कभी हॉकी खरीदने तक के नहीं थे पैसे, अब ओलंपिक में महिला हॉकी टीम की करेंगी अगुवाई

Edited By vinod kumar, Updated: 06 Nov, 2019 03:20 PM

never had money to buy hockey now will lead women s hockey team in olympics

तांगा चलाने वाले की बेटी रानी रामपाल ओलंपिक गेम्स खेलने जाएगी। रानी रामपाल भारतीय हॉकी महिला टीम की कप्तान हैं। उनकी अगुवाई में महिला हॉकी टीम अब ओलंपिक गेम्स 2020 खेलने टोक्यो जाएगी। हॉकी ओलंपिक क्वालीफायर के दूसरे मुकाबले में टीम को अमेरिका के...

डेस्क: तांगा चलाने वाले की बेटी रानी रामपाल ओलंपिक गेम्स खेलने जाएगी। रानी रामपाल भारतीय हॉकी महिला टीम की कप्तान हैं। उनकी अगुवाई में महिला हॉकी टीम अब ओलंपिक गेम्स 2020 खेलने टोक्यो जाएगी। हॉकी ओलंपिक क्वालीफायर के दूसरे मुकाबले में टीम को अमेरिका के हाथों हार के बावजूद टोक्यो ओलंपिक का टिकट मिल गया है।

भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल की जीवन की कहानी काफी दिलचस्प है। रानी रामपाल उस शाहबाद से हैं, जिसे ‘हरियाणा का संसारपुर’ (संसारपुर पंजाब में है और हॉकी के लिए मशहूर है) कहा जाता है। यहां से भारत को महिला टीम की पूर्व कप्तान ऋतु रानी, रजनी बाला, नवनीत कौर, ड्रैग फ्लिकर संदीप सिंह और संदीप कौर जैसे मशहूर हॉकी खिलाड़ी मिले, रानी रामपाल का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं रहा। 

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जब भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए रानी का चयन हुआ, तब वे सिर्फ 14 साल की थीं और टीम की सबसे युवा खिलाड़ी थीं। रानी रामपाल को अर्जुन व भीम अवार्ड से नवाजा जा चुका है। रानी रामपाल की जिंदगी बचपन से ही दुश्वारियों से गुजरी। पिता तांगा चलाते थे, लेकिन उन्होंने आज अपनी बेटी को उस मुकाम पर पहुंचा दिया है, जहां से वह पूरी दुनिया में अपना नाम रोशन कर रही है, देश का नाम चमका रही है। 

रानी को अपने पिता पर गर्व है और इसलिए उन्होंने अपने नाम के साथ पिता का भी नाम लगा रखा है। रानी खुद बताती हैं कि घर में कभी इतने पैसे भी नहीं थे कि वे मेरे लिए हॉकी भी खरीद सकें, लेकिन मेरे सपनों में उड़ान थी और उन्हीं सपनों व इच्छाओं को देखते हुए पिता ने मुझे गांव की एकेडमी में डाल दिया। भाई कारपेंटर था तो पिता और भाई दोनों के साथ की वजह से मेरी प्रैक्टिस किसी तरह चलती रही। 

एकेडमी को द्रोणाचार्य अवॉर्ड विजेता बलदेव सिंह चलाते थे। रानी कहती हैं कि मैं अपनी हर उपलब्धि के लिए पिता के साथ-साथ कोच बलदेव सिंह की भी ऋणी हूं। मेरा परिवार जिस समय पैसे नहीं जुटा पाया था, मेरे कोच ने मेरे हाथ में हॉकी स्टिक थमा दी थी। मैं उनकी शुक्रगुजार हूं। कोच बलदेव सिंह भी कहते हैं कि रानी को हमेशा जीत दिखती थी, उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उसके सामने कौन सी टीम खेल रही है।

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14 साल की उम्र में रानी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेब्यू करने वाली सबसे छोटी उम्र की खिलाड़ी बनी। जब वह 15 साल की थीं, तो 2010 में विश्व महिला कप की सबसे छोटी खिलाड़ी थीं। उसने क्वाड्रिनियल टूर्नामेंट में सात गोल भी किए थे। रानी ने इंग्लैंड के खिलाफ निर्णायक गोल दागा था, जिसकी बदौलत भारत ने हॉकी जूनियर विश्व कप में कांस्य पदक जीता था। अपने प्रदर्शन की बदौलत ही रानी ने रेलवे में नौकरी हासिल की थी। 

रानी ने 2009 में एशिया कप के दौरान भारत को रजत पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। वह 2010 के राष्ट्रमंडल खेल और 2010 के एशियाई खेल के दौरान भारतीय टीम का हिस्सा थीं। 2013 में जूनियर महिला हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता, जो विश्व कप हॉकी प्रतिस्पर्धा में 38 साल बाद भारत का पहला कोई मेडल है। इस जीत का श्रेय रानी रामपाल को जाता है। 

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वह आमतौर पर सेंटर फॉरवर्ड पर खेलती हैं। उपलब्धियां- जूनियर हॉकी विश्व कप 2013 में प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट अवार्ड मिला। 2010 में 15 की उम्र में वो महिला विश्व कप में सबसे युवा खिलाड़ी बनी। रॉजारियो (अर्जेंटीना) में महिला हॉकी वल्र्ड कप में सात गोल कर सर्वश्रेष्ठ यंग फॉरवर्ड का अवॉर्ड जीता। जूनियर वल्र्ड कप में तीसरे स्थान के लिए इंग्लैंड के खिलाफ खेले गए मैच में दो गोल दाग कर 38 साल बाद भारत की झोली में मेडल डाला। ‘यंग प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट’का अवार्ड रानी को मिला।

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