किसान आंदोलन : महिलाओं का ऐलान- वापस नहीं जाएंगी, यात्रा में भी रहेंगी साथ

Edited By Manisha rana, Updated: 15 Jan, 2021 08:52 AM

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किसान आंदोलन के 50 दिन पूरे हो चुके हैं। जमा देने वाले पाले व कंपकंपा देने वाली शीतलहरों के बीच कुंडली बॉर्डर पर किसानों के साथ महिलाएं एवं बुजुर्ग लगातार डटे हुए हैं। सरकार के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं व बुजुर्गों को वापस भेजे जाने की सलाह...

सोनीपत : किसान आंदोलन के 50 दिन पूरे हो चुके हैं। जमा देने वाले पाले व कंपकंपा देने वाली शीतलहरों के बीच कुंडली बॉर्डर पर किसानों के साथ महिलाएं एवं बुजुर्ग लगातार डटे हुए हैं। सरकार के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं व बुजुर्गों को वापस भेजे जाने की सलाह किसानों को दी है, लेकिन महिलाओं ने साफ कर दिया है कि वे वापस जाने वाली नहीं हैं। वे यहां अपने परिजनों के साथ न केवल बॉर्डर पर डटी रहेंगी, बल्कि ट्रैक्टर परेड में भी उनके साथ रहेंगी। सरकार को यदि उनकी इतनी चिंता है तो तीनों कृषि कानून वापस क्यों नहीं लेती? 

दिल्ली की सीमाओं को 50 दिनों से सील किए बैठे किसान अब 26 जनवरी को प्रस्तावित ट्रैक्टर परेड की तैयारियों में लगे हुए हैं। परेड में भाग लेने के लिए पंजाब व हरियाणा से लगातार किसानों के जत्थे कुंडली बॉर्डर पर जुट रहे हैं। खास बात यह है कि पहले से ही जहां किसान आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी देखी जा रही है, वहीं अब पहले से ज्यादा संख्या में महिलाएं यहां पहुंच रही हैं। दूसरी ओर सरकार के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में किसानों को सलाह दी थी कि ठंड व अन्य दिक्कतों को देखते हुए महिलाओं व बुजुर्गों को घर वापस भेजा जाए, लेकिन महिलाओं ने इस सलाह को मानने से साफ इंकार कर दिया है। महिलाओं ने तय किया है कि वे यहीं डटी रहेंगी और अपने परिजनों के साथ ट्रैक्टर परेड में भी भाग लेंगी। वहीं बुजुर्ग वापस जाने की सलाह को पहले ही नकार चुके हैं। उनका कहना है कि अब तो कृषि कानून रद्द होने के बाद ही वे घर की तरफ रवाना होंगे, वर्ना अब दिल्ली बॉर्डर ही उनका घर है। 

पंजाब से रोजाना पहुंच रहीं 150 ट्रैक्टर-ट्रालियां
26 जनवरी की परेड में भाग लेने के लिए पंजाब में तेजी से प्रचार व आह्वान किया गया है, जिसके कारण अचानक से पंजाब की ओर से आने वाले वाहनों की संख्या बढ़ गई है। बख्तरबंद ट्रैक्टर-ट्रालियों की कतारें लगातार देखी जा रही हैं। जी.टी. रोड पर कुंडली बॉर्डर से लेकर अब के.एम.पी.-के.जी.पी. के जीरो प्वाइंट के नजदीक ट्रालियों की कतारें पहुंच चुकी हैं। यहां किसानों के साथ महिलाएं भी पहुंच रही हैं। उधर, राजस्थान व यू.पी. से भी किसानों के जत्थे लगातार पहुंच रहे हैं। किसानों का कहना है कि 26 जनवरी की परेड के लिए वे अपनी सभी तैयारियां 20 जनवरी तक ही पूरा करना चाहते हैं। यही कारण है कि किसान अभी से जुटने शुरू हो गए हैं। 

किसान कृषि कानूनों को रद्द करवाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। ऐसे में हमारा फर्ज बनता है कि हम अपने परिजनों के साथ रहें और उनकी लड़ाई में उनका साथ न छोड़ें। सुप्रीम कोर्ट या सरकार ने वापस जाने की सलाह दी है, लेकिन हम नहीं जाएंगे व यही रुके रहेंगे। सरकार जब कानून वापस ले लेगी तो वे सभी वापस चले जाएंगे। 

कोर्ट ने सलाह दी है, लेकिन यह भी सोचना चाहिए कि हमारे पिता, पति या भाई यहां बॉर्डर पर बैठे हुए हैं तो हम घर में कैसे रह सकते हैं? जब तक ये लोग वापस नहीं जाएंगे, हम भी वापस नहीं जाएंगे। सरकार को शीघ्र तीनों कानून रद्द कर देने चाहिएं, ताकि किसानों की और अधिक मौतें न हों। 

सरकार किसानों का दर्द नहीं समझ रही, बल्कि उनको अलग-अलग सलाह दे रही है। किसानों का सब कुछ लुट जाएगा तो वे घर जाकर क्या करेंगे? हमारी जमीनें ही हमारी मां हैं और जमीनों को बचाने के लिए ही बॉर्डर पर हम डटे हैं। कुछ भी हो जाए, अब हम कानूनों को रद्द करवाए बिना वापस नहीं जाने वाले। 
 

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