सरकार के पास विकल्प पहला विधानसभा का सत्र बुलाना और दूसरा विधानसभा को भंग करना :राम नारायण यादव

Edited By Isha, Updated: 30 Aug, 2024 11:03 AM

the government has two options

एक राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाने को लेकर संविधान विशेषज्ञ राम नारायण यादव ने कहा की हरियाणा विधानसभा चुनाव एक अक्टूबर 2024 होने है। वहीँ विधानसभा का सैसन 12 सितम्बर 2024 तक करवाना निश्चित है। इस समय से पह

चंडीगढ़(चंद्र शेखर धरणी ): एक राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाने को लेकर संविधान विशेषज्ञ राम नारायण यादव ने कहा की हरियाणा विधानसभा चुनाव एक अक्टूबर 2024 होने है। वहीँ विधानसभा का सैसन 12 सितम्बर 2024 तक करवाना निश्चित है। इस समय से पहले सत्र बुलाने की स्थिति में संसदीय व्यवस्था का प्रदेश की सरकार पर क्या असर पड़ेगा यह विशेष है। 

राम नारायण यादव  ने बताया की विशेषकर तब जब सरकार ने पिछले सैशन में बहुमत हासिल कर लिया है और राजयसभा की एकमात्र सिंट विपक्ष के राज्य सरकार के बहुमत खो देने के दावे के बावजूद हासिल कर ली है। 27 अगस्त 2024 के बाई इलेक्शन में निर्विरोध सिंट जीत ली है। संक्षिप्त में कहा जाए तो जब किसी राज्य की संविधानिक मशीनरी संविधान के अनुरूप चलने में विफल हो जाता है। ऐसी स्थिति में राजयपाल की शिफारिश पर राष्ट्रपति 356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लागु कर सकता है। केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होता है की सभी राज्य सरकार संविधान के अनुरूप कार्य करें। वहीँ अनुच्छेद 355 में केंद्र सरकार का यह भी दाइत्व है की वह सभी राज्यों की बाहरी और आतंरिक अशांति आक्रमणों से रक्षा करे। 

राम नारायण यादव  ने बताया की  जहाँ हरियाणा में 12 सितम्बर 2024 तक विधान सभा सत्र  न बुलाए जाने की परिस्थितियों के उत्पन्न होने की है तो इसके बहुत ही रोचक तथ्य है। इस परिस्थिति में सरकार के पास दो विकल्प हो सकते है। जिनमें से पहला विधानसभा का सत्र बुलाना और दूसरा विधानसभा को भंग कर केयरटेकर सरकार चलाना है।एकतरफ विपक्ष कहता है की सरकार अल्पमत में है वही सरकार ने सदन में पहले ही बहुमत हासिल कर लिया था और यह तब तक मान्य होगा जब तक सरकार इसे खो नहीं देती।


वही हाल ही में हुए बाई इलेक्शन में हरियाणा की एकमात्र राजयसभा की सिंट निर्विरोध जीत लेने के बाद सरकार बहुमत में ही मानी जाएगी। यदि विधानसभा भांग नहीं होगी तब राजयपाल को राज्य सरकार से समय अवधि में विधानसभा सत्र बुलाने की सिफारिश प्राप्त नहीं होती और सत्र समय पर नहीं होता तब विशेष रोचक स्थिति पैदा होगी। ऐसे में भारतीय संसदीय प्रणाली में शायद पहला उदहारण होगा।  राम नारायण यादव  ने बताया की   ऐसे में सरकार या राजयपाल के पास क्या विकल्प हो सकते है यह भी जानना आवश्यक है। 

संविधान के अनुच्छेद 85 और 174 संसद या राज्य विधान मंडलों के सत्र आदि बुलाए जाने बारे हैं। संविधान सभा में मई, जून 1994 और आर्टिकल 355, 356 जो राज्यों की बाहरी आक्रमण और आतंरिक अशांति बारे संरक्षित करने के दाइत्व और राज्य में संविधान तंत्र की विफलता बारे है। इन्हे अगस्त 1949 में कंसीडर किया जा रहा था उस वक्त लम्बी बहस हुई। खासकर आर्टिकल 85 और 356 को लेकर। सविधान सभा में प्रोफेसर टिके और एच वी कामत की अमेंडमेंट आई प्रोफ़ेसर सहाय की मांग थी की सैशन पुरे वर्ष के लिए हो और दो सत्रों में 3 महीने से अधिक का समय ना हो। यदि ऐसे में राजयपाल सत्र ना बुलाएं तो प्रिसाइडिंग अधिकारी के पास यह शक्ति हो। इससे डॉ राजेंद्र प्रशाद भी सहमत थे। एस के सक्सेना का मानना था की उम्मीद है की राष्ट्रपति द्वारा सैशन ना बुलाने की स्थिति कभी पैदा नहीं होगी।

उनके पास ऐसा आचरण करने की स्थिति नहीं होनी चाहिए। डॉ आंबेडकर ने इसके जवाब में अपने तर्कों के साथ असहमति जताते हुए विशेष बात कही की हमने सैशन बुलाने की कम से कम समय दिया है परन्तु अधिक अवधि का शैशन बुलाने का अधिकार कार्यपालिका के पास है। डॉ आंबेडकर ने आगे कहा की उन्हें ऐसा नहीं लगता की प्रधानमंत्री सत्र बुलाने को कहें और राष्ट्रपति अपने इस संवैधानिक दाइत्व का पालन करने से मना करें। उन्होंने कहा की राष्ट्रपति को इम्पीचमेंट से हटाने का प्रावधान पहले ही किया जा चूका है। उन्होंने कहा की राष्ट्रपति के इस प्रकार से दाइत्वों का पालन ना करने से कोंस्टीटूशन का वाइलेंस बिना किसी शक से होगा। 

राम नारायण यादव  ने बताया की   इस प्रकार अनुच्छेद 85 और 174 के अंतर्गत समय अवधि में सत्र न बुलाना पूरी तरह से संविधान की अवमानना है जो एमरजेंसी के प्रोविजन आर्टिकल 356 के दौरान ही राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 174 को निरस्त किए जाने पर न बुलाना संभव है। 

माननीय न्यायालय ने 1970 में पंजाब दी ऑर्गेनाइजेशन एक्ट 1962 को कंसीडर करते हुए मनोहरलाल बनाम यूनियन ऑफ़ इण्डिया केस में कहा था। यदि किसी प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की स्थिति पैदा होती है तो राजयपाल महोदय को राज्य की संवैधानिक तंत्र की विफलताओं पर राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट भेजते समय 1994 के बोमई बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया केस में राष्ट्रपति शासन लगाने बारे की गई शिफारिशों को भी ध्यान में रखना होगा।  

 

 

 

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