मजदूरों का दर्द- रहने के लिए घर नहीं, जेब में पैसा और खाने के लिए दाना नहीं

Edited By vinod kumar, Updated: 17 May, 2020 03:46 PM

pain of migrating workers no house to live in and no pocket money

आप फिक्र न करो साहब हम चले जाएंगे, ये रास्ता हमने ही अपना बदन तपाकर बनाया था, अब हमें ये रास्ता ही गांव ले जाएगा। ये दर्द किसी और का नहीं बल्कि पैदल घर जा रहे प्रवासी मजदूराें का है। मजदूराें ने कहा कि सोचा था हम भी एक दिन अपना मकान भी बनाएंगे, इसी...

गुरुग्राम (माेहित): आप फिक्र न करो साहब हम चले जाएंगे, ये रास्ता हमने ही अपना बदन तपाकर बनाया था, अब हमें ये रास्ता ही गांव ले जाएगा। ये दर्द किसी और का नहीं बल्कि पैदल घर जा रहे प्रवासी मजदूराें का है। मजदूराें ने कहा कि सोचा था हम भी एक दिन अपना मकान भी बनाएंगे, इसी के लिए पैसा कमाने शहर में आए थे।

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उन्हाेंने कहा कि जिस मकान के एक छोटे से कमरे में हमने अपना आशीयाना बनाया था। हमें क्या मालूम था कि जब हमारी जेब में पैसे नहीं होंगे, तो इन्हीं माकन के रखवाले हमे ताने देंगे। अब हम अपने गांव जा रहे हैं, जहां हमारा जन्म हुआ था। वहीं पर अब नमक रोटी खाएंगे और अपने परिवार के साथ रहेंगे। 

जिस मजदूर ने धूप में तपकर ऊंची ऊंची इमारते बनाई। दूसरों के मकान में अपना आशियाना बनाया, सपने सजाए, रोजी रोटी कमाने के लिए अपने परिवार से दूर नए नए रिश्ते बनाए। लेकिन एक तिनके ने सब कुछ बिखेर दिया। पैसा न होने के कारण सभी पराए हो गए। जल गए वो सारे  अरमान, जिसे लेकर मजदूर इस अजनबी शहर में आए थे। समय का पहिया ऐसा चला की मजदूर इस शहर से पलायन कर अपने उन्हीं रास्तों पर वापस जा रहे हैं, जिन्हें छोड़कर वो यहां आए थे। 

पैदल अपने घर जा रहे प्रवासी मजदूराें की तस्वीरें गवाही देती है कि भारत भले ही एक हो, लेकिन यहां रहने वालों की परेशानियाबिल्कुल जुदा है। महलों में रहने वाले क्वारंटाइन का मतलब समझ सकते है। मिडिल क्लास कमरे में कैद हो सकता है, लेकिन हिंदुस्तान का एक बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जो लाचार है, पैसा न होने के कारण दाने दाने को मोहताज है। किराया न होने के कारण मकान मालिक के ताने सुनकर परेशान हैं।

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हरियाणा के गुरुग्राम से बिहार जाने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही है। जिन्होंने गांव जाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है, उन लोगों को ताऊ देवीलाल स्टेडियम में इकट्ठा कर सभी का स्वास्थ्य जांच कर ट्रेन में बैठाकर उन्हें उनके घर भेजा जा रहा है। दो दिनों में गुरुग्राम से ऐसे तस्वीरें मिली, जिसे देखकर आप भी हैरान हो जाएंगे। गुरुग्राम के ताऊ देवीलाल स्टेडियम में इकट्ठे हुए प्रवासी मजदूरों ने  घर जाने से पहले कैमरे पर अपना दर्ज इस कदर सुनाया है, जिसे सुनकर आप भी भावुक हो जाएंगे।

बिहार का रहने वाला चन्दन दिल्ली में रहता था, लेकिन नौकरी छूट जाने के बाद काम की तलाश में गुरुग्राम आ गया। पहले दिन काम किया और दूसरे दिन लॉकडाउन हो गया है। ऐसे में चन्दन के पास पैसे नहीं थे, इसलिए वह रिलीफ सेंटर में रहने चला गया। लेकिन वहा चंदन से कम्युनिटी सेंटर में घास कटवाई  जाती थी और बर्तन साफ करवाए जाते थे।

चंदन का आरोप है की जिस कम्युनिटी सेेेंटर में रहता था। वहां रहने वाले सभी लोगों से रिलीफ सेंटर के रखवाले बर्तन साफ करवाते थे. घास कटवाते थे। इतना ही नहीं बल्कि दूसरे लोगों तक राशन  पहुंचाने का काम भी इन्हीं से करवाते थे। इसी तरह रिलीफ सेंटर में रहने वाले दूसरे मजदूर का दर्द भी सुनिए। मजदूर निमेश गुजरात में गाड़ी चलाता था, लॉकडाउन के कारण पैसे खत्म हो गए, इसलिए अपने घर जा रहा था, लेकिन राजस्थान गुजरात बॉर्डर पर पकड़ा गया।

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अगले दिन पुलिसकर्मियों ने इन्हें किसी फ्रूट की गाड़ी में बैठा दिया, जिसके बाद ये रास्ते भटकते भटकते गुरुग्राम पहुंचा। निमेश का साला गुरुग्राम में रहता था। वह अपने साले के घर पहुंचा तो लोगों ने इसकी सूचना पुलिस को दी। जिसके बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम ने इसे अस्पताल में भर्ती कर दिया। 14 दिन बाद इसे वापस छोड़ा गया। जिसके बाद ये मजदूर रिलीफ सेंटर गया, लेकिन वहां इन्हें झाड़ू पोछा बर्तन धुलवाया जाता था।

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