Edited By Shivam, Updated: 15 Oct, 2020 11:09 PM
बरोदा उपचुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने योगेश्वर दत्त पर दोबारा से दांव खेला है। जहां विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बरोदा विधानसभा की टिकट योगेश्वर दत्त को दी थी, लेकिन यहां योगेश्वर को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद भाजपा ने बरोदा उपचुनाव...
नई दिल्ली /गोहाना (कमल/सुनील ): बरोदा उपचुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने योगेश्वर दत्त पर दोबारा से दांव खेला है। जहां विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बरोदा विधानसभा की टिकट योगेश्वर दत्त को दी थी, लेकिन यहां योगेश्वर को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद भाजपा ने बरोदा उपचुनाव के लिए योगेश्वर पर ही भरोसा किया और उन्हें टिकट दे दिया है।
बता दें कि विधानसभा चुनावों में बरोदा विधानसभा सीट पर भाजपा के उम्मीदवार रहे योगेश्वर दत्त दूसरे नम्बर पर रहे, इन्हें 37,726 मत मिले थे। वहीं स्वर्गीय श्रीकृष्ण हुड्डा कांग्रेस की टिकट पर यहां से विधायक बने थे, जिन्हें 42566 वोट हासिल हुए थे। जजपा के उम्मीदवार रहे भूपेन्द्र मलिक ने 32480 वोट हासिल किए थे। बरोदा विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने 2009 से लगातार तीसरी जीत हासिल की थी। इससे पहले यह सीट आरक्षित थी, तब यहां लोकदल का काफी दबदबा रहा था।
योगेश्वर दत्त का परिचय
योगेश्वर दत्त जाने माने फ्रीस्टाइल कुश्तीबाज हैं। 8 साल की उम्र से कुश्ती का खेल खेल रहे योगेश्वर विश्व के सबसे अच्छे कुश्तिबाजों में से एक हैं, जिन्होंने अपने देश भारत का प्रतिनिधित्व पूरे विश्व में किया है। योगेश्वर ने "कॉमनवेल्थ गेम्स" 2003 में स्वर्ण पदक जीत कर, दुनिया में अपनी प्रतिभा साबित की। इस जबरदस्त उपलब्धि के बाद इन्होंने अपने देश के लिए स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक को मिला कर कई सारे अवार्ड जीते। 2012 में समर ओलंपिक में 60किग्रा वर्ग में कांस्य पदक जीता, जिससे इन्हें सन 2013 में भारत सरकार द्वारा भारत के चौथे "सर्वोच्च नागरिक सम्मान पदम्श्री" के साथ पुरस्कृत किया गया। 2014 में हुए ग्लासगो "कॉमनवेल्थ गेम्स" में स्वर्ण पदक जीता, इसी के चलते सन 2016 में "रियो ओलंपिक" में भी योगेश्वर क्वालीफाई हुए, किन्तु वे इसमें कुछ खास प्रदर्शन न दिखा सके।
योगेश्वर दत्त का जन्म 2 नवम्बर सन 1982 को हरियाणा के सोनीपत जिले के भैंसवाल कलां गांव में हुआ। योगेश्वर दत्त शिक्षित परिवार से सम्बन्ध रखते हैं, इनके पिता राममेहर, माता सुशीला देवी और इनके दादाजी पेशे से शिक्षक हैं। परिवार चाहता था कि योगेश्वर उनके नक्शे कदम पर चलें, लेकिन योगेश्वर को बचपन से ही कुश्ती में रूचि थी। जब वे छोटे थे तब वे अपने गांव के एक बलराज नाम के पहलवान के कारनामे देख कर बहुत प्रेरित हुए और तभी से उन्होंने कुश्ती को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया।
बरोदा का इतिहास
2 लाख 70 हजार की जनसंख्या वाले बरोदा हलके में कुल 67 पंचायत हैं। 1967 में हरियाणा गठन के बाद यहां पहले चुनाव हुआ था। इसके बाद 1967 से 2009 तक बरोदा सीट आरक्षित रही। 2009 में पहली बार अनारक्षित हुई बरोदा सीट पर लगातार कांग्रेस के उम्मीदवार श्रीकृष्ण हुड्डा ने हैट्रिक जीत हासिल की थी, इससे पहले ये हलका इनेलो का गढ़ माना जाता था।
76 साल के श्रीकृष्ण हुड्डा मूलत: किलोई विधानसभा क्षेत्र के खिड़वाली गांव के थे। वह 1987 में पहली बार इसी किलोई हलके से विधायक बने। किलोई से ही वह दूसरी बार 1996 और तीसरी बार 2005 में विधायक निर्वाचित हुए। 2005 में जब भूपेन्द्र सिंह हुड्डा पहली बार सीएम बने, तब श्रीकृष्ण हुड्डा ने किलोई सीट से इस्तीफा दे दिया और उस के बाद इस सीट से भूपेन्द्र सिंह हुड्डा चुनाव लड़ कर विधानसभा में पहुंचे थे। भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने किलोई सीट के त्याग का श्रीकृष्ण हुड्डा को शानदार राजनीतिक इनाम दिया। अपना अटूट गढ़ माने जाने वाले गोहाना के बरोदा हलके से भूपेन्द्र ने लगातार 3 बार श्रीकृष्ण हुड्डा को विधानसभा में प्रवेश दिलवाया।
जाट लैंड है बरोदा: बरोदा विधानसभा जाट लैंड मानी जाती है। इस विधानसभा में कुल 1 लाख 78 हजार 250 कुल मतदाता हैं, जिनमें लगभग जाट 90 से 95 हजार, ब्राह्मण 20 हजार, ओबीसी 30 हजार, एससी/एसटी 18 हजार व अन्य 10 हजार मतदाता शामिल हैं।