Edited By Manisha rana, Updated: 22 Dec, 2024 09:31 AM
हरियाणा की राजनीति के दिग्गज चेहरों में शुमार इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला सुनहरी यादों के साथ हमें अलविदा कह गए हों, लेकिन उनके राजनीतिक सफर में महम कांड एक ऐसा अध्याय के रूप में जुड़ा, जिसने न सिर्फ उनके सफेद दामन पर दाग लगाया बल्कि उन्हें...
हरियाणा डेस्क (कृष्णा चौधरी) : हरियाणा की राजनीति के दिग्गज चेहरों में शुमार इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला सुनहरी यादों के साथ हमें अलविदा कह गए हों, लेकिन उनके राजनीतिक सफर में महम कांड एक ऐसा अध्याय के रूप में जुड़ा, जिसने न सिर्फ उनके सफेद दामन पर दाग लगाया बल्कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक गंवानी पड़ी। पिता की राजनीतिक विरासत को संभालते हुए पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले चौटाला को ये अंदाजा भी नहीं था कि उन्हें छह महीने से भी कम समय में इस्तीफा देना पड़ेगा। आखिर क्या है वो महम कांड, जिसके कारण चौटाला को एक बार नहीं बल्कि तीन बार मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी थी।
साल 1989 में देश में आम चुनाव संपन्न हुए थे। जनता दल ने राजीव गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस की ताकत सरकार को उखाड़ फेंका था। उस दौरान ताऊ देवीलाल 1987 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में प्रचंड जनादेश के साथ बनी अपनी सरकार को आराम से चला रहे थे, लेकिन दिल्ली में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद उनका मन केंद्र की राजनीति की ओर डोलने लगा और उनके कद के हिसाब से उन्हें उप प्रधानमंत्री भी बनाया गया। दिल्ली पहुंचे देवीलाल ने चंडीगढ़ की कुर्सी पर अपने सबसे बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला को बैठाया, जो उस दौरान राज्यसभा सांसद हुआ करते थे। 2 दिसंबर 1989 वो तारीख थी जब चौटाला परिवार की दूसरी पीढ़ी ने हरियाणा के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली थी, लेकिन ये राह आगे बहुत कठिन होने वाली थी, क्योंकि ओपी चौटाला को शपथ लेने के छह माह के अंदर विधानसभा का सदस्य चुना जाना जरूरी था। पिता देवीलाल ने अपने हिसाब से सुरक्षित मानी जा रही महम विधानसभा सीट को चुना। महम रोहतक में आता है, जहां देवीलाल ने 1989 के लोकसभा चुनाव में अच्छी जीत दर्ज की थी। हालांकि फिर जो यहां हुआ उसकी शायद ही उन्होंने कल्पना की होगी।
दरअसल महम की खाप पंचायतों ने ओमप्रकाश चौटाला की उम्मीदवारी का विरोध कर दिया। खापों ने कांग्रेस उम्मीदवार आनंद दांगी को अपना समर्थन दे दिया, जिसको लेकर माहौल गरमा गया। उधर चौटाला ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी। तनाव भरे माहौल में 27 फरवरी 1990 को वोटिंग हुई, जिसमें जमकर बूथ कैप्चरिंग और हिंसा हुई। लिहाजा चुनाव आयोग ने आठ बूथों पर दोबारा वोटिंग कराने के आदेश दिए, जब दोबारा वोटिंग हुई, तो फिर से हिंसा भड़क उठी। चुनाव आयोग ने फिर से चुनाव रद्द कर दिया। 27 मई को फिर से चुनाव की तारीखें तय की गईं, लेकिन वोटिंग से कुछ दिन पहले निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की हत्या हो गई।
अमीर सिंह और आनंद दांगी दोनों एक ही गांव मदीना के थे। बताया जाता है कि चौटाला ने दांगी का वोट काटने के लिए अमीर सिंह को चुनाव में खड़ा करवाया था। इसलिए हत्या का आरोप दांगी पर लगा और पुलिस जब उन्हें गिरफ्तार करने मदीना पहुंची तो भारी बवाल हो गया। पुलिस ने दांगी समर्थकों पर गोली चला दी, जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना की चर्चा उस वक्त पूरे देश में हुई थी और केंद्र की जनता दल सरकार को काफी असहज स्थिति का सामना करना पड़ा था। आखिरकार भारी दबाव के बीच ओपी चौटाला को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी। वो महज साढ़े पांच माह ही मुख्यमंत्री रह पाए। उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता ने ली।
महज पांच दिन के सीएम
महम की घटना के बाद ओपी चौटाला दड़बा हलके से जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता को हटाकर खुद सीएम बने। 12 जुलाई 1990 को ओपी चौटाला ने दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली, लेकिन उनके इस कदम से तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह सहमत नहीं थे। उन्होंने महम केस का हवाला देते हुए कहा कि जब तक इस मामले का निपटारा नहीं हो जाता, ओपी चौटाला को मुख्यमंत्री पद नहीं संभालना चाहिए। ऐसे में चौटाला को महज पांच दिन बाद ही सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह मास्टर हुकुम सिंह मुख्यमंत्री बने।
15 दिन बाद फिर चली गई कुर्सी
साल 1990 के आखिर में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई। कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर देश के नए प्रधानमंत्री बने और उन्होंने भी देवीलाल को उप प्रधानमंत्री बनाया। चंडीगढ़ में भी इस फेरबदल का असर दिखा। 22 मार्च 1991 को ओपी चौटाला ने मास्टर हुकुम सिंह को हटाकर तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन अब की बार उनकी पार्टी में ही घमासान मच गया। कुछ नाराज विधायकों ने पार्टी छोड़ दी, जिससे सरकार खतरे में आ गई और आखिरकार गिर गई। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। चौटाला इस बार भी महज 15 दिन ही सीएम की कुर्सी पर रह सके, तो इस तरह देखें तो महम कांड ने ओमप्रकाश चौटाला के सियासी जीवन में एक समय जबरदस्त उथल-पुथल मचा दी थी, जिससे बाहर आने में उन्हें तकरीबन 10 साल लग गए। जुलाई 1999 में हविपा-भाजपा गठबंधन की सरकार गिरने के बाद एकबार उनका सियासी भाग्य चमका और वो 1999 से लेकर साल 2005 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे।
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