देश की आजादी में मंगल खान ने निभाई अहम भूमिका, आजाद हिंद फौज के थे सिपाही

Edited By Shivam, Updated: 14 Aug, 2019 05:48 PM

mangal khan played an important role in the independence of the country

आज हमारे देश को आजाद हुए 72 साल हो चुके हैं। इस आजादी के दिन 15 अगस्त को दिन हम सारी जिंदगी याद रखेंगे और आने वाली पीढिय़ों को भी शहीद भगत सिंह, सुखदेव, सुभाष चंद्र बोस जैसे महान क्रांतिकारियों की गाथाएं सुनाएंगे। इन्हीं क्रांतिकारियों में कुछ ऐसे...

नूंंह (एके बघेल): आज हमारे देश को आजाद हुए 72 साल हो चुके हैं। इस आजादी के दिन 15 अगस्त को दिन हम सारी जिंदगी याद रखेंगे और आने वाली पीढिय़ों को भी शहीद भगत सिंह, सुखदेव, सुभाष चंद्र बोस जैसे महान क्रांतिकारियों की गाथाएं सुनाएंगे। इन्हीं क्रांतिकारियों में कुछ ऐसे हैं, जिनके बारे में आपको बहुत कम ही पढऩे को मिला होगा। इनमें से एक मेवात के मंगल खान।

ब्रिटिश सेना से बगावत कर आजाद हिंद फौज में हुए शामिल
नूंह जिले के खेडला गांव से संबंध रखने वाले मंगल खान ने 1947 की आजादी में एक विशेष भूमिका निभाई थी। मंगल खान भारत मां का एक सच्चा सपूत था। मंगल खान मेवाती का जन्म 1-10-1898 को गांव के एक साधारण व गरीब से किसान नवाज खां के घर में हुआ। 1924 में वे ब्रिटिश सेना में भर्ती हुए। बाद में बाबू सुभाष चन्द्र बोस के आह्वान पर ब्रिटिश सेना से बागी हो कर आजाद हिन्द फौज में चले गए। 

सुभाष चंद्र बोस की सीक्रेट सर्विस के इंचार्ज रहे
आजाद हिन्द फौज में वे शाहनवाज बटालियन में सैकिंड लेफ्टिनेंट बने। जनरल शाह नवाज खान के नेतृत्व में उन्होनें रंगून, पोपाहिल, मेकटौला, नागा-साकी , इंडोग्राम, ब्रहमइंफाल जैसे असंख्य मोर्चों पर अपनी बहादुरी के जौहर दिखाए। अदम्य साहस के बलबूते पर वे बाबू सुभाष चन्द्र बोस की निजि सीक्रेट सर्विस के इंचार्ज बनाए गए। 

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जगरगच्छा जेल में झेली यातनाएं
लंबी लड़ाई के बाद बाबू जी (सुभाष चंद्र बोस) के आदेश पर समूची आई0 एन0 ए0 ने आत्म समर्पण कर दिया। 36 हजार की फौज में से 56 फौजियों की शनाख्त कर छांट लिया गया , जिन्हें कलकत्ता के निकट जगरगच्छा (अब बंगलादेश में) जेल में डाल दिया गया। जगरगच्छा जेल की यातनाओं के बाद फिर छटनी की गई, तो 16 जांबाजों को दिल्ली लाकर, लाल किला में कैद कर दिया गया। जिनमें मुख्य तौर पर जनरल सहगल, जनरल शाहनवाज खान, कर्नल ढिल्लों, सैकिंड लेफ्टिनेंट मंगल खान आदि शामिल थे। 

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जवाहर लाल नेहरू ने लड़ा मुकदमा
इन 16 सपूतों पर फिरंगियों ने विभिन्न धाराओं मे मुकदमें दर्ज किए। जघन्य अपराधों में कथित रूप से लिप्त इन खूंखार 'अपराधियों' के केसों की सुनवाई के लिए लाल किला में ही ग्यारह जजों की बैंच (अदालत) स्थापित की गई। लगभग तीन साल चले मुकदमों में विभिन्न सजाएं सुनाई गईं। अंत में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 'लाल किला ट्रायल' में उक्त कथित अभियुक्तों की पैरवी की और ये वतन के सिपाही, भारत मां की स्वतंत्रता के साथ आजाद हो गए। जिसके बाद मंगल खान ने जिंदगी उसी खुद्दारी और सादगी से जीते हुए 19 सितंबर 1990 को इस दुनिया ए फानी से कूच कर गए।

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