Edited By Updated: 21 Nov, 2016 10:36 AM
सतलज-यमुना लिंक (एस.वाई.एल.) मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।
चंडीगढ़: सतलज-यमुना लिंक (एस.वाई.एल.) मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। आपको बता दे कि हरियाणा सरकार ने कुछ दिन पहले एस.वाई.एल. मामले के तहत पंजाब सरकार के खिलाफ याचिका दायर की थी। जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज आएगा।
गौरतलव है कि वर्ष 1955 में रावी-ब्यास नदी का पानी राजस्थान, पंजाब और जम्मू कश्मीर के बीच बांटना तय हुआ। 1966 में पंजाब से एक नया राज्य हरियाणा बनाया गया। 1976 में केंद्र ने पंजाब के 7.2 एमएएफ पानी में से 3.5 एमएएफ पानी हरियाणा को देने की अधिसूचना जारी की। पंजाब से हरियाणा में पानी लाने के लिए एस.वाई.एल. नहर बनाने का प्लान बनाया गया था। साल 1981 में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के एस.वाई.एल. नहर पर समझौता हुआ।
8 अप्रैल 1982 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पटियाला के कपूरी गांव में एस.वाई.एल. की खुदाई की शुरूआत की। नहर की कुल लंबाई 214 किलोमीटर है, जिसमें 122 किमी लंबाई पंजाब और हरियाणा में 82 किमी है। हिंसा की घटनाओं के चलते पंजाब में 1990 में नहर की खुदाई का काम रोक दिया गया था। 1996 में एस.वाई.एल. नहर का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को फटकार लगाई और 2002 व 2004 में नहर निर्माण कार्य पूरा करने के आदेश दिए थे। पंजाब विधानसभा में 2004 में पानी पर पुराने सभी समझौते रद्द करने का बिल पास हुआ। बिल के खिलाफ तत्कालीन केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।
15 मार्च 2016 को पंजाब विधानसभा ने नहर की जमीन को डीनोटिफिकेशन करने का बिल पास कर दिया। पंजाब सरकार ने हरियाणा सरकार को 191 करोड़ की रकम लौटा दी जो जमीन लेने के लिए हरियाणा ने दिए थे। पंजाब के कई हिस्सों में नहर बंद करने का काम शुरु हुआ। पंजाब के रुख पर सुप्रीम कोर्ट गई हरियाणा सरकार, रिसीवर नियुक्त करने की अपील की।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने एस.वाई.एल. पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए। 24 मार्च 2016 को पंजाब विधानसभा ने नहर न बनने देने का प्रस्ताव पारित किया। जिसमें दलील की कि पंजाब हरियाणा को पानी देने की स्थिति में नहीं है। हरियाणा के बड़ी आबादी पानी के लिए एस.वाई.एल. पर निर्भर है। अब सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब की टिप्पणी को असंवैधानिक मानकर हरियाणा के पक्ष को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब को जल समझौते तोड़ने का हक नहीं है।