प्रवासियों को घर जाने में अब होगी आसानी, भारतीय रेलवे ने खत्म किया यह बड़ा नियम

Edited By Shivam, Updated: 19 May, 2020 07:54 PM

now easier for migrants to go home indian railways abolished this rule

लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासियों को घर पहुंचने में अब आसानी होगी। उनके लिए अब और अधिक ट्रेनें चलाई जा सकेंगी, जिससे वे जल्द ही अपने घर पहुंच जाएं। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को चलाए जाने के लिए भारतीय रेलवे ने एक ऐसे बड़े नियम को खत्म...

चंडीगढ़ (धरणी): लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासियों को घर पहुंचने में अब आसानी होगी। उनके लिए अब और अधिक ट्रेनें चलाई जा सकेंगी, जिससे वे जल्द ही अपने घर पहुंच जाएं। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को चलाए जाने के लिए भारतीय रेलवे ने एक ऐसे बड़े नियम को खत्म कर दिया है, जिसकी वजह से दो राज्यों के बीच आपसी तालमेल के बाद ही श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई जा सकती थी। दरअसल, भारतीय रेलवे ने नए आदेश जारी कर कहा कि प्रवासी जिस राज्य में जाना चाहते हैं वहां की सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है, इससे अब श्रमिक ट्रेनों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो सकती है।

भारत रेलवे ने अब साफ कर दिया है कि लॉकडाउन के कारण फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने के लिए डेस्टिनेशन स्टेट से अनुमति लेने की कोई जरूरत नहीं है। गृह मंत्रालय ने प्रवासी मजदूरों के उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने के वास्ते रेलवे के लिए संशोधित मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है। इसके बाद अब गंतव्य राज्यों से अनुमति लेने की जरूरत नहीं रह गई है।

रेलवे के प्रवक्ता राजेश बाजपेई ने कहा, श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को चलाने के लिए टर्मिनेटिंग स्टेट की अनुमति जरूरी नहीं है। नए एसओपी के बाद स्थिति यह है कि जहां ट्रेन का सफर खत्म होगा, उस राज्य की अनुमति लेना अनिवार्य नहीं है। संशोधित एसओपी के मुताबिक गंतव्य और रुकने वाले स्टेशन समेत ट्रेनों की समय-सारिणी पर अंतिम फैसला रेल मंत्रालय करेगा और वह इसकी जानकारी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को देगा ताकि ऐसे फंसे हुए मजदूरों को भेजने या लाने के लिए जरूरी प्रबंध किए जा सकें।

इससे पहले रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि पश्चिम बंगाल, झारखंड और छत्तीसगढ़ श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को मंजूरी देने में कोताही बरत रहे हैं। उनके इस बयान पर काफी होहल्ला हुआ था क्योंकि ये तीनों गैर-भाजपा शासित राज्य हैं। रेलवे प्रवासी मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए 1 मई से 1565 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन कर चुका है। इन ट्रेनों से 20 लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाया गया है।

गोयल ने कुछ दिन पहले ट्वीट किया था, ‘रेलवे ने प्रवासी मजदूरों के लिए 1200 ट्रेनें उपलब्ध कराई हैं लेकिन पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे कई राज्यों की सरकारें मजदूरों को घर भेजने के लिए अनुमति नहीं दे रही हैं। पश्चिम बंगाल के गृह मंत्री ने पत्र लिखने के बाद भी 9 मई तक सिर्फ दो गाडिय़ां लीं। हमें बताया गया कि 8 गाडिय़ों की अनुमति 8 मई को दी गई है लेकिन आज तक भी पूरी 8 गाडिय़ां नहीं लीं।’

शाह-ममता में भी टकराव
इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र लिखकर कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार प्रवासी मजदूरों को लेकर जाने वाली ट्रेनों को राज्य पहुंचने की अनुमति नहीं दे रही है जिससे श्रमिकों के लिए और दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं। शाह के इस पत्र पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ से उनके भतीजे और तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक बनर्जी ने शाह पर झूठ बोलने का आरोप लगाया था। यही नहीं उन्होंने शाह से माफी मांगने तक की बात कर दी।

इस बीच केंद्र ने राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से प्रवासी मजदूरों को लाने-ले जाने के लिए रेलवे के साथ करीबी समन्वय कर और विशेष रेलगाडिय़ां चलाने को कहा है। साथ ही कहा है कि महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों का खास ख्याल रखा जाए। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने सभी राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रशासनों को भेजे पत्र में कहा कि फंसे हुए कर्मियों के घर लौटने की सबसे बड़ी वजह कोविड-19 का खतरा और आजीविका गंवाने की आशंका है।

उन्होंने पत्र में कहा, ‘प्रवासी मजदूरों की चिंताओं को दूर करने के क्रम में, अगर निम्न कदमों को लागू किया जाता है तो मैं आभारी रहूंगा।’ गृह सचिव ने सुझाव दिया कि राज्यों एवं रेल मंत्रालय के बीच सक्रिय समन्वय के माध्यम से और विशेष रेलगाडिय़ों का प्रबंध किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि साफ-सफाई, भोजन एवं स्वास्थ्य की जरूरत को ध्यान में रखते हुए ठहरने की जगहों की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। भल्ला ने कहा कि बसों एवं ट्रेनों के प्रस्थान के बारे में और अधिक स्पष्टता होनी चाहिए क्योंकि स्पष्टता के अभाव में और अफवाहों के चलते श्रमिकों में बेचैनी देखी गई है।

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