राजयसभा में हरियाणा से चुनी गई केवल 4 महिलाएं, निर्दलीय कोई महिला आज तक नहीं देख पाई संसद का मुंह

Edited By Isha, Updated: 25 Apr, 2024 04:35 PM

only four women were elected from haryana in rajya sabha

करनाल, रोहतक, हिसार, फरीदाबाद, गुरुग्राम और सोनीपत ने आज तक एक बार भी किसी महिला को संसद में नहीं भेजा है | इस बार हिसार से दो महिलाएं रिश्ते में देवरानी -जेठानी अलग अलग राजनैतिक दलों से मैदान में हैं

चंडीगढ़( चन्द्र शेखर धरणी) : करनाल, रोहतक, हिसार, फरीदाबाद, गुरुग्राम और सोनीपत ने आज तक एक बार भी किसी महिला को संसद में नहीं भेजा है | इस बार हिसार से दो महिलाएं रिश्ते में देवरानी -जेठानी अलग अलग राजनैतिक दलों से मैदान में हैं |  राजयसभा में हरियाणा से आज तक केवल चार महिलाएं चुनी गई  हरियाणा में नारी सशक्तीकरण के दावों के बीच लोकसभा चुनावों का इतिहास कुछ और बताता है । देश की सबसे बड़ी पंचायत कही जाने वाली संसद में महिलाओं को भेजने के लिए न तो सियासी दलों ने कोई खास तवज्जो दी और न ही मतदाताओं ने दरियादिली दिखाई। हरियाणा गठन के बाद से  केवल 6 महिलाएं ही लोकसभा चुनाव ज़ीत  पाई हैं। वह भी पारिवारिक सियासी रसूख और राष्ट्रीय दलों के टिकट के बल पर। निर्दलीय कोई महिला आज तक हरियाणा से संसद का मुंह नहीं देख पाई।

कांग्रेस की चंद्रावती, कुमारी सैलजा और श्रुति चौधरी, भाजपा की सुधा यादव और इनेलो की कैलाशो सैनी,ब्ज्प की सिरसा से सुनीता दुग्गल  ही हरियाणा गठन के बाद इस दौरान लोकसभा में पहुंच पाईं। प्रदेश से पहली महिला सांसद बनने का गौरव जनता पार्टी की चंद्रावती के नाम है जिन्होंने वर्ष 1977 में आपातकाल के हीरो स्व. चौधरी बंसीलाल को हराया था।

इस दौरान प्रदेश से चुने गए 161 सांसदों में (जब यह पंजाब का हिस्सा था, तब से) महिलाओं को केवल आठ बार ही चुना गया। करनाल, रोहतक, हिसार, फरीदाबाद, गुरुग्राम और सोनीपत ने आज तक एक बार भी किसी महिला को संसद में नहीं भेजा है। सबसे ज्यादा तीन बार कांग्रेस की कुमारी सैलजा संसद पहुंचीं। वह दो बार अंबाला और एक बार सिरसा आरक्षित सीट पर चुनी गईं। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के टिकट पर कैलाशो सैनी दो बार कुरुक्षेत्र से जीतीं तो पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पौत्री श्रुति चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ और भाजपा की सुधा यादव महेंद्रगढ़ से एक-एक बार लोकसभा पहुंचने में सफल रहीं। 

1951 में पहले आम चुनाव के दौरान भी संयुक्त पंजाब में करनाल, रोहतक और हिसार सीटें मौजूद थीं, जबकि फरीदाबाद, गुरुग्राम और सोनीपत की सीटें 1977 में अस्तित्व में आईं। वर्ष 1999 में प्रदेश ने पहली बार दो महिला सांसदों महेंद्रगढ़ से भाजपा की सुधा यादव और कुरुक्षेत्र से इनेलो की कैलाशो सैनी को लोकसभा में भेजा।

महिलाओं के लिए वर्ष 2014 सबसे निराशाजनक रहा जब एक भी महिला प्रदेश से संसद नहीं पहुंच पाई। अंबाला से इनेलो की कुसुम शेरवाल, भिवानी-महेंद्रगढ़ से कांग्रेस की श्रुति चौधरी और कुरुक्षेत्र से आम आदमी पार्टी की बलविंदर कौर को हार का मुंह देखना पड़ा। पिछले आम चुनाव में भाजपा ने एक भी महिला उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा

         राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महिलाओं के जीतने की संभावना काफी कम होती है, इसीलिए वह उन पर दांव खेलने से परहेज करते हैं। यही वजह है कि सियासी गलियारों में महिला सशक्तीकरण एक दूर का सपना है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के नारे के फलीभूत होने के बाद अब हरियाणा में जरूरत राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की है।पहली बार ग्राम पंचायतों में महिलाओं को निर्धारित कोटे से कहीं अधिक पंच-सरपंच बना कर उन्हें पलकों पर बैठाने वाले हरियाणा में अब सभी की नजरें लोकसभा चुनावों पर हैं। प्रदेश में पहली बार लोगों ने जिस तरह पंचायतों में 33 फीसद आरक्षित सीटों के बदले 42 फीसद पर महिलाओं की ताजपोशी की, उससे देश की सबसे बड़ी पंचायत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढऩे की उम्मीद जगी थी । 

 

हरियाणा की महिला सांसद

चंद्रावती हरियाणा से पहली महिला लोकसभा सांसद बनीं, जब उन्होंने जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में 1977 में भिवानी में बंसीलाल को हराया था. वह तब इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री थे.

