ट और अन्य चक्कियों के आटे की उपेक्षा ठंडा होता है।
चक्की संचालक ने बताया कि हालांकि आज के युग बहुत सी तकनीकों का प्रचलन है। लोग लाइट और जनरेटर के इस्तेमाल से घर-घर चक्की लगाकर अपना आट्टा पीस सकते हैं। परन्तु जो स्नेह और प्यार, लगाव लोग आज भी पनचक्की से पीसे आटे को देते हैं वो बहुत ही सराहनीय है। लोग बड़ी दूर दराज से यहां चक्की देखने आते हैं।
परन्तु सिंचाई विभाग की बेरुखी के कारण आज ये पनचक्की गिरने के कगार पर है।
सिंचाई विभाग इस और कोई ध्यान नहीं दे रहा और इसकी बिल्डिंग जर्जर हो चुकी है। ग्रामीणों ने बताया कि ये पनचक्की काफी वर्ष पुरानी है। लोग आसपास के गांव से आटा पीसवाने यहां आते है, क्योंकि एक तो यहां पर आटा दूसरी बिजली चक्की की उपेक्षा सस्ता पीसा जाता है और आटा सेहत के लिए भी फायदेमंद है।