Edited By Nitish Jamwal, Updated: 17 Jun, 2024 05:48 PM
हरियाणा पुलिस के कुछ कांस्टेबल बिना अनुमति के फिल्म देखने सिनेमा में गए थे। जिसके बाद पुलिस विभाग की ओर से उन कांस्टेबलों को दंडित किए जाने की सजा उपयुक्त थी। करीब 31 साल बाद पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पाया कि इन पुलिस कांस्टेबलों को दी गई सजा...
चंडीगढ़ : हरियाणा पुलिस के कुछ कांस्टेबल बिना अनुमति के फिल्म देखने सिनेमा में गए थे। जिसके बाद पुलिस विभाग की ओर से उन कांस्टेबलों को दंडित किए जाने की सजा उपयुक्त थी। करीब 31 साल बाद पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पाया कि इन पुलिस कांस्टेबलों को दी गई सजा उनके द्वारा किए गए मिसकंडक्ट के अनुपात में थी। पुलिस विभाग ने स्थायी प्रभाव से इन कांस्टेबलों की एक भावी वेतन वृद्धि रोक दी थी। वहीं हाई कोर्ट के जस्टिस नमित कुमार ने हरियाणा पुलिस के वेद कुमार, शिव कुमार और किरण पाल द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए ये आदेश पारित किए हैं।
बता दें कि 22 अप्रैल 1993 को अपीलकर्ता बिना छुट्टी और किसी अनुमति के स्थानीय सिनेमा में फिल्म देखने गए थे। उनके पास टिकट नहीं थे और बदले में जांच किए जाने पर उन्होंने सिनेमा के गेटकीपर के साथ झगड़ा किया। उसके साथ हाथापाई की। उन्होंने सिनेमा के मालिक के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट भी की।
पुलिस विभाग द्वारा की गई जांच के बाद 29 जून 1993 को रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिसमें उनके खिलाफ आरोप स्थापित किए गए। 30 जून 1993 को हरियाणा पुलिस के एसपी कमांडो ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया। जिसमें दो भावी वार्षिक वेतन वृद्धि को स्थायी प्रभाव से रोकने का प्रस्ताव था। दोषी पुलिसकर्मियों ने कारण बताओ नोटिस का जवाब प्रस्तुत किया, लेकिन दंड प्राधिकारी ने एक भावी वेतन वृद्धि को स्थायी प्रभाव से रोकने की सजा सुनाई और निलंबन अवधि का वेतन/भत्ता निर्वाह भत्ते तक सीमित कर दिया।
पुलिस विभाग के निर्णय से परेशान होकर उन्होंने करनाल की स्थानीय अदालत में मुकदमा दायर किया। जिसने 31 जनवरी 1998 को अपने आदेश में उनके पक्ष में निर्णय दिया। हालांकि, पुलिस विभाग ने जिला न्यायालय करनाल की अपीलीय अदालत में अपील की, जिसने 22 सितंबर 1998 को निचली अदालत के आदेश को पलट दिया और सजा को बरकरार रखा।
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