Edited By Manisha rana, Updated: 16 Oct, 2023 01:32 PM

चुनाव 2024 से पहले चरखी दादरी में जेजेपी को बड़ा झटका मिला है। पूर्व मंत्री सतपाल सांगवान ने जेजेपी पार्टी का साथ छोड़ दिया है।
चरखी दादरी (पुनीत) : चुनाव 2024 से पहले चरखी दादरी में जेजेपी को बड़ा झटका मिला है। पूर्व मंत्री सतपाल सांगवान ने जेजेपी पार्टी का साथ छोड़ दिया है। वह आगामी 19 नवंबर को दादरी में कार्यकर्ता सम्मेलन करेंगे। बिना पार्टी व झंडे के होने वाले कार्यकर्ता सम्मेलन में आगामी राजनीति बारे रायशुमारी करेंगे। कयास लगाए जा रहे हैं कि सतपाल सांगवान अपने जेलर बेटे सुनील सांगवान या परिवार के किसी सदस्य को राजनीति में उतारने का फैसला ले सकते हैं। इतना जरूर है कि वह सम्मेलन के दौरान बड़ा फैसला लेंगे।
1996 में हविपा की टिकट पर पहली बार विधायक बने थे सतपाल सांगवान
बता दें कि पूर्व मंत्री सतपाल सांगवान 1996 में हविपा की टिकट पर पहली बार विधायक बने थे और बाद में कई चुनाव लड़े और 2009 में हजकां की टिकट पर दोबारा विधायक बने। इसी दौरान हजकां का कांग्रेस में विलय होने पर भूपेंद्र हुड्डा सरकार में सहकारिता मंत्री बने। 2014 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर हार गए और 2019 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट कटने पर जजपा से विधानसभा का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में सतपाल सांगवान दूसरे स्थान पर रहे थे। पिछले एक साल के दौरान सांगवान सार्वजनिक मंचों पर भी किसी भी पार्टी में नहीं होने का ऐलान कर चुके हैं।
सांगवान ने कहा कि मौजूदा गठबंधन सरकार से जनता पूरी तरह से परेशान हो चुकी है लेकिन जनता की सुनने वाला कोई नहीं है। जनता की तकलीफ को देखते हुए व लोगों की मांग पर उन्हाेंने आगामी चुनाव लड़ने का मन बनाया है। अगामी 19 नवंबर को चरखी दादरी में कार्यकर्ता सम्मेलन में कार्यकर्ताओं की राय पर ही वह अपने या किसी दूसरे बारे आगामी फैसला लेंगे। इस दौरान उन्होंने सांसद धर्मबीर व कांग्रेस विधायक किरण चौधरी पर गत विधानसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी के प्रत्याशियों को हराने के आराेप भी लगाए। साथ ही कहा कि बीते विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम ने स्वयं चरखी दादरी जिले में भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में रैली के दौरान पाकिस्तान को पानी देने की बात कही थी, लेकिन आज तक उस पर गौर नहीं किया गया। पुरानी कांग्रेस पार्टी में वापसी पर सांगवान ने कहा कि उनकी भविष्य की राजनीतिक का कार्यकर्ता ही फैसला लेंगे। इतना जरूर है कि बिना झंडे व बिना किसी पार्टी के होने वाले कार्यकर्ता सम्मेलन में उमड़ने वाली भीड़ विरोधियों पर भारी पड़ेगी।
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