बेबसीः 2500 रूपए में फोन बेच भूखे बच्चों के लिए जुटाया राशन, फिर फांसी लगाकर की आत्महत्या

Edited By Isha, Updated: 18 Apr, 2020 01:52 PM

migrant sold his phone for family and then killed himsel

देशभर में कोरोनावायरस महामारी के बढ़ते खतरे के मद्देनजर सरकार ने लॉकडाउन बढ़ाने का ऐलान तो कर दिया, लेकिन अब तक प्रवासी मजदूरों की समस्या ठीक से सुलझ ही नहीं पाई है। सरकारों की कोशिशों

गुरूग्राम- देशभर में कोरोनावायरस महामारी के बढ़ते खतरे के मद्देनजर सरकार ने लॉकडाउन बढ़ाने का ऐलान तो कर दिया, लेकिन अब तक प्रवासी मजदूरों की समस्या ठीक से सुलझ ही नहीं पाई है। सरकारों की कोशिशों के बावजूद कई परिवारों तक अभी भी राशन और खाने की व्यवस्था नहीं पहुंची है। ऐसे में उन्हें बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। 

ताजा मामला हरियाणा के गुड़गांव का है। यहां लॉकडाउन के बाद बिहार का रहने वाला एक 35 वर्षीय प्रवासी मजदूर छाबु मंडल परिवार के साथ फंस गया। शहर में पेंटर का काम करने वाले छाबु ने अपने 8 लोगों के परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपना मोबाइल फोन ही बेच दिया और इससे मिले 2500 रुपए की बदौलत जरूरत का सामान जुटाया। इसके बाद जैसे ही परिवार के सदस्य बाहर गए, छाबु ने घर को अंदर से बंद कर फांसी लगा ली।

पोर्टेबल पंखा और कुछ राशन खरीदा
छाबु की पत्नी पूनम के मुताबिक, मोबाइल बेचने के बाद पति को जो पैसे मिले थे, उससे उन्होंने घर के लिए एक पोर्टेबल पंखा और कुछ राशन खरीदा। घर में छाबु के माता-पिता और चार बच्चे हैं, जिनमें सबसे छोटे बेटे की उम्र महज 5 महीने है। पूनम का कहना है कि जब छाबु कुछ लेकर लौटे तो सभी खुश थे, क्योंकि बुधवार से ही किसी ने खाना नहीं खाया था। इससे पहले भी वे सब पड़ोसियों की दया पर ही निर्भर थे। पूनम बताती हैं कि खाना बनाने से पहले वे पास ही बाथरूम गईं, इस दौरान उनकी मां ने बच्चों क संभाला और घर के बाहर एक पेड़ के पास बैठ गईं। बगल की झोपड़ी में छाबु के पिता सो रहे थे। परिवार के सदस्यों के बाहर जाने के दौरान ही छाबु ने झोपड़ी का दरवाजा बंद किया और एक रस्सी के सहारे खुद को फांसी लगा ली। 

लॉकडाउन शुरू होने के बाद परेशान थे पति
पूनम कहती हैं कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही उनके पति काफी परेशान थे, आठ लोगों के परिवार के लिए उन्हें खाना जुटाने में काफी दिक्कत हो रही थी, क्योंकि इस दौरान न उनके पास काम था और न ही पैसा। सभी लोग मुफ्त के खाने पर निर्भर थे, लेकिन यह भी उन्हें रोज नहीं मिल पाता था। इस मामले में गुड़गांव पुलिस का कहना है कि मंडल मानसिक रूप से परेशान था। हमें घटना की जानकारी गुरुवार सुबह ही मिली। उसका शव उसके परिवार को दे दिया गया, लेकिन वे इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं चाहते। मामले में कोई एफआईआर भी दर्ज नहीं हुई है।  वहीं, जिला प्रशासन के अधिकारियों के मुताबिक, छाबु मानसिक रूप से परेशान था। 

हालांकि, अधिकारियों के इस तर्क पर छाबु के ससुर उमेश ने बताया कि काफी दूर होने की वजह से पूरे परिवार के लिए वहां तक जाना काफी मुश्किल है। उन्होंने कहा, मैं दिव्यांग हूं, मेरी पत्नी की भी उम्र हो गई है और बच्चे अभी काफी छोटे हैं। इसलिए इतना चलना मुमकिन नहीं। गुड़गांव के सरस्वती कुंज में ही रहने वाले फिरोज का कहना है कि वे लोग बाहर खाना लेने जाने से डरते हैं, क्योंकि कुछ पुलिसकर्मी काफी आक्रामक हैं।

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