1928 में जन्मी चंद्रावती 1968 में राज्य विधानसभा के लिए चुनी जाने वाली पहली महिला भी थीं. हरियाणा के पंजाब से अलग होने के बाद, वह 1968 में कांग्रेस के टिकट पर राज्य विधानसभा के लिए चुनी गईं और फिर 1991 जनता दल के टिकट पर चुनी गईं.

उन्होंने 1964 से 1966 तक पंजाब सरकार में और 1972 से 1974 तक हरियाणा सरकार में मंत्री के रूप में भी कार्य किया. इसके अलावा, वह फरवरी 1990 से दिसंबर 1990 तक पुडुचेरी की उपराज्यपाल रहीं. कोविड-19 से जूझने के बाद 92 वर्ष की आयु में चंद्रावती का नवंबर 2020 में निधन हो गया.

इस बीच, शैलजा एकमात्र महिला हैं जो हरियाणा से चार बार लोकसभा के लिए चुनी गईं – 1991 और 1996 में सिरसा से, और 2004 और 2009 में अंबाला से. वह कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की सदस्य भी रहीं और 2014 से 2020 तक राज्यसभा सांसद के रूप में भी कार्यरत रहीं.

उनके अलावा, कैलाशो देवी 1998 और 1999 में इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के टिकट पर कुरूक्षेत्र से, 1999 में महेंद्रगढ़ से भाजपा की सुधा यादव और 2009 में भिवानी-महेंद्रगढ़ से कांग्रेस की श्रुति चौधरी लोकसभा के लिए चुनी गईं.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रूड़की से रसायन विज्ञान में एमएससी और पीएचडी करने वाली यादव उस समय लेक्चरर थीं, जब उनके पति सीमा सुरक्षा बल में डिप्टी कमांडेंट थे और कारगिल युद्ध में मारे गए थे. वह वर्तमान में पार्टी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य हैं.

कैलाशो देवी भी एक कॉलेज शिक्षिका थीं, जिसके बाद INLD – जिसे तब हरियाणा लोक दल (राष्ट्रीय) के नाम से जाना जाता था – ने उन्हें 1998 में कुरुक्षेत्र संसदीय सीट से मैदान में उतारा था.

इस बीच, भाजपा की सुनीता दुग्गल, जिन्होंने 2019 में एक बड़े अंतर से अपनी सीट जीती थी, वह सिरसा से मौजूदा सांसद हैं. वह एक भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारी थी, लेकिन भाजपा के टिकट पर सिरसा से आम चुनाव लड़ने के लिए 2014 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी.

भाजपा के साथ सीट-बंटवारे की व्यवस्था के तहत सीट कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस के पास जाने के बाद, दुग्गल ने उस साल के अंत में भाजपा के टिकट पर रतिया सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन मामूली अंतर से हार गए.

इन छह महिलाओं में से कुमारी शैलजा और श्रुति चौधरी राजनीतिक राजवंशों से हैं. शैलजा के पिता, चौधरी दलबीर सिंह, चार बार (1967, 1971, 1980 और 1984) सिरसा से लोकसभा के लिए चुने गए, जबकि चौधरी के दादा बंसी लाल ने 1980 से 1989 तक निचले सदन में भिवानी का प्रतिनिधित्व किया. उनके पिता सुरेंद्र सिंह ने 1996 में यह सीट जीती थी और 1998 के आम चुनाव में इसे बरकरार रखा.

तंवर के अनुसार, हरियाणा के जिन जिलों में जाट प्रमुख समुदाय हैं, वहां कभी भी किसी महिला को लोकसभा के लिए नहीं चुना गया क्योंकि समुदाय के भीतर पुरुषों का वर्चस्व अधिक स्पष्ट है. वह कहती हैं, इसमें जाट सिख भी शामिल हैं,  जिससे पता चलता हैं कि पड़ोसी राज्य पंजाब से निचले सदन के लिए कई महिलाएं क्यों नहीं चुनी गई हैं.

तंवर ने दिप्रिंट को बताया, “अकेले लोकसभा के बारे में बात क्यों करें जहां लोगों के वोट मायने रखते हैं? यहां तक कि राज्यसभा में जहां पार्टी नेताओं को उम्मीदवार तय करने होते हैं, हरियाणा से आज तक केवल चार महिलाएं चुनी गई हैं: सुषमा स्वराज (1990-1996), विद्या बेनीवाल (1990-1996), सुमित्रा महाजन (2002-2008) और कुमारी शैलजा (2014-2020) में.”

वह कहती हैं कि हरियाणा में पितृसत्तात्मक मानसिकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब राज्य में महिलाएं पंचायतों के लिए चुनी जाती थीं, तब भी परिवार के पुरुष शायद ही कभी उन्हें अपनी शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति देते थे. महिला की शैक्षिक योग्यता कुछ भी हो, पुरुष निर्वाचित महिलाओं के स्थान पर पंचायत बैठकों में प्रॉक्सी के रूप में बैठते हैं.

राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए वह कहती हैं कि महिलाएं कई नीतिगत मुद्दों को बेहतर ढंग से समझती हैं. उदाहरण के तौर पर वह कहती हैं कि आजादी के 76 साल बाद भी कई राज्य सरकारें पाइप से पीने का पानी मुहैया नहीं करा पाई हैं, क्योंकि ”दूर-दराज से पानी भरकर लाना महिलाओं का काम माना जाता है.”

“अगर दूर-दराज के इलाकों से पानी लाना आदमी का काम होता, तो हर घर में पीने का पानी बहुत पहले ही उपलब्ध करा दिया गया होता. लेकिन पुरुषों से भरे हुए बहुमत वाली विधायिकाओं के लिए यह कभी भी प्राथमिकता नहीं थी.”

 

1928 में जन्मी चंद्रावती 1968 में राज्य विधानसभा के लिए चुनी जाने वाली पहली महिला भी थीं. हरियाणा के पंजाब से अलग होने के बाद, वह 1968 में कांग्रेस के टिकट पर राज्य विधानसभा के लिए चुनी गईं और फिर 1991 जनता दल के टिकट पर चुनी गईं.

उन्होंने 1964 से 1966 तक पंजाब सरकार में और 1972 से 1974 तक हरियाणा सरकार में मंत्री के रूप में भी कार्य किया. इसके अलावा, वह फरवरी 1990 से दिसंबर 1990 तक पुडुचेरी की उपराज्यपाल रहीं. कोविड-19 से जूझने के बाद 92 वर्ष की आयु में चंद्रावती का नवंबर 2020 में निधन हो गया.

इस बीच, शैलजा एकमात्र महिला हैं जो हरियाणा से चार बार लोकसभा के लिए चुनी गईं – 1991 और 1996 में सिरसा से, और 2004 और 2009 में अंबाला से. वह कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की सदस्य भी रहीं और 2014 से 2020 तक राज्यसभा सांसद के रूप में भी कार्यरत रहीं.

उनके अलावा, कैलाशो देवी 1998 और 1999 में इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के टिकट पर कुरूक्षेत्र से, 1999 में महेंद्रगढ़ से भाजपा की सुधा यादव और 2009 में भिवानी-महेंद्रगढ़ से कांग्रेस की श्रुति चौधरी लोकसभा के लिए चुनी गईं.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रूड़की से रसायन विज्ञान में एमएससी और पीएचडी करने वाली यादव उस समय लेक्चरर थीं, जब उनके पति सीमा सुरक्षा बल में डिप्टी कमांडेंट थे और कारगिल युद्ध में मारे गए थे. वह वर्तमान में पार्टी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य हैं.

कैलाशो देवी भी एक कॉलेज शिक्षिका थीं, जिसके बाद INLD – जिसे तब हरियाणा लोक दल (राष्ट्रीय) के नाम से जाना जाता था – ने उन्हें 1998 में कुरुक्षेत्र संसदीय सीट से मैदान में उतारा था.

इस बीच, भाजपा की सुनीता दुग्गल, जिन्होंने 2019 में एक बड़े अंतर से अपनी सीट जीती थी, वह सिरसा से मौजूदा सांसद हैं. वह एक भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारी थी, लेकिन भाजपा के टिकट पर सिरसा से आम चुनाव लड़ने के लिए 2014 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी.

भाजपा के साथ सीट-बंटवारे की व्यवस्था के तहत सीट कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस के पास जाने के बाद, दुग्गल ने उस साल के अंत में भाजपा के टिकट पर रतिया सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन मामूली अंतर से हार गए.

 छह महिलाओं में से कुमारी शैलजा और श्रुति चौधरी राजनीतिक परिवारों से -

शैलजा के पिता, चौधरी दलबीर सिंह, चार बार (1967, 1971, 1980 और 1984) सिरसा से लोकसभा के लिए चुने गए, जबकि चौधरी के दादा बंसी लाल ने 1980 से 1989 तक निचले सदन में भिवानी का प्रतिनिधित्व किया. उनके पिता सुरेंद्र सिंह ने 1996 में यह सीट जीती थी और 1998 के आम चुनाव में इसे बरकरार रखा.

  राजयसभा में हरियाणा से आज तक केवल चार महिलाएं चुनी गई हैं: सुषमा स्वराज (1990-1996), विद्या बेनीवाल (1990-1996), सुमित्रा महाजन (2002-2008) और कुमारी शैलजा (2014-2020) में.

 

 

 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!