Weather News: हरियाणा में रुठा-रुठा सा रहा है मौसम का मिजाज, अब तक 33 प्रतिशत कम हुई है बरसात

Edited By Isha, Updated: 18 Aug, 2024 09:12 PM

the weather in haryana has been upset

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक डा. कुलदीप सिंह ढींडसा का कहना है कि हरियाणा में पिछले काफी समय से मौसम का मिजाज रुठा-रुठा सा बना हुआ है। इस बार भी मानसून सीजन में औसत से 33 प्रतिशत बरसात कम हुई है। डा. ढींडसा ने बताया कि

चंडीगढ़( संजय अरोड़ा): अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक डा. कुलदीप सिंह ढींडसा का कहना है कि हरियाणा में पिछले काफी समय से मौसम का मिजाज रुठा-रुठा सा बना हुआ है। इस बार भी मानसून सीजन में औसत से 33 प्रतिशत बरसात कम हुई है। डा. ढींडसा ने बताया कि भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में मानसून सीजन में हर साल औसतन 30 जून से लेकर सितंबर माह तक 554.7 मिलीमीटर बरसात होनी चाहिए। इस बार 1 जून से लेकर 17 अगस्त तक 210 मिलीमीटर ही बरसात हुई है।

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डा. ढींडसा ने बताया कि अब तक के मानसून के सीजन में सिरसा में 164 मिलीमीटर, फतेहाबाद में 180 मिलीमीटर, हिसार में 146 मिलीमीटर, जींद में 170 मिलीमीटर, भिवानी में 180 मिलीमीटर, चरखी दादरी में 247 मिलीमीटर, झज्जर में 329 मिलीमीटर, रेवाड़ी में 317 मिलीमीटर, महेंद्रगढ़ में 432 मिलीमीटर, गुरुग्राम में 420 मिलीमीटर, झज्जर में 339 मिलीमीटर, सोनीपत में 209 मिलीमीटर, पानीपत में 258 मिलीमीटर, करनाल में 162 मिलीमीटर, कैथल में 114 मिलीमीटर, कुरुक्षेत्र में 218 मिलीमीटर, पंचकूला में 388 मिलीमीटर, अंबाला में 417 मिलीमीटर, यमुनानगर में 372 मिलीमीटर, फरीदाबाद में 287 मिलीमीटर, पलवल में 178 मिलीमीटर बरसात हुई है।


डा. ढीडसा ने मौसम विभाग के आंकड़ों का जिक्र करते हुए कहा कि 2012 से लेकर 2023 तक लगातार 11 वर्षों से हरियाणा देशभर में सबसे कम बरसात का रिकॉर्ड बना रहा है। पिछले 11 साल से राज्य में बरसात का आंकड़ा 452 मिलीमीटर को पार नहीं कर पाया है। यह बात अलग है कि पिछले साल मानसून में करीब एक पखवाड़े तक बरसात ने तबाही मचाई थी। राज्य के एक दर्जन जिले बाढ़ से प्रभावित हुए थे। बावजूद इसके कुल मिलाकर पूरे साल औसत से कम ही बरसात हुई थी। पिछले साल 419 मिलीमीटर बरसात हुई थी।


एक दशक से औसत से कम हो रही है बरसात
डा. कुलदीप ढींडसा के अनुसार भारतीय मौसम विभाग के अनुसार हरियाणा में सर्द मौसम में 32.4, प्री-मानसून सीजन में 33.6, मानसून सीजन में 459.9 एवं पोस्ट मानसून सीजन में 28.9 मिलीमीटर बरसात होनी चाहिए, मगर ऐसा हो नहीं रहा है। पिछले करीब एक दशक से बदरा रूठे हुए हैं।

डा. ढींडसा ने बताया कि ङ्क्षचताजनक पहलू यह देखिए कि पिछले करीब 11 वर्षों से हरियाणा ही एक ऐसा राज्य है, जहां देशभर में सबसे कम बरसात का आंकड़ा दर्ज किया जा रहा है। हर साल हरियाणा में 554.7 मिलीमीटर बरसात होनी चाहिए, मगर 2012 के बाद से यह आंकड़ा 460 मिलीमीटर को भी पार नहीं कर पा रहा है। 2012 में हरियाणा में महज 307 मिलीमीटर बरसात हुई यानी औसत बरसात से 45 फीसदी कम।

इसी तरह से 2013 में 452 मिलीमीटर बरसात हुई। 2013 में देश में अंडमान निकोबार में सबसे अधिक 3757 मिलीमीटर बरसात हुई थी जबकि सबसे कम बरसात का ङ्क्षचताजनक रिकॉर्ड हरियाणा के नाम रहा। 2014 में तो 301.3 मिलीमीटर बरसात ही हुई। 2014 में मानसून में 197.3 मिलीमीटर बरसात हुई, जबकि होनी चाहिए थी 459 मिलीमीटर। इसी तरह से 2015 में पूरे देश में हरियाणा में सबसे कम 437.8 मिलीमीटर बरसात हुई यानी औसत से करीब 23 फीसदी कम। 2016 में ङ्क्षवटर सीजन में महज 1.2 मिलीमीटर, जबकि पूरे साल में कुल 392.9 मिलीमीटर ही बरसात हुई। इसी तरह से 2019 में 255, 2020 में 366.1, 2021 में 354.5 एवं 2022 में 355 मिलीमीटर बरसात दर्ज की गई।

1933, 1988 और 1995 में बरसात ने मचा दी थी तबाही
डा. कुलदीप ढींडसा ने जानकारी देते हुए बताया कि भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो 1901 से 2023 की अवधि के बीच साल 1933, 1988 एवं 1995 में बरसात ने तबाही मचा दी थी। 1933 में 826.9 मिलीमीटर, 1988 में 1108.8 मिलीमीटर एवं 1995 में 939 मिलीमीटर बरसात दर्ज की गई थी। 1

918 में सबसे कम 196.2 मिलीमीटर बरसात हुई। 1995 में आई बाढ़ ने हरियाणा में तबाही मचा दी थी। 16 जिलों में 20 लाख 35 हजार एकड़ फसल प्रभावित हुई। 2840 गांवों और हरियाणा के अनेक शहरों की 28 लाख 87 हजार आबादी पर बाढ़ का असर पड़ा। 16 लाख 55 हजार एकड़ में तो फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई। 2 लाख 2578 मकान क्षतिग्रस्त हुए। 168 लोग मारे गए। 3157 मवेशियों की जान चली गई थी। डा. ढींडसा ने बताया कि मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिक्स एंड प्रोग्राम इंपलीमेंटेशन की ओर से जारी इन्वायरमैंट स्टेटिक 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में कुल भौगोलिक क्षेत्र 44212 वर्ग किलोमीटर में से महज 1559 वर्ग किलोमीटर ही वनाच्छादित क्षेत्र है।


यह औसत से बहुत कम है। ऐसे में यहां मौसम का मिजाज बिगड़ा-बिगड़ा रहता है। यही वजह है कि पिछले दो दशक में उत्तरी भारत के राज्यों में गर्मी का पीरियड बढ़ता जा रहा है और सर्दी का पीरियड सिकुड़ रहा है। राज्य में सर्द हवाओं के चलने का भी सिलसिला जारी है। रिपोर्ट के अनुसार 1970 से 1979 के बीच राज्य में 1 बार सर्द हवा चली जबकि 1990 से 1999 के बीच 5 बार एवं 2000 से 2009 के बीच 13 बार  गर्म हवाएं चलीं। इसी तरह से 2010 से लेकर 2023 तक भी 14 बार गर्म हवाएं चलीं।
 

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