Edited By Deepak Paul, Updated: 14 Dec, 2018 10:45 AM

हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 2 कैदियों की बाकी बची सजा हरियाणा के गवर्नर द्वारा माफ करने के आदेश को एडिशनल चीफ सैक्रेटरी द्वारा बाद में रिकॉल करते हुए जारी किए गए आदेश को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि...
चंडीगढ़(बृजेन्द्र): हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 2 कैदियों की बाकी बची सजा हरियाणा के गवर्नर द्वारा माफ करने के आदेश को एडिशनल चीफ सैक्रेटरी द्वारा बाद में रिकॉल करते हुए जारी किए गए आदेश को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सजा माफी के आदेश को वापस लेने से पहले स्टेट लैवल कमेटी द्वारा याचियों को सुना जाना चाहिए था ताकि वे अपना पक्ष रख सकते। ऐसे में हाईकोर्ट जस्टिस कुलदीप सिंह ने एडिशनल चीफ सैक्रेटरी द्वारा जेल डिपार्टमैंट को 25 मई-2017 और 23 जून-2017 को जारी आदेश को रद्द कर दिया।
वहीं स्टेट लैवल कमेटी को निर्देश दिए हैं कि वह पूर्व आदेश वापस लेने के आदेश जारी करने से पहले अशोक कुमार और अमर सिंह नामक याचियों को सुनवाई का अवसर प्रदान करे। कानून के तहत ही ताजा आदेश जारी किए जाएं। वहीं यदि याचियों के खिलाफ कोई विपरीत आदेश जारी होता है तो 30 दिनों तक उन आदेशों पर कार्रवाई न हो ताकि याचियों को कोर्ट की शरण लेने का मौका मिल सके। हाईकोर्ट ने पाया कि इससे पहले गवर्नर ने 4 अप्रैल-2016 को रिलीज आर्डर जारी किए थे जिसमें याची कैदियों की बची हुई सजा को माफ कर दिया गया था। हालांकि रिलीज आर्डर में कुछ शर्तें थीं जिनमें से एक यह कि रिलीज के बाद यदि सजा की बाकी बची अवधि के दौरान गर्वनर ने इच्छा जताई तो याचियों को सरैंडर करना होगा। संविधान के तहत प्रदान शक्तियों के तहत गवर्नर ने दिए थे आदेश याची पक्ष के वकील ने दलील दी कि गवर्नर ने संविधान के तहत धारा 161 में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए रिहाई के आदेश दिए थे।
ऐसे में सरकार के एडिशनल चीफ सैक्रेटरी उन आदेशों को वापस लेने के लिए सक्षम नहीं थे। एक बार जब सजा माफी के आदेश जारी हो गए तो बाकी कैदियों का केस देखने के बाद इस तरह उन्हें वापस नहीं लिया जा सकता। यह है मामला अशोक कुमार व अमर सिंह द्वारा हरियाणा सरकार और अन्यों को पार्टी बनाते हुए यह याचिका बीते वर्ष दायर की गई थी। याचियों ने 25 मई-2017 व 23 जून-2017 के आदेशों को चुनौती दी थी। वह आदेश हरियाणा के एडिशनल चीफ सैक्रेटरी ने जेल डिपार्टमैंट हरियाणा को जारी किए थे, जो सजा माफ करने वाले पिछले आदेशों को वापस लिए जाने के बारे में थे। उन आदेशों में याचियों को जेल अथॉरिटी के समक्ष सरैंडर करने के निर्देश दिए गए थे। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पाया कि गवर्नर के आदेशों के बाद दोनों याचियों की सजा माफ कर उन्हें छोड़ा गया था।