LIVE UPDATE: थाई में गोली लगने के बावजूद मेजर आशीष ने बचाई कमांडेंट की जान, ज्यादा खून बहने से हुए शहीद

Edited By Saurabh Pal, Updated: 14 Sep, 2023 03:29 PM

martyred in encounter with two son terrorists from haryana

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में बुधवार को आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर में देश ने सेना के तीन जंबाज अफसर और एक जवान खो दिया। जिसमें हरियाणा के भी दो अफसर कर्नल मनप्रीत सिंह और  वाले मेजर आशीष धौंचक शामिल हैं। आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद होने वाले 36...

पानीपत(सचिन शर्मा): जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में बुधवार को आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर में देश ने सेना के तीन जंबाज अफसर और एक जवान खो दिया। जिसमें हरियाणा के भी दो अफसर कर्नल मनप्रीत सिंह और  वाले मेजर आशीष धौंचक शामिल हैं। आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद होने वाले 36 वर्षीय मेजर आशीष धौंचक पानीपत के रहने वाले थे। वहीं 41 वर्षीय कर्नल मनप्रीत सिंह मूल रूप से मोहाली जिले के गांव भड़ोंजिया के रहने वाले थे। उनका परिवार पंचकूला में रहता है।

कर्नल मनप्रीत सिंह के परिवार को भारतीय सेना की तरफ से उनके शहीद होने की सूचना दे दी गई है। शहीद मनप्रीत सिंह का पार्थिव शरीर आज शाम 4:00 बजे तक उनके पैतृक गांव पहुंच सकता है। यदि किसी प्रकार की देरी नहीं हुई तो उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार को किया जाएगा।

वहीं मेजर आशीष का पार्थिव शरीर गुरूवार दोपहर पानीपत में उनके पैतृक गांव बिंझौल में लाया जाएगा। मेजर आशीष की शहादत का पता चलते ही पूरे हरियाणा में शोक पसरा हुआ है। मेजर आशीष को इसी साल 15 अगस्त को उनकी बहादुरी के लिए सेना का मेडल दिया गया था। 15 अगस्त, 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें ये मेडल दिया था। मेजर आशीष भी 19 राष्ट्रीय राइफल्स के सिख लाइट इन्फैंट्री में तैनात थे।

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मां ने कहा रोऊंगी नहीं, मैने एक शेर बेेटे को जन्म दिया था

वहीं शहीद की मां कमला ने कहा मैंने एक शेर बेटे को जन्म दिया था। मेरा बेटा देश के लिए शहीद हो गया। मैं अपने बेटे को सैल्यूट करूंगी। बेटे का स्वागत करूंगी। उसे अपनी झोली में लूंगी, मैं रोऊंगी नहीं। हम सातों को रोता हुआ छोड़कर चला गया।

 

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नए घर में परिवार को शिफ्ट करने घर आने वाले थे मेजर

घर के अंदर से मेजर के शहीद होने के बाद मातम पसरा हुआ है। इस करुण माहौल में रुदन के बीच शहीद मेजर आशीष के चाचा दिलावर सिंह ने बताया की कुछ दिन पहले ही उनकी बातचीत हुई थी। घर के बारे में हाल-चाल जाना सब के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि अक्टूबर महीने में आशीष को घर आना था, क्योंकि जिस किराए के मकान में रह रहे हैं, उसे शिफ्ट करके अपने नए मकान में जाना था। दिलावर सिंह ने कहा कि हमें आशीष के बारे में फोन से जानकारी मिली फिर उनका एक बेटा लेफ्टिनेंट है। उन्होंने आशीष के बारे में सारी जानकारी दी। आशीष के चाचा ने बताया करीब डेढ़ महीना पहले आशीष घर पर भी आए थे।

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मेजर आशीष को थाई में लगी थी गोली, जान की परवाह किए कमांडेंट को किया सुरक्षित

रिटायर्ड कैप्टन धर्मवीर देशवाल ने बताया कि उनको कल 3:00 बजे ही इसकी सूचना मिल गई थी। जिसके तुरंत बाद वह परिवार के पास मिलने पहुंचे, लेकिन परिवार को इस बारे में कोई सूचना नहीं थी। हालांकि परिवार को शक जरूर था। इसी वजह से उन्होंने भी अपना मुंह नहीं खोला और इंतजार किया। देशवाल ने कि अनंतनाग बेहद ज्यादा खतरनाक इलाका है। वहां तैनात जवान ही बता सकता है कि वहां के हालात कितने घातक हैं। रिटायर्ड कैप्टन ने मुठभेड़ की घटना का पूरा खुलासा करते हुए कहा कि आशीष को थाई में गोली लगी थी। साथ में सीईओ भी घायल थे। मेजर आशीष ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पहले अपने कमांडेंट ऑफिसर को सुरक्षित जगह पर पहुंचने का प्रयास किया और घाव ज्यादा होने की वजह से वहीं अपने प्राण त्याग दिए।

रिटायर्ड कमांडेंट ने जानकारी देते हुए बताया कि आशीष के पिता बीमार रहते हैं।  उनका घर का इनॉग्रेशन होना था, लेकिन आशीष ने वहां के हालातों को देखते हुए आने से मना कर दिया था।  आने वाली 23 अक्टूबर को अपने जन्मदिन के मौके पर घर आने की बात कही थी।

रिटायर्ड कमांडेंट ने सीमाओं पर आतंकवादियों द्वारा इन हरकतों को लेकर कहा यह पॉलिटिकल मुद्दा है। उन्होंने कहा जवान को बड़ा सोच समझकर गोली चलाने का फैसला लेना पड़ता है। क्योंकि उनको गोली चलाने की भी छूट रही है। उन्हें कई आदेश मानने पड़ते हैं। इस तरह की पाबंदियां नहीं थी और हमारे जवान 35- 35 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार देते थे, लेकिन अब कई चीजें आ चुकी हैं। जिसमें मानवाधिकार जैसे लोग भी बीच में आ जाते हैं। सरकारी कहती तो हैं कि हमने जवानों के हाथ खुले छोड़ रखे हैं। लेकिन यह सिर्फ कहने की बातें हैं जवानों का हाथ खुला नहीं है।

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कब तक तिरंगे में लिपट कर आते रहेंगे जवान 

वहीं शहीद आशीष के जीजा सुरेश ने कहा कि कब तक यूं ही तिरंगे में लिपटकर आते रहेंगे हमारे देश के जवान। सरकार को इसके प्रति कोई ठोस कदम उठाने चाहिए, ताकि हर दिन जवानों की शहादत ना हो। सुरेश ने बताया कि कुछ दिन बाद ही आशीष को छुट्टी लेकर घर आना था और पानीपत में बनाए गए नए मकान में शिफ्ट होने था। 23 अक्टूबर को उसका जन्मदिन भी था सोच रहे थे कि जन्मदिन पर जश्न भी हो जाएगा और नए मकान में भी शिफ्ट हो जाएंगे। लेकिन उनको क्या पता था कि उनके जश्न से पहले घर में मातम छा जाएगा।

बता दें कि आशीष 2012 में सेना में भर्ती हुए थे। उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है। आशीष का लक्ष्य सेना में जाकर देख की सेवा करना था। उन्होंने वो कर दिखाया। आशीष के चाचा एयर फोर्स में थे और उनको देखकर आशीष कहते थे कि वह भी देश की सेवा करना चाहता है।   

 

 

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