हुड्डा के बयान से विधानसभा अध्यक्ष खफा, बोले- सुर्खियां बटोरने के लिए नकारात्मक बयानबाजी ठीक नहीं

Edited By vinod kumar, Updated: 08 Nov, 2020 09:24 PM

assembly speaker upset with hooda s statement

हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा के उस बयान की निंदा की है जिसमें उन्होंने सदन में लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया है। गुप्ता ने हुड्डा की ओर से मीडिया में दिए गए बयान को गैर जिम्मेदाराना बताते...

चंडीगढ़ (धरणी): हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा के उस बयान की निंदा की है जिसमें उन्होंने सदन में लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया है। गुप्ता ने हुड्डा की ओर से मीडिया में दिए गए बयान को गैर जिम्मेदाराना बताते हुए कहा कि सदन की कार्यवाही का संचालन पूरी तरह से नियमावली के तहत किया गया है, इसके बावजूद नेता प्रतिपक्ष ने इस विषय में अपना मत नकारात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है।

उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर दल और जनप्रतिनिधि को सदन में अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है, लेकिन इसके लिए नियमावली का पालन आवश्यक है। यह नियम सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों पर समान रूप से लागू होते हैं। संसद की ओर से पारित कृषि संबंधी तीन कानूनों के खिलाफ अगर कांग्रेस को हरियाणा विधान सभा में प्रस्ताव लेकर आना था तो इसके लिए इन विधायी नियमों का पालन किया जाना आवश्यक था, लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। 

गुप्ता ने कहा कि कांग्रेस के अनेक अनुभवी नेता इस सदन के सदस्य हैं, इसलिए उन्हें इस नियम की ठीक से जानकारी होनी चाहिए कि कोई भी गैर सरकारी संकल्प या प्राइवेट मेंबर बिल सत्र शुरू होने से 15 दिन पहले ही पेश किया जा सकता है। अगर कांग्रेस केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ गैर सरकारी संकल्प या प्राइवेट मेंबर बिल लाना चाहती थी तो उसे निश्चित समय अवधि में लाना चाहिए था। 

इसके अलावा कांग्रेस जो प्रस्ताव लाई उसकी भाषा संसदीय आचरण के अनुरूप नहीं थी। विधायी कसौटियों पर खरा नहीं उतरने के कारण उस पर एलआर की सहमति भी नहीं मिल सकी। गुप्ता ने कहा कि कांग्रेस की ओर से लापरवाही का आलम यह था कि वे कृषि कानूनों के खिलाफ जो प्रस्ताव लेकर आ रहे थे, उसमें ‘अधिनियम’ की बजाय ‘अध्यादेश’ का जिक्र था। जबकि देश की संसद इन अध्यादेशों को पास कर अधिनियम के रूप में परिणित कर चुकी थी।

सदन की कार्यवाही के दौरान कांग्रेस ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल की ओर से पेश किए जा रहे कृषि कानूनों पर धन्यवाद प्रस्ताव के विरोध में प्रस्ताव पेश करने की बात कही। जब कांग्रेस नेताओं को कार्य संचालन नियमावली बताई गई तो उन्होंने मुख्यमंत्री के धन्यवाद प्रस्ताव पर संशोधन लाने की बात कही। यह संशोधन प्रस्ताव न तो तकनीकी रूप से सही था और न इसकी भाषा ऐसी थी कि जिसके आधार पर इसे संशोधन प्रस्ताव माना जा सके। 

कांग्रेस की ओर से संशोधन प्रस्ताव के नाम पर जो लिखित सूचना दी गई थी, उसमें कहीं भी ‘संशोधन’ शब्द का जिक्र तक नहीं था। इतना ही नहीं उसमें यह भी स्पष्ट नहीं था कि धन्यवाद प्रस्ताव के किस हिस्से में संशोधन करना चाहते हैं। विधान सभा अध्यक्ष ने कहा कि शुक्रवार की कार्य सूची में मुख्यमंत्री के धन्यवाद प्रस्ताव का स्पष्ट रूप से उल्लेख था, इसके बावजूद कांग्रेस संशोधन प्रस्ताव समय पर नहीं लेकर आई।

गुप्ता ने कहा कि विधानसभा के कार्य संचालन नियमावली के नियम 184 में स्पष्ट है कि सरकारी प्रस्ताव पर संशोधन प्रस्ताव पेश होने की स्थिति में उस पर सदन में चर्चा की जाती है। उसके बाद ही उस पर वोटिंग का प्रावधान है। कांग्रेस नेता यह जानते हुए भी न तो संशोधन समय पर लेकर आए और ही उसकी भाषा ऐसी थी कि उसे सदन की कार्यवाही का हिस्सा बना लिया जाए। कांग्रेस का ऐसा रवैया उसके गैर जिम्मेदाराना व्यवहार को स्पष्ट करता है।

हरियाणा के किसान वर्ग का देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। इसलिए सदन में इतने गंभीर विषय पर चर्चा आवश्यक थी। कांग्रेस ने इस पर चर्चा का बहिष्कार कर न सिर्फ सदन की मर्यादाओं का उल्लंघन किया है बल्कि किसान हितों पर भी कुठाराघात किया है। बार-बार आग्रह के बावजूद कांग्रेस सदस्यों ने चर्चा में हिस्सा नहीं लिया और वे वेल में आकर नारेबाजी करते रहे। यह स्पष्ट रूप से देखा जा रहा था कि ऐसा आचरण सिर्फ मीडिया की सुर्खियां बटोरने के लिए किया और कांग्रेस पार्टी कृषि कानूनों के प्रति गंभीर नहीं थी।

उन्होंने कहा कि सदन जनता के हितों को उठाने का सबसे बेहतर मंच है। जनता बड़ी उम्मीदों के साथ अपना जनप्रतिनिधि चुनती है। इसलिए उनका दायित्व बनता है कि वे अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर जनहित के विषयों पर गंभीरतापूर्वक चर्चा करे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेताओं ने पहले सदन में मर्यादा के विपरीत आचरण किया गया उसके बाद मीडिया में नकारात्मक बयानबाजी करना उचित नहीं। इतने महत्वपूर्ण विषय पर वरिष्ठ नेताओं से गंभीर चर्चा की अपेक्षा थी, लेकिन पता नहीं किन कारणों से चर्चा में भाग नहीं लिया।

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