Edited By Isha, Updated: 08 Dec, 2024 03:23 PM
कृषिकीय तासीर वाले जिले में आबादी के खेतिहर ठोर-ठिकानों पर बसने, सड़कों के किनारे घने पेड़ व झाड़ियों के कटान से
सिरसा: कृषिकीय तासीर वाले जिले में आबादी के खेतिहर ठोर-ठिकानों पर बसने, सड़कों के किनारे घने पेड़ व झाड़ियों के कटान से जीव-जंतुओं पर संकट बढ़ रहा है। यही कारण है कि जीव-जंतुओं की संख्या में कमी आई है।
जिले में रेड फॉक्स जैसी प्रजाति ही लुप्त हो गई है। कुछेक अन्य प्रजातियां भी विलुप्त से लुप्त होने की कगार पर हैं। शिकार के जाल के चलते काले तीतर भी लगातार कम हो रहे हैं। प्राकृतिक नजरिए से जीव-जंतुओं की यह सिकुड़ती संख्या भविष्य के लिए एक खतरनाक अंदेशा है। कोढ़ में खाज यह है कि पहले से ही कर्मचारियों का नितांत अभाव झेल रहा वन्य प्राणी संरक्षण महकमा महज खानापूर्ति कर रहा है।
वैसे तो वन्य विभाग के पास जीव-जंतुओं की संख्या के संदर्भ में जानकारी नहीं है। न तो विभाग ने आज तक इनकी संख्या के बारे में सर्वे किया और न ही पूर्व में किए गए आंकलन का तुलनात्मक ब्यौरा वर्तमान स्थिति से करने की जहमत उठाई। कुछ बरस पहले जरूर प्रशासन की ओर से वन्य प्राणियों के संदर्भ में जानकारी एकत्रित की गई थी।
इस सूचना के अनुसार जिले में वर्ष 2000 में काले तीतरों की संख्या 3000 से अधिक थी। इसी प्रकार से 9000 भूरे तीतर व 300 मोर थे। मोर एवं तीतर की संख्या में ही सबसे अधिक कमी आई है। इसके अलावा उस समय नीलगाय की संख्या 5 हजार, 5 हजार बंदर, 150 जंगली बिल्ली, 60 सेहा, 200 गिदड़, 600 काले हिरण थे।
अब इनकी संख्या में काफी कमी आई है। वर्तमान में वन्य प्राणी संरक्षण विभाग के पास कोई डिटेल नहीं है। कुछ समय पहले जिले में इंडियन लोमड़ी व रेड लोमड़ी की भी प्रजाति थी। अब हैं या नहीं इस बारे में भी विभाग अंजान है। एक तथ्य यह भी है कि जिले के बहुत से इलाकों में मांस के सेवन के लिए जीव-जंतुओं का शिकार होता है।
तीतर का शिकार कोई नया चलन नहीं। विभाग ने शिकार के कितने मामले पकड़े? इस पर अधिकारी चुप्पी साध जाते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि पहले खेतों में अक्सर नजर आने वाली नीलगाय की संख्या भी कम हो रही है। हालांकि यह बात दीगर है कि जो ड्यूटी विभाग को निभानी चाहिए, वह बिश्नोई बाहुल्य गांवों में इस समुदाय के लोग निभा रहे हैं।
जानवरों से अति मोह रखने वाले बिश्नोई समुदाय के लोग जीव-जंतुओं की हिफाजत में हमेशा तैयार रहते हैं। यही वजह है कि क्षेत्र में कोई शिकारी हिरण, काले हिरण की शिकार की हिमाकत नहीं करता। फिलवक्त चिंता की बात तो यह है कि महकमा इतना भी नहीं जानता कि जिले में जीव-जंतुओं की क्या स्थिति है?
न तो संख्या का पता है और न ही अन्य मुख्य बिंदुओं का। खैर कुछ भी हो कभी नीलगाय, जंगली बिल्ली, काले हिरण के अलावा प्रवासी पक्षियों के लिए उपयुक्त स्थल रही सिरसा की धरा से कहीं वन्य प्राणी विलुप्त से लुप्त न हो जाएं